आर्ति प्रबंधं – ४१

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

मामुनि के कल्पना में श्री रामानुज के एक और प्रश्न का उत्तर स्वरूप में यह पासुर है । श्री रामानुजार्य का प्रश्न है, “ आप मेरा सहारा माँगते हैं , किंतु स्वयं के पापों की जानकारी नहीं हैं । यह उपकार संभव है क्या?” मामुनि इसके उत्तर में कहतें हैं, “ स्वामी कृपया दया करें । प्रकृति संबंध के कारण मैंने अनेक पाप किये है । मुझसे बड़े पापी आप देख न पाएंगे । चित तथा उचित जीवों की रक्षा ही आपका अवतार रहस्य है । अत: कृपा बरसाने कि प्रार्थना करता हूँ ।   

पासुरम ४१

एनैप्पोल् पिळै सेयवार् इव्वुलगिल् उण्डो?

उनैप्पोल् पोरुक्कवल्लार् उण्डो?

अनैत्तुलगम् वाळप्पिरंद एतिरासा मामुनिवा  

ऐळैक्कु इरंगाय इनि

शब्दार्थ

इव्वुलगिल् उण्डो?  इस सारे सँसार में खोजने पर भी मिलेगा क्या

सेयवार्  –  जिन्होंने किया है

पिळै – पाप

एनैप्पोल्  –  मेरे जैसे

उनैप्पोल् – आपके जैसे हैं कोई?

पोरुक्कवल्लार् उण्डो? –  जो सहन करतें हैं (जनों के पापों को)?

एतिरासा  – जिन्का दिव्य नाम हैं, “ऐतिरासा” और

मा – पूजनीय हैं

मुनिवा – और योगियों में प्रथम तथा सर्वश्रेष्ठ हैं

पिरन्द – आपके अवतार की कारण है

अनैत्तुलगम्  – (सारें जन) सारें अँड चराचर  

वाळ  – का जीना ( मोक्ष के मार्ग प्राप्त करना)

इरंगाय इनि  – कृपया दया करें !

ऐळैक्कु –  प्रकृति सम्बंधित हर नीच विषय में इच्छा रखने वाले मुझ पर  

सरल अनुवाद

इस पासुर में मामुनि कहतें हैं कि उनसे बडा पापी नहीं हो सकता । इसी प्रकार, श्री रामानुज से अधिक, पापों को क्षमा कर स्वीकार करने वाले सहनशील व्यक्ति भी नहीं हो सकतें हैं । इसी सहनशीलता के विश्वास पर, मामुनि, श्री रामानुज को अपने अनेकों पापों को क्षमा कर आशीर्वाद करने की प्रार्थना करतें हैं। आगे, वें कहतें हैं कि श्री रामानुज के इस सँसार में अवतार का कारण ही लोगों का उत्थापन है । अत: मामुनि श्री रामानुज से मदद करने कि प्रार्थना करतें हैं।     

स्पष्टीकरण

रामानुज नूट्रन्दादि के ४८ वे पासुर के “निगरिंरि निँर एन् नीसदैक्कु” वचन, एक व्यक्ति का अप्रतिम नीचता को प्रकट करता है। मामुनि कहतें हैं कि, “मेरे समान पापी को अगर कोई ढूँढ़ने कि कोशिश करें तो वे खाली हाथ लौटेंगे।” मामुनि का मानना है कि दुनियाँ में उनके जैसा पापी कोई नहीं है।  उसी रामानुस नूट्रन्दादि पासुर में, एक और वचन है, “अरुळुक्कुम अहदे पुगल”. इसका अर्थ है, इस सारे सँसार में, पापों को झेलने कि सहनशीलता में श्री रामानुज अप्रतिम हैं। मामुनि आगे कहतें हैं, “हे एम्पेरुमानार! आप हमेशा सभी लोगों और चीज़ो को भव-बंधनों से छुटकारा दिलाने की राहों के विचार में हैं। विमुक्त कर सब को बेहतर बनाने के ही विचार में आप हैं।  यही आपके अवतार का कारण भी है। अत: आपसे विनती है कि इस गरीब (मन की कमज़ोर स्तिथि जिसमें वह देखने वाली सारें विषयों को चाहता है और अनुभव करना चाहता है , मन की यह स्तिथि “चपल” कहलाता है) पर कृपा करें।   

अडियेन् प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2017/02/arththi-prabandham-41/

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