उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ५१ – ५२

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुरम् ५०

पासुरम् ५१
इक्यावनवां पासुरम्। मामुनि (श्रीवरवरमुनि स्वामी) दयालु होकर समझाते हैं, नम्पिळ्ळै‌ को लोकाचार्य का प्रतिष्ठित दिव्य नाम कैसे मिला।

तुन्नु पुगऴ् कंदाडै तोऴप्पर् तम्मुगप्पाल्
ऎन्नवुलगारियनो ऎन्ऱु उरैक्क – पिन्नै
उलगारियन् ऎन्नुम् पेर् नम्बिळ्ळैक्कोङ्गि
विलगामल् निन्ऱदु ऎन्ऱुम् मेल्

कन्दाडै तोऴप्पर् एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपने वंश और ज्ञान की दृष्टि से महान थे। वे मुदलियाण्डान् के पोते थे [भगवद् रामानुज के भतीजे एवं प्रिय शिष्यों में से एक]। नम्पिळ्ळै के ज्ञान‌ और अनेक शिष्य होने के कारण, वे नम्पिळ्ळै से [आश्चर्यपूर्वक] ईर्ष्या करते थे। एकदा उन्होंने नम्पेरुमाळ् के गर्भगृह में अन्य भक्तों की उपस्थिति में नम्पिळ्ळै का अपमान किया, और बाद में घर लौटे। जो कुछ हुआ उसके बारे में सुनकर उनकी पत्नी ने उन्हें इस कृत्य के लिए डाँटा, जिसके परिणामस्वरूप उनके हृदय में स्पष्टता आई। उन्होंने नम्पिळ्ळै से क्षमा माँगने का निश्चय करते ही अपने घर का द्वार खोला। नम्पिळ्ळै वहाँ द्वार के बाहर पहले ही प्रतीक्षा‌‌ कर रहे थे। इसके पहले कि तोऴप्पर् कुछ कह पाते नम्पिळ्ळै ने कहा, “मैंने अनुचित व्यवहार किया जिससे आप, मुदलियाण्डान स्वामी के वंशज को क्रोधित हो गए। आप मुझे अपने व्यवहार के लिए क्षमा करें।” यह सुनकर कन्दाडै तोऴप्पर् ने कहा, “मैंने अब तक आपके जैसे किसी को नहीं देखा। आप न केवल कुछ लोगों के आचार्य हैं बल्कि आप संपूर्ण विश्व के आचार्य बनने के योग्य हैं। आप लोकाचार्य (संपूर्ण विश्व के शिक्षक) हैं।” इस घटना के बाद, नम्पिळ्ळै के लिए लोकाचार्य नाम सर्वत्र प्रसारित हुआ और दृढ़ता से स्थापित हो गया।

पासुरम् ५२
बयानवां पासुरम्। वे इस लोकाचार्य दिव्य नाम का पूरे विश्व में प्रसिद्ध होने का कारण बताते हैं।

पिन्नै वडक्कुत् तिरुवीधीप्पिळ्ळै अन्बाल्
अन्न तिरुनामत्तै आदरित्तु – मन्नु पुगऴ्
मैन्दर्क्कुच् चाट्रुगैयाल् वन्दु परन्ददु ऎङ्गुम्
इन्द तिरुनामम् इङ्गु

पिछले पासुरम् में देखें कथा के बाद, नम्पिळ्ळै के शिष्य वडक्कुत् तिरुवीधीप्पिळ्ळै ने, लोकाचार्य के इस दिव्य नाम के प्रति स्नेह के कारण, अपने पुत्र को यह दिव्य नाम दिया, जो उनके आचार्य की कृपा से जन्मे थे और जिन्हें उपयुक्त महानता थी। इस प्रकार यह दिव्य नाम और भी प्रसिद्ध हो गया। श्रीवरवरमुनि स्वामी भी पिळ्ळै लोकाचार्य की बहुत स्नेह से प्रशंसा करते हैं जैसे कि वाऴि उलगारियन् (पिळ्ळै लोकाचार्य की आयु लंबी हो)। पिळ्ळै लोकाचार्य ने अपनी महान करुणा से संसार के सभी लोगों की उत्थान के लिए दयापूर्वक क‌ई रहस्य ग्रन्थों (गोपनीय शास्त्र) की रचना की, जिससे उनका दिव्य नाम पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुआ।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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