रामानुस नूट्रन्ददि (रामानुज नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या – पाशुर 11 से 20

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नम:

रामानुस नूट्रन्दादि (रामानुज नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या

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पाशूर ११: श्रीरंगामृत स्वामीजी कहते हैं कि जिन्होंने श्रीरामानुज स्वामीजी (जो श्रीयोगीवाहन

स्वामीजी के दिव्य चरणों को अपने सरपर पहनते थे) की  शरण लिए हैं वें उनके महानता की 

विषय पर अधिक नहीं कह सकते हैं।

सीरिय नान्मऱैच् चेम्पोरुळ् सेन्दमिळाल् अळित्त

पार् इयलुम् पुगळ्प् पाण् पेरुमाळ् चरणाम् पडुमत्

तार् इयल् सेन्नि इरामानुसन् तन्नैच् चार्न्दवर् तम्

कारिय वण्मै एन्नाल् सोल्लोणादु इक्कडल् इडत्ते

चारों वेदों के श्रेष्ठ अर्थों का सुंदर द्राविड़ी गाथाओं से विवरण करनेवाले और सारे भूमंडल पर

फैले हुए यशवाले श्रीयोगीवाहन स्वामीजी के चरणारविन्दों से अलंकृत मस्तकवाले श्रीरामानुज

स्वामीजी के आश्रय में रहनेवाले महात्माओं के विलक्षण अनुष्ठान का वर्णन, सागरपरिवृत इस

भूमंडल में मुझसे नहीं किया जा सकता। अर्थात् श्रीरामानुज स्वामीजी के भक्तों का आचरण इतना

श्रेष्ठ रहता है कि इस विशाल भूतलपर ऐसा दूसरा कोई नहीं मिल सकता और उसका पूरा वर्णन

भी कोई नहीं कर सकता |

पाशूर १२: श्रीरंगामृत स्वामीजी यह प्रश्न करते हैं कि जो श्रीरामानुज स्वामीजी (जो श्रीभक्तिसार

स्वामीजी के चरण कमलों में निवास करते थे) कि पूजा करते हैं क्या वें उनके प्रति स्नेह कर

सकते हैं।

इडम् कोण्ड कीर्त्ति मळिसैक्कु इऱैवन् इणै अडिप्पोदु

अडन्गुम् इदयत्तु इरामानुसन् अम् पोऱ्पादम् एन्ऱुम्

कडम् कोण्डु इरैन्जुम् तिरु मुनिवर्क्कु अन्ऱि कादल् सेय्यात्

तिडम् कोण्ड ग्यानियर्क्के अडियेन् अन्बु सेय्वदुवे 

सारे भूमंडल पर व्याप्त यशवाले श्री भक्तिसार आळ्वार् के उभय पादारविन्दों का, अपने मन में

सुदृढ़ ध्यान करनेवाले श्रीरामानुज स्वामीजी के मनोहर श्रीपादों को ही जो लोग अपने स्वरूपानुसुप

भाग्य मानकर उनका आश्रय लेते हैं, ऐसे उनको छोड़कर दूसरे में भक्ति न करनेवाले दृढ

अध्यवसाययुक्त ज्ञानियों का ही मैं भक्त रहूंगा।

पाशूर १३: हमारा एक मात्र लक्ष्य श्रीरामानुज स्वामीजी के दिव्य चरण कमल हीं हैं जिनकी

श्रीभक्तांघ्रिरेणु स्वामीजी के दिव्य चरण कमलों को छोड़ और कुछ भी अभिलाषा नहीं हैं।

सेय्युम् पसुम् तुळबत् तोळिल् मालैयुम् सेन्दमिळिल्

पेय्युम् मऱैत् तमिळ् मालैयुम् पेराद सीर् अरन्गत्तु

ऐयन् कळऱ्कु अणियुम् परन् ताळ् अन्ऱि आदरिया

मेय्यन् इरामानुसन् चरणे गदि वेऱु एनक्के

अपने से विरचित हरी तुलसी की अतिविलक्षण मालाओं तथा द्राविड़वेद कहलानेवाले (तिरुमालै व

तिरुप्पळ्ळियेळुच्चि नामक दो दिव्यप्रबंधरूपी) गाथामाला को नित्यसिद्ध कल्याणगुणवाले

श्रीरंगनाथ भगवान के पादारविन्दों में अर्पण करनेवाले भक्तांघ्रिरेणु स्वामीजी के चरणारविन्द के

सिवा दूसरी वस्तु का आदर न करनेवाले श्रीरामानुज स्वामीजी के पादारविन्द ही मेरी श्रेष्ठ गति

हैं। श्री भक्तांघ्रिरेणु नामक दिव्यसूरी ने श्रीरंगदिव्यधाम में नित्यनिवास करते हुए श्रीरंगनाथ

भगवन के पादारविन्दों में दो मालाओं को अर्पण किया; एक थी ताजी तुलसी व पुष्पों से बनी हुई

रमणीय माला; दूसरी दो विलक्षण द्राविड़ी गाथाओं से विरचित दिव्यप्रबंधमाला।

पाशूर १४: श्रीरंगामृत स्वामीजी कहते हैं कि वों अन्य माध्यम से श्रेष्ठ लाभ प्राप्त करने स्वभाव से मुक्त हो गये क्योंकि वें श्रीरामानुज स्वामीजी को श्रीकुलशेखर आळ्वार् के प्रबन्धों कि स्तुति करनेवालों से अलग नहीं कर पाये।

कदिक्कुप् पदऱि वेम् कानमुम् कल्लुम् कडलुम् एल्लाम्

कोदिक्कत् तवम् सेय्युम् कोळ्गै अऱ्ऱेन् कोल्लि कावलन् सोल्

पदिक्कुम् कलैक् कवि पाडुम् पेरियवर् पादन्गळे

तुदिक्कुम् परमन् इरामानुसन् एन्नैच् चोर्विलने

श्री कुलशेखर आळ्वार्  से अनुगृहीत, शास्त्रवचनों से भरित (पेरुमाल् तिरुमोळि नामक) दिव्यप्रबंध

का गान करने मे निरत महात्माओं के पादों की ही स्तुति करनेवाले भगवान श्रीरामानुज

स्वामीजी मुझको कभी न छोड़ेंगे। अतः मैं सद्गति पाने की तीव्र इच्छा से अत्युष्ण वनों, पर्वतों

और् सागरों में खडा होकर तीक्ष्ण तपस्या करने की इच्छा नहीं करूंगा।

पाशूर १५: श्रीरंगामृत स्वामीजी कहते हैं वें ऐसे जनों का सहवास नहीं करेंगे जो श्रीरामानुज

स्वामीजी के गुणों का अनुभव नहीं करते हैं,| जिन्होंने अपना मन श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी के

चरणारविंद में लगाया हैं। वें कहते हैं अब उनके लिए कोई दीनता नही हैं।

सोराद कादल् पेरुम् सुळिप्पाल् तोल्लै मालै ओन्ऱुम्

पारादु अवनैप् पल्लाण्डु एन्ऱु काप्पिडुम् पान्मैयन् ताळ्

पेराद उळ्ळत्तु इरामानुसन् तन् पिऱन्गिय सीर्

सारा मनिसरैच् चेरेन् एनक्कु एन्न ताज़्ह्वु इनिये

क्षण क्षण बढ़नेवाले प्रेम-प्रवाह के परवश होने के कारण, भगवान के शाश्वत (समस्त दोष

विरोधित्व) स्वरूप का किंचित् भी ख्याल न करते हुए, उनका मंगळाशासन करने में निरत श्री

भट्टनाथ सूरी के श्रीपादों का ही निरन्तर ध्यान करनेवाले भगवान श्री रामानुज स्वामीजी के

दिव्यगुणों का जो अनुभव करना नहीं चाहते, ऐसे जनों का मैं सहवास नहीं करूंगा। यह है मेरा

दृढ़ अध्यवसाय। फिर मेरी कौन सी न्यूनता होगी?

पाशूर १६: श्रीरंगामृत स्वामीजी दयापूर्वक इस लोक के लिए जो लाभ श्रीरामानुज स्वामीजी ने

किया उसे लिखते हैं जो श्रीगोदाम्बाजी के दया के पात्र हैं और जो उन्को प्रिय हैं।

ताळ्वु ओन्ऱु इल्ला मऱै ताळ्न्दु तल मुळुदुम् कलिये

आळ्गिन्ऱ नाळ् वन्दु अळित्तवन् काण्मिन् अरन्गर् मौलि

सूळ्गिन्ऱ मालैयैच् चूडिक् कोडुत्तवळ् तोल् अरुळाल्

वाळ्गिन्ऱ वळ्ळल् इरामानुसन् एन्नुम् मा मुनिये

श्रीरंगनाथ भगवान के दिव्य सिरपर धारण करने योग्य पुष्प माला को, पहले अपने सिर पर

धारण कर सुगंधित बना देनेवाली श्रीगोदादेवी की निर्हेतुक कृपा से वृद्धि पानेवाले, परमोदार

भगवान श्रीरामानुज स्वामीजी ने, किसी प्रकार की न्यूनता से विरहित वेद जब क्षीण होने लगे

और कलि का अंधकार ही भूतल पर सर्वत्र खूब फैल गया, ऐसी अवस्था में यहां अवतार लेकर(

उन वेदों का उद्धार पूर्वक) लोकों का रक्षण किया।

पाशूर १७: जो हमारे भगवान श्रीरामानुज स्वामीजी के चरण कमलों के शरण हो जाते हैं जो

श्रीपरकाल स्वामीजी को समर्पित हैं, घबराने पर भी कभी कोई बाधा में नहीं फसेंगें ।

मुनियार् तुयरन्गळ् मुन्दिलुम् इन्बन्गळ् मोय्त्तिडिनुम्

कनियार् मनम् कण्णमन्गै निन्रानै कलै परवुम्

तनि आनैयैत् तण् तमिळ् सेय्द नीलन् तनक्कु उलगिल्

इनियानै एन्गळ् इरामानुसनै वन्दु एय्दिनरे

सकल शास्त्र प्रतिपाद्य और विलक्षण मत्तगज के सदृक्ष, तिरुक्कण्णमङ्गै इत्यादि दिव्यदेशों में

विराजमान भगवान को लक्ष्यकर, संसार तापहर व परमभोग्य द्राविड दिव्यप्रबंध रचनेवाले श्री

(नीलन् नामक) परकाल स्वामीजी के भक्त हमारे नायक श्रीरामानुज स्वामीजी के आश्रय में

रहनेवाले महात्मालोग तापत्रयों से पीड़ित होते हुए भी दुःखी न होंगे और सुखसाधन मिलने पर

भी आनंद से मस्त न होंगे।

पाशूर १८: श्रीमधुरकवि स्वामीजी के दिव्य हृदय में श्रीशठकोप स्वामीजी वास करते हैं। श्रीरंगामृत

स्वामीजी कहते हैं कि श्रीरामानुज स्वामीजी बड़ी दयापूर्वक श्रीमधुरकवि स्वामीजी के गुणों को

समझाते हैं ताकि उनके संग में सभी जीवात्मा (चेतन) का उद्दार हो सके।

एय्दऱ्कु अरिय मऱैगळै आयिरम् इन्तमिळाल्

सेय्दऱ्कु उलगिल् वरुम् सडगोपनैच् चिन्दै उळ्ळे

पेय्दऱ्कु इसैयुम् पेरियवर् सीरै उयिर्गळ् एल्लाम्

उय्दऱ्कु उदवुम् इरामानुसन् एम् उऱुतुणैये

श्रीनम्माळ्वार् का अवतार बड़ी कृपा से वेदों का अर्थ कहने हेतु, जो समझने के लिये बहुत

कठिन हैं, हजार पाशूरों (सहस्रगीति के द्वारा) के माध्यम से ,ताकि बच्चे और महिलाओं को भी

सीखने हेतु हुआ। उन्हें शठकोपन भी कहते थे और वों जो वेदों का गलत अर्थ बतलाते थे उनके

दुश्मन थे। श्रीशठकोप स्वामीजी का अपने हृदय में ध्यान करनेवाले महात्मा मधुरकवि स्वामीजी

के (आचार्यनिष्ठा इत्यादि) शुभगुणों का प्रवचन करके समस्त संसारियों का उद्धार करनेवाले श्री

रामानुज स्वामीजी हमारे योग्य आश्रयदाता हैं।

पाशूर १९: श्रीरंगामृत स्वामीजी कहते कि श्रीरामानुज स्वामीजी जिन्होंने कहा कि श्रीशठकोप

स्वामीजी हीं मेरे लिये सब कुछ हैं, मेरे लिए परमभोग्य हैं।

उऱु पेरुम् सेल्वमुम् तन्दैयुम् तायुम् उयर् गुरुवुम्

वेऱि तरु पूमगळ् नादनुम् माऱन् विळन्गिय सीर्

नेऱि तरुम् सेन्दमिळ् आरणमे एन्ऱु इन् नीळ् निलत्तोर्

अऱिदर निन्ऱ इरामानुसन् एनक्कु आरमुदे

“अतिश्रेष्ठ महान धन, माता, पिता, सदाचार्य, और सुगंधि कमल पुष्प में अवतीर्ण श्री महालक्ष्मीजी

के साथ भगवान, ये सभी मेरे लिए श्रीशठकोप स्वामीजी से अनुगृहीत, भगवद्गुणों का प्रकाशक

श्रेष्ठद्राविड वेद ही है” सारे भूमंडल निवासियों को ऐसे अपना सुदृढ़ अध्यवसाय बतानेवाले

श्रीरामानुज स्वामीजी मेरे लिए परमभोग्य होते हैं।

पाशूर २०: श्रीरंगामृत स्वामीजी कहते कि श्रीरामानुज स्वामीजी, जो श्रीमन् नाथमुनि स्वामीजी का

ध्यान करते हैं, मेरे परम धन हैं।

आरप्पोळिल् तैन्कुरुहै प्पिरान्, अमुद त्तिरुवाय्

ईरत् तमिळिन् इसै उणर्न्दोर्गट्कु इनियवर् तम्

सीरैप् पयिन्ऱु उय्युम् सीलम् कोळ् नादमुनियै नेन्जाल्

वारिप् परुगुम् इरामानुसन् एन्दन् मानिदिये

चंदन वृक्षों के उपवनों से परिवृत सुंदर कुरुकापुरी में अवतीर्ण महोपकारक श्री शठकोप स्वामीजी

के अतिभोग्य मुखारविंद से भावावेशपूर्ण एवं अतिमधुर द्राविड़ श्री सूक्ति (तिरुवाय्मोळि) अवतीर्ण

हुआ| नाथमुनिगल में संगीत के साथ इस तिरुवाय्मोळि  को जानने वालों को ( गहरी भक्ति के साथ) समृद्ध बनाने का गुण था |  ऐसे श्रीमन् नाथमुनिका बड़ी इच्छा से  निरंतर ध्यान करनेवाले श्रीरामानुज स्वामीजी मेरे अक्षय निधि हैं।

आधार : http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2020/05/ramanusa-nurrandhadhi-pasurams-11-20-simple/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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