तिरुप्पल्लाण्डु – सरल व्याख्या

।।श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमते वरवरमुनये नमः।। मुदलायिरम् श्री मणवाळ मामुनिगळ् ने अपनी उपदेश रत्नमालै के १९ वे पाशुर में तिरुप्पल्लाण्डु की महत्ता बहुत ही सुन्दर ढंग से समझायी है। पशुराम    १९ . कोदिलवाम् आळ्वार्गळ् कूऱु कलैक्केल्लाम् आदि तिरुप्पल्लाण्डु आनदुवुम् – वेदत्तुक्कु। ओम् एन्नुम्म् अदुपोल् उळ्ळदुक्केळ्ळाम् सुरुक्काय्त् तान् मन्गलम् आनदाल्।। श्री … Read more

शरणागति गद्य – चूर्णिका 8-9

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नम: शरणागति गद्य << चूर्णिका 7 चूर्णिका 8 और 9 लघु है, इसीलिए हम इन्हें साथ में देखेंगे। प्रथम चूर्णिका 8: अवतारिका (भूमिका) चूर्णिका 7 श्रवण करने पर भगवान श्रीरामानुज स्वामीजी से पूछते है, “क्या में मात्र आपके लिए ही पिता, माता, संबंधी आदि हूँ?”, जिसके प्रति उत्तर … Read more

शरणागति गद्य – चूर्णिका 7

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नम: शरणागति गद्य << चूर्णिका 6 – भाग 6 अवतारिका (भूमिका) जैसा की पिछले चूर्णिका में बताया गया है, श्री पेरियवाच्चान पिल्लै प्रश्न करते है कि क्या हमारे द्वारा त्याग किया सभी कुछ हमारे लिए हानि नहीं है। वे प्रतिउत्तर में कहते है कि यह हानि नहीं है … Read more

आर्ति प्रबंधं – ६०

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५९ उपक्षेप आर्ति प्रबंधं के इस अंतिम पासुरम में मामुनिगळ विचार करतें हैं, “ हमें अपने लक्ष्य के विषय में और क्यों तृष्णा हैं? पेरिय पेरुमाळ से श्री रामानुज को सौंपें गए सर्वत्र, श्री रामानुज के चरण कमलों में उपस्थित उन्के सारे … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५७

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५६ उपक्षेप मामुनिगळ इस पासुरम में श्री रामानुज के एक काल्पनिक  प्रश्न कि उत्तर प्रस्तुत करतें हैं। श्री रामानुज के प्रश्न:” हे मामुनि! हम आपके विनम्र प्रार्थनाओं को सुनें। आप किस आधार पर , किसके सिफ़ारिश पर मुझें ये प्रार्थना कर रहें … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५३

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५२     उपक्षेप पिछले पासुरम में मामुनि अपने अंतिम दिशा को वर्णन करते समय, पेरिय पेरुमाळ के गरुड़ में सवार उन्के (मामुनि को दर्शन देनें) यहाँ आने की बात भी बताया। इससे यह प्रश्न उठता है कि अपने अंतिम दिशा पर … Read more

आर्ति प्रबंधं – ५२

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ५१   उपक्षेप मामुनि कहतें हैं कि, श्री रामानुज के असीमित कृपा के कारण उन्हें (मामुनि को) अपने व्यर्थ हुए काल कि अफ़सोस करने का मौका मिला।  आगे इस पासुरम में वें ,श्री रामानुज के कृपा की फल के रूप में ,पेरिय … Read more

आर्ति प्रबंधं – ४९

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ४८ उपक्षेप पिछले पासुरम में, “ऐतिरासन अडि नँणादवरै एँणादु” कहकर वें साँसारिक व्यवहारों में ही ढूबे लोगों के प्रति अपने विरक्ति  प्रकट करतें हैं। किंतु उन्कि हृदय नरम  होने कि कारण उन्से धर्ति वासियों की पीड़ा कि सहन न होती हैं। अपने अत्यंत कृपा … Read more

आर्ति प्रबंधं – ४७

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पाशुर ४६ उपक्षेप “ऐतिरासर्काळानोम याम” कहते हुए, संतुष्ट होकर, मामुनि “रामानुज” दिव्य नाम कि महान्ता  को प्रकट करने का इच्छा करतें हैं। मामुनि का मानना है कि पूर्व पासुरम में “ माकान्त नारणनार” और “नारायणन तिरुमाल” से कहें  गए “नारायणा” दिव्य नाम से … Read more

आर्ति प्रबंधं – ४६

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ४५ उपक्षेप पिछले पासुरम में मामुनि ,आचार्य के महत्त्व कि श्रेय जो गाते हुए उन्हीं के कृपा को अपनी उन्नति की कारण बतातें हैं।  इसी विषय कि इस पासुरम में और विवरण देतें हैं। पासुरम ४६ तिरुवाय्मोळि पिळ्ळै तीविनैयोंदम्मै गुरुवागि वंदु उय्यक्कोंडु – … Read more