आर्ति प्रबंधं – ५६

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

पिछले पासुरम में, मामुनि ने, “मदुरकवि सोरपडिये निलयाग पेट्रोम” गाया था।  उस्के संबंध में और अगले पद के रूप में , इस पासुरम में वें एम्पेरुमानार के दिव्य चरण कमलों में नित्य कैंकर्य की प्रार्थना करतें हैं।

पासुरम ५६

उनदन अभिमानमें उत्तारकम एन्ड्रु

सिँदै तेळिंदिरुक्क सेयद नी

अंदो एतिरासा नोयगळाल एन्नै नलक्कामल

सदिराग निन तिरुत्ताळ ता

 

शब्दार्थ

एतिरासा – हे यतियों के नेता

उनदन अभिमानमें उत्तारकम एन्ड्रु  – मेरे प्रति जो भक्ति और ध्यान आपने दिखाया हे यतिराजा वहीं मेरे आत्मा के उन्नति का सबसे महत्वपूर्ण कारण हैं।  इसी को पिळ्ळैलोकाचार्यार श्रीवचनभूषणं के ४४७ वे सूत्र में प्रस्ताव करतें हैं, : “आचार्य अभिमानमे उत्तारकम”

सिँदै तेळिंदिरुक्क सेयद नी  – तिरुवाय्मोळि के ७.५.११ वे पासुरम , “तेळिवुठृ सिंदैयर” के अनुसार, आप (श्री रामानुज) ने मुझे सदा  निरमल हृदय प्राप्त होने का आशीर्वाद किया

अंदो – हो !

ता – आप को ही देना हैं

एन्नै – मुझे

सदिराग – बुद्धिमान के प्रकार

निन तिरुत्ताळ – ( कैंकर्य के संग) आपके चरण कमलों के प्रति

नलक्कामल – हानि के बिना

नोयगळाल – पीड़ाओं से

सरल अनुवाद

मामुनि एम्पेरुमानार के प्रति कैंकर्य प्रार्थना करतें हैं. पिछले पासुरम के,  “मदुरकवि सोरपडिये निलयाग पेट्रोम” का अगला पग है यह। वे कहतें हैं कि एम्पेरुमानार ने ही उनको सिखाया कि: “ आचार्य के तुम्हारे प्रति विचार क्या हैं और तुम्हारे भलाई के विचार में कितने दिलचस्प हैं , यही सबसे महत्वपूर्ण बात है!” . और यह ज्ञान भी श्री रामानुज के अनुग्रह से ही मुझे हुआ हैं।  इससे मामुनि अपने सारे पीड़ाओं को मिटा कर आश्रय देने केलिए एम्पेरुमानार से प्रार्थना करतें हैं।

 

स्पष्टीकरण

मामुनि कहतें हैं, “हे यतियों के नेता! “आचार्य अभिमानमे उत्तारकम” ( पिळ्ळैलोकाचार्यार के श्रीवचनभूषणं  के ४४७ वे सूत्र ) का अर्थ आप ही ने मुझे दिया। उससे पता चलता हैं की मेरे प्रति आपका प्रेम और भक्ति ही मेरे लिए सर्व श्रेष्ट विषय है। तिरुवाय्मोळि के ७.५.११ वे पासुरम , “तेळिवुट्र सिंदैयर” में चित्रित यह ज्ञान मेरे हृदय में अटल है।  आपके आशीर्वाद से मैं उसी प्रकार अपना जीवन जी रहा हूँ। कृपया इस सँसार में मेरी पीड़ा न बढ़ाए। आपके शरणागति गद्य के “सुखेनेमाम प्रकृतिं स्तूल सूक्ष्म रूपं विसृज्य” के अनुसार, आप कृपया मुझे अपने चरण कमलों में ले और ,” उन पद युगमाम येर कोन्ड वीडु (रामानुस नूट्रन्दादि ८३) के प्रकार  उनके प्रति कैंकर्य दें।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार : http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2017/03/arththi-prabandham-56/

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