आर्ति प्रबंधं – ४१

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ४० उपक्षेप मामुनि के कल्पना में श्री रामानुज के एक और प्रश्न का उत्तर स्वरूप में यह पासुर है । श्री रामानुजार्य का प्रश्न है, “ आप मेरा सहारा माँगते हैं , किंतु स्वयं के पापों की जानकारी नहीं हैं । यह उपकार … Read more

आर्ति प्रबंधं – ४०

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३९ पासुरम ४० अवत्ते पोळुदाई अडियेन कळित्तु इप्पवत्ते इरुक्कुम अदु पणबो ? तिवत्ते यान सेरुम वगै अरुळाय सीरार ऐतिरासा पोरुम इनि इव्वुडंबै पोक्कु शब्दार्थ अडियेन  – मैं, श्री रामानुज के नित्य दास अवत्ते  कळित्तु  –  ऐसे ही व्यर्थ  किए पोळुदाई  – वे सुनहरे … Read more

आर्ति प्रबंधं – ३९

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३८ उपक्षेप यह पासुरम कुछ लोगों के प्रश्न कि मामुनि के उत्तर के रूप में है। लोग मामुनि से प्रश्न करतें हैं, “ हे मामुनि! पिछले पासुरम में आपने कहाँ कि, आपका मन श्री रामानुज के चरण कमलों से अन्य सारे विषयों के … Read more

आर्ति प्रबंधं – ३८

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३७ उपक्षेप पिछले पासुरम में मामुनि “इन्रळवुम इल्लाद अधिकारं” वचन का प्रयोग किए। पासुरम में वे इस वचन कि विश्लेषण , तर्क और कारण विवरण के संग करतें हैं।   पासुरम ३८ अंजिल अरियादार  अयबदिलुम ताम अरियार एन्सोल एनक्को ऐतिरासा! – नेंजम उन … Read more

आर्ति प्रबंधं – ३७

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३६ उपक्षेप वरवरमुनि कल्पना कर रहें हैं कि श्री रामानुज स्वामी उन्हे कुछ बता रहे हैं । यह पासुर, श्री रामानुज स्वामी की यह सोच, का उत्तर स्वरूप है । श्री रामानुज स्वामी कहतें हैं , “हे ! वरवरमुनि ! आप इन्द्रियों के बुरे … Read more

आर्ति प्रबंधं ३६

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३५  उपक्षेप पिछले पासुरम में, मामुनि कहते हैं कि, “मरुळाले पुलन पोग वांजै सेय्युं एनदन”, जिस्से वें श्री रामानुज से, क्रूर पापों से प्रभावित इन्द्रियों के निमंत्रण से अपने बुद्धि को बहलाने केलिए  विनति करतें हैं। परंतु इसके पश्चात भी पापों का असर रहती … Read more

आर्ति प्रबंधं ३५

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३४   उपक्षेप मामुनि श्री रामानुज से कहतें हैं , “स्वामी! बाधाओं को निकाल कर मेरी रक्षा करने में ही आपकी चिंता हैं।  आपके अत्यंत कृपा के कारण, आपके प्रति कैंकर्य करने  कि अवसर दिलाने की इच्छा रखते हैं।  किन्तु साँसारिक रुचियाँ ऐसे कैंकर्य … Read more

आर्ति प्रबंधं ३४

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३३ उपक्षेप मणवाळ मामुनि के कल्पना में श्री रामानुज के एक प्रश्न, इस पासुरम का मुखबंध के रूप में है।  इस काल्पनिक प्रश्न का उत्तर ही यह पासुरम है।  वह प्रश्न है, “ ऐसा मान लें कि मेरी अत्यंत कृपा हैं , परन्तु आपके … Read more

आर्ति प्रबंधं ३३

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३२ पासुरम ३३ इन्नम एत्तनै कालम इंद उडम्बुडन यान इरुप्पन   इन्नपोळूदु उडम्बु  विडुम इन्नपडि अदुतान   इन्नविडत्ते  अदुवुम एन्नुम इवैयेल्लाम ऐतिरासा नी अरिदी यान इवै ओन्ररियेन एन्नै इनि इव्वुडैमबै विडुवित्तु उन अरुळै ऐरारुम वैकुंठत्तेट्र निनैवु उणडेल पिन्नै विरैयामल मरन्दु इरुक्कीरदेन ? पेसाय पेदैमै तीरन्दु … Read more

आर्ति प्रबंधं ३२

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम: आर्ति प्रबंधं << पासुर ३१ उपक्षेप पिछले पासुरम के “अऱमिगु नरपेरुमबूदूर अवदरित्तान वाळिये” का अर्थ यह हैं कि श्री रामानुज “श्रीपेरुमबूदूर” नामक क्षेत्र में अवतार किये। उससे, इस पासुरम में मणवाळ मामुनि उस श्रेष्ट दिवस को मनाते हैं, जो हैं हम संसारियों के प्रति श्री रामानुज के इस … Read more