स्तोत्र रत्नम – श्लोक 61 से 65 – सरल व्याख्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः पूरी श्रृंखला << 51 -60 श्लोक 61 – एम्पेरुमान् पूछते हैं, “क्या तुम ने एक महान परिवार में जन्म नहीं लिए हो? एक असहाय व्यक्ति के जैसे क्यों बात कर रहे हो ?” आळवन्दार् उत्तर देते हैं, “मैं एक महान परिवार में पैदा होकर भी मेरे … Read more

स्तोत्र रत्नम – श्लोक 51 से 60 – सरल व्याख्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः पूरी श्रृंखला << 41 -50 श्लोक 51 – आळवन्दार् कहते हैं “दयालु और दया पात्र के बीच का यह संबंध, आपकी ही दया से स्थापित किया गया था प्रभो, ऐसे होने के नाते, आपको ही, परित्याग किये बिना, मेरी रक्षा करना चाहिए” | तदहं त्वदृते न … Read more

स्तोत्र रत्नम – श्लोक 41 से 50 – सरल व्याख्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः पूरी श्रृंखला << 31 – 40 श्लोक 41 – इस श्लोक में स्वामी आळवन्दार् एम्पेरुमान् और पेरिय तिरुवडी (गरुडाऴ्वार्) की समक्षता का आनंद ले रहें हैं; गरुडाऴ्वार् जो कई प्रकार के कैंङ्कर्य में लगे रहते हैं जैसे भगवान् का ध्वज इत्यादि और जो एक परिपक्व फल … Read more

स्तोत्र रत्नम – श्लोक 31 से 40 – सरल व्याख्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः पूरी श्रृंखला << 21 -30 श्लोक 31 – इस श्लोक में श्री आळवन्दार् कहते हैं , ” आपके चरण कमलों को सिर्फ देखना ही पर्याप्त नहीं है , मेरे सिर पर आपके चरणों को रखके मेरे सिर को सुशोभित करना चाहिए ” जैसे तिरुवाइमोळि ९.२.२ में … Read more