उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर १ – ३

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<< तनियन्

पासुर १

इस पासुर में मामुनिगळ् अपने आचार्य (शिक्षक) को प्रणाम करते हैं, और स्पष्ट रूप से इस ग्रंथ को दया पूर्वक रचने के अपने उद्देश्य को बताते हैं।

ऎन्दै तिरुवाय्मॊऴि पिळ्ळै इन्नरुळाल् वन्द
उपदेस मार्गत्तैच् चिन्दै सॆय्दु
पिन्नवरुम् कऱ्-क उपदेसमाय् पेसुगिन्ऱेन्
मन्निय सीर् वॆण्पाविल् वैत्तु॥ १॥

मुझे मेरे स्वामी (उनके आचार्य को संदर्भित करता है) और पिता दृष्टि जिन्होंने मुझे अपनी महान दया से ज्ञान प्रदान किया, तिरुवाय्मोऴि पिळ्ळै से निर्देश प्राप्त हुए। इसका विश्लेषण करने के बाद, मैं इसे वॆण्पा (पद्य रचना का प्रकार) के महान काव्य के रूप में संकलित कर रहा हूँ, ताकि मेरे बाद आने वाले लोग इसे अच्छी तरह से सीख सकें और स्पष्टता प्राप्त कर सकें।

पासुर २

यह मानते हुए कि उनका दिव्य मन उनसे एक प्रश्न पूछ रहा है, “क्या वे लोग, जो इसे पसंद नहीं करते इसका उपहास नहीं करेंगे?” मामुनिगळ् अपने दिव्य मन को समझाते हुए कहते हैं कि ऐसे उपहासों का उनकी रचना पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 

कट्रोर्गळ् ताम् उगप्पर् कल्वि तन्निल् आसै उळ्ळोर्
पॆट्रोम् ऎन उगन्दु पिन्बु कऱ्-पर् – मट्रोर्गळ्
माच्चरियत्ताल् इगऴिल् वन्ददॆन् नॆञ्चे 
इगऴ्गै आच्चर्यमो तान् अवर्क्कु

जो हमारे अच्छे दर्शन के ज्ञाता हैं, उन्हें प्रसन्नता होगी कि यह बहुत प्रमाणिक और सुन्दर है। जो हमारे पूर्वजों से अच्छे मूल्य सीखना चाहते हैं वे इसे सम्मान के साथ ग्रहण करेंगे। जो इन दोनों समूहों के नहीं हैं वे इसे जलन से उड़ा देंगे । यह उनकी प्राकृतिक गुणवत्ता है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हमें इसमें दुखी होने की आवश्यकता नहीं है । 

पासुर ३ 

तीसरे पासुर में अपने मन को सांत्वना देने के बाद, कृपापूर्वक पासुर की रचना करने का निर्णय लिया, मंगलाशासन से आरंभ किया ताकि सभी अशुभ लक्षण दूर हो जाऐं। 

आऴ्वार्गळ् वाऴि अरुळिच्चॆयल् वाऴि
ताऴ्वादुमिल् कुरवर् ताम् वाऴि- एऴ्पारुम्
उय्य अवर्गळ् उरैत्तवैगळ् ताम् वाऴि
सॆय्य मऱै तन्नुडने सेर्न्दु

आऴ्वार् युग युग जियें। दिव्य प्रबंधम् (दिव्य रचनायें) जिसकी उन्होंने दया पूर्वक रचना की चिरकाल तक रहें। जो यथोचित शब्द सारे संसार का उद्धार करते हैं जिन्हें हमारे आचार्यों ने कहा, जो आऴ्वारों के पथ पर आये चिरकाल तक रहें। इन सबका आधार वेद, जो अपने आप में श्रेष्ठ हैं, युग युग तक रहें।

अडियेन् दीपिका रामान्ज दासि

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