तिरुवाय्मोऴि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पासुरम्  71 – 80

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ६१-७० इकहत्तरवाँ पाशुरम् – (देवन्…) इस पाशुरम् में, श्रीवरवरमुनी स्वामीजी आऴ्वार् के पाशुरों का अनुसरण कर रहे हैं, जिनमें वे भगवान के गुणों और वास्तविक प्रकृति पर अनावश्यक रूप से संदेह करते हैं और वे संदेह दूर हो जाते हैं, और दयापूर्वक … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ४४ – ४५

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ४४ चौवालीसवां पासुर। मामुनि स्वामी जी नम्पिळ्ळै द्वारा आयोजित प्रवचनों से पांडुलिपि के रूप में व्याख्या लिखने की महिमा के बारे में बताते हैं। तॆळ्ळियदा नम्पिळ्ळै सॆप्पु नॆऱि तन्नैवळ्ळल् वडक्कुत् तिरुवीधिप् पिळ्ळै – इन्दनाडऱिय माऱन् मऱैप् पॊरुळै नन्गु … Read more

स्तोत्र रत्नम – श्लोक 61 से 65 – सरल व्याख्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः पूरी श्रृंखला << 51 -60 श्लोक 61 – एम्पेरुमान् पूछते हैं, “क्या तुम ने एक महान परिवार में जन्म नहीं लिए हो? एक असहाय व्यक्ति के जैसे क्यों बात कर रहे हो ?” आळवन्दार् उत्तर देते हैं, “मैं एक महान परिवार में पैदा होकर भी मेरे … Read more

तिरुवाय्मोळि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पाशुरम  61 – 70

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः‌ श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ५१-६० इकसठवां पाशुरम्– (उण्णिल…) इस पाशुरम् में, श्रीवरवरमुनी स्वामीजी उग्र इंद्रियों से डरने वाले आऴ्वार् के पाशुरों का अनुसरण कर रहे हैं और इसे दयापूर्वक समझा रहे हैं। उण्णिला ऐवरुडन् इरुत्ति इव्वुलगिल्एण्णिला मायन् ऎनै नलिय ऎण्णुगिन्ऱान्ऎन्ऱु निनैन्दु ओलमिट्ट इन् पुगऴ् सेर् माऱन् … Read more

तिरुवाय्मोऴि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पाशुरम् 51 – 60

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः‌ श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ४१-५० इक्यावनवें पाशुरम् – (वैगल्….) इस पाशुरम् में, श्रीवरवरमुनी स्वामीजी आऴ्वार् के उन पाशुरों का अनुसरण कर रहे हैं जिनमें सर्वेश्वर के विरह में पीड़ित होकर वे दूत भेजते हैं और इसे दयापूर्वक समझा रहे हैं। वैगल् तिरुवण्वण्डूर् वैगुम् इरामनुक्कु ऎन्सॆय्गतनैप् … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ४१ – ४३

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पाशुरम् ४१इकतालीसवां पाशुरम्। वे दयापूर्वक आऱायिरप्पडि (एक पडि में ३२ अक्षर होते हैं) व्याख्यानम् के बारे में बताते हैं, जिसे तिरुक्कुरुगैप्पिरान् पिळ्ळान् ने तिरुवाय्मॊऴि के लिए दयापूर्वक रचा था। तॆळ्ळारुम् ज्ञानत् तिरुक्कुरुगैप्पिरान्पिळ्ळान् ऎदिरासर् पेररुळाल् – उळ्ळारुम्अन्बुडने माऱन् मऱैप् … Read more

तिरुवाय्मोऴि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पाशुरम 41 – 50

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ३१-४० इकतालीसवा पासुरम् – (कैयारुम् चक्करत्तोन्…) इस पासुरम् में, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी आऴ्वार् संसारियों को सुधारने (भौतिकवादी लोग) के लिए सर्वेश्वर द्वारा आऴ्वार् की अहैतुक स्वीकृति को देखकर विस्मित हुए आऴ्वार् के पाशुरों का अनुसरण कर रहे हैं और दयापूर्वक इसे समझा … Read more

तिरुवाय्मोऴि नूट्रन्तादि – सरल व्याख्या – पाशुरम् 31 – 40

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << २१ – ३० इकतीसवां पासुरम् – (ऒरु नायगमाय्…) इस पाशुरम में, मामुनिगळ् आऴ्वार् के पाशुरम् का पालन कर रहे हैं, जिसमें सांसारिक संपत्ति आदि के दोषों को उजागर किया गया है, वे हीन और नश्वर प्रकृति के होने के कारण, और … Read more

तिरुवाय्मोळि नूट्रन्दाधि (नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या – पाशुरम २१ – ३०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमत् वरवरमुनये नमः श्रृंखला << ११ – २० इक्कीसवाँ पाशुर् – (मुडियार् तिरुमलैयिल्…) इस पाशुरम् में, मामुनिगळ् आऴ्वार् के पासुरम् का अनुसरण कर रहे हैं और तिरुमलै (तिरुमालिरुञ्जोलै) में रहने वाले अऴगर् एम्पेरुमान् के सुंदर रूप का पूरी तरह से आनंद ले रहे हैं और दयापूर्वक इसे समझा … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ३८ – ४०

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ३८ अड़तीसवाँ पासुरम्। मामुनिगळ् ने दयालुतापूर्वक ऎम्पॆरुमानार् को नम्पेरुमाळ् द्वारा दिये गये महान सम्मान को प्रकट किया ताकि हर कोई जान सके कि ऎम्पॆरुमानार् ने कितनी अच्छी तरह प्रपत्ति (ऎम्पॆरुमान् के प्रति समर्पण) मार्ग अपनाया था, और … Read more