नाच्चियार तिरुमोऴि – सरल व्याख्या – तीसरा तिरुमोऴि – कोऴि अऴैप्पदन्


श्रीः श्रीमतेशठकोपाय नमः श्रीमतेरामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

नाच्चियार् तिरुमोऴि

<<दूसरा तिरुमोऴि

पिछले दशक में, कण्णन्, आण्डाळ और अन्य गोपकुमारियाँ एक साथ थे [प्रसन्नचित्त]। इसे देखते हुए, लड़कियों के माता-पिता ने सोचा “अगर हम इन्हें इसी प्रकार जारी रखने की अनुमति दें, तो वे अपने मिलन के आनंद में डूब जाएँगी और मर भी सकती हैं”। इसलिए उन्होंने लड़कियों को कण्णन् से अलग कर दिया और उन्हें अपने घरों में बंद कर दिया। इस अवस्था में कण्णन् और लड़कियाँ दोनों अलग-अलग रहने लगे [एक दूसरे को देखने में असमर्थ]। यह देखकर माता-पिता और रिश्तेदारों ने सोचा “अगर हम उन्हें अलग ही रख दें तो वे मर जाएँगी। अगर हम लड़कियों को कण्णन् के साथ रहने दें, तो वह भी विनाशकारी हो जाएगा। इसलिए हम उन्हें पनि निरiट्टम् (प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व नदी में स्नान करना) नामक अनुष्ठान में सम्मिलित होने की अनुमति देंगे ताकि उन्हें अच्छे पति मिले। उस बीच हम उन्हें थोड़े समय के लिए कण्णन् के साथ रहने देंगे और इसकी चिंता नहीं करेंगे।” उन्होंने लड़कियों से कहा कि वे भोर से पहले नदी में स्नान कर लें। उन पर नजर रखने वाले कण्णन् को इस बारे में पता चला और जब वे सुबह-सुबह स्नान करने के लिए नदी की ओर गईं तो उसने लड़कियों का पीछा किया। गोपकुमारियाँ कितनी भी सावधानी से किसी को पता न चलते हुए नहाने चली गईं, वह किसी भी प्रकार उनके पीछे-पीछे गया और वहीं नदी किनारे में गया जहाँ वे गए थे। चरवाहा होने के नाते, उन्होंने नदी के किनारे कपड़े उतारे और स्नान के लिए नदी में प्रवेश किया। उसी समय कण्णन् जो वहाँ आया, सारे वस्त्र उठा लिया और उन कपड़ों को लेकर पास के एक कुरुन्धम के पेड़ पर बैठ गया। स्नान करके जब लड़कियाँ बाहर निकलीं, यह देखकर कि उनके वस्त्र वे जहाँ छोड़ गई थीं वहाँ नहीं हैं, चिन्तित होकर सोचीं, “क्या आकाश उन्हें ले गया? क्या दिशाएँ उन्हें दूर ले गईं? क्या नदी उन्हें ले गई या कण्णन् उन्हें ले गए?” ओर फिर उन्होंने कण्णन् को कुरुन्धम के पेड़ के ऊपर देखा और क्या हुआ होगा इसका अनुमान लगाया। उन्होंने निश्चय किया कि जिस प्रकार उसने उनका पीछा किया और उनके अनजाने में उनके वस्त्र चुरा लिए, उसी प्रकार वे भी किसी न किसी प्रकार से उन्हें उससे वापस ले लें। उन्होंने उससे तरह-तरह की विनती की और अंततः उसे उनकी कठिनाइयों से ज्ञात कराया। तब उसने उनके वस्त्र लौटा दिए और आनन्दपूर्वक उनके साथ रहा।

पहला पासुरम। कन्याएँ अपने हाथ जोड़कर अपनी पीड़ा के बारे में बताते हुए कण्णन् से उनके कपड़ों को लौटाने की भीख माँगती हैं।

कोऴि अऴैप्पदन् मुन्नम् कुडैन्दु नीराडुवान् पोन्दोम्
आऴियञ्चेल्वन् एऴुन्दान् अरवणैमेल् पळ्ळि कोण्डाय्!
एऴैमैयाट्रवुम् पट्टोम् इनि एन्ऱुम् पोय्गैक्कु वारोम्
तोऴियुम् नानुम् तोऴुदोम् तुगिलैप्पणित्तरुळाये

ओह जो तिरुवनन्दाऴ्वान् (आदिशेषन्) के गद्दे पर लेटे हैं! नदी में अच्छी तरह से डुबकी लगाकर स्नान करने के लिए, [भोर होने से पहले] मुर्गा बांग देने के पहले हम यहाँ आ पहुँचीं। अब तो ऐश्वर्यपूर्ण सूर्य भी उदय हो चुका है। हम यहाँ बहुत कष्ट उठा रही हैं। इसके बाद हम इस नदी पर नहीं आएँगे। मेरे और मेरी सहेलियों के वस्त्र कृपा करके लौटा दो, हम आपकी वंदना कर रही हैं।

दूसरा पासुरम्। कण्णन् ने सोचा कि “वे मेरे साथ नहीं रहना चाहती हैं और वस्त्र माँग रही हैं”। ऐसे सोचते हुए कण्णन् ने कुछ वस्त्र जो नदी किनारे पर पडे हुए थे, उसे भी उठा लिया और पेड के उपर जा कर बेठ गया। यह देखकर लड़कियों ने बड़ी दु:ख के साथ उससे अपने वस्त्र देने की याचना की।

इदुवेन् पुगुन्ददु! इङ्गन्दो! इप्पोय्गैक्कु एव्वाऱु वन्दाय्?
मदुविन् तुऴाय् मुडिमाले! मायने! एङ्गळ् अमुदे!
विदियिन्मैयाल् अदु माट्टोम् वित्तगप्पिळ्ळाय्! विरैयेल्
कुदिकोण्डु अरविल् नडित्ताय्! कुरुन्दिडैक् कूऱै पणियाय्

यह क्या हुआ यहाँ! काश! तुम किस रास्ते से इस नदी में आए? हे महापुरुष! हे मुकुटधारी! जिन्होंने मुकुट पर शहद टपकते हुए तुलसी की माला धारण की है! ओह, जिसकी गतिविधियाँ अद्भुत हैं! हे जो हमारे लिए अमृत के समान मधुर हैं! क्योंकि हम भाग्यशाली नहीं हैं, हम तुम्हारे साथ रहने के लिए सहमत नहीं हो सकते। ओह जिसके पास चमत्कारिक गतिविधियाँ हैं! जल्दबाजी न करें। ओह, जिसने [जहरीले] साँप कालीयन के शीर्ष पर कूदा और नृत्य किया! तुमने जो वस्त्र कुरुन्धम के वृक्ष पर रखे हैं, उन्हें कृपा करके हमें प्रदान करें।

तीसरा पासुरम्। जब उसने कहा कि वह उन्हें वस्त्र वापस कर देगा, उस पर विश्वास करते हुए, कुछ लड़कियाँ नदी से बाहर निकलीं। जब वह उनसे मीठी-मीठी बातें करने लगा, तो उन्होंने कहा कि यदि वह उन्हें उनके वस्त्र वापस दे दे तो वे वहाँ से चली जाएँगी।

एल्ले! ईदेन्न इळमै? एम्मनैमार् काणिल् ओट्टार्
पोल्लाङ्गु ईदेन्ऱु करुदाय् पूङ्कुरुत्तु एऱि इरुत्ति
विल्लाल् इलङ्गै अऴित्ताय्! नी वेण्डियदेल्लाम् तरुवोम्
पल्लारुम् काणोमे पोवोम् पट्टैप् पणित्तरुळाये

हे धनुष से लंका को नष्ट करने वाले! ओह! यह कैसा खेल है! यदि हमारी माताओं को पता चला कि यहाँ क्या हुआ है तो वे हमें घर में नहीं आने देंगी। आपको नहीं लगता कि इस प्रकार बिना वस्त्रों के हमारा ऐसा होना अनुचित है! आप एक खिले हुए कुरुन्धम वृक्ष पर बैठे हैं। आप जो चाहते हैं, हम आपको देते हैं। हम अपने घर इस प्रकार लौटेंगे कि हमें कोई देख न ले। कृपा करके हमें हमारे रेशमी वस्त्र प्रदान करें।

चौथा पासुरम्। जब वे इस प्रकार की बातें कर ही रही थीं, तब उस ने कुछ ऐसा किया जिससे वे भयभीत हो गए। यह देखकर उन्होंने अपना दु:ख व्यक्त किया और उस से अनुग्रह की प्रार्थना करने लगें।

परक्क विऴित्तु एङ्गुम् नोक्किप् पलर् कुडैन्दाडुम् चुनैयिल्
अरक्क निल्ला कण्ण नीर्गळ् अलमरुगिन्ऱवा पाराय्
इरक्कमेल् ओन्ऱुम् इलादाय्! इलङ्गै अऴित्त पिराने!
कुरक्करचु आवद​ऱिन्दोम् कुरुन्दिडैक् कूऱै पणियाय्

हे! लंका का संहार करने वाले! बहुत से लोग इस सरोवर में स्नान कर रहे हैं। इस किनारे के चारों ओर हर दिशा में देखो कि हमारे चेहरे पर आ आँसू कैसे बह रहे हैं, भले ही हम इन आँसुओं को बहने से रोक रही हैं। हे निर्दयी! हमें पता चल गया कि आप पेड़ पर चढ़ने वाले वानरों के नेता हैं। कुरुन्धम के वृक्ष के ऊपर जो वस्त्र हैं, उन्हें कृपा करके दे दो।

पाँचवां पासुरम्। आण्डाळ् का जन्म मुमुक्षुओं के कुल में होने के कारण (आऴवारों का कुल, जो मुक्त होना चाहते थे), वे एम्पेरुमान् के दिव्य मन को जानती हैं। जब श्रीगजेन्द्राऴ्वान् ने खतरे में पुकारा, तो एम्पेरुमान् अपनी श्रेष्ठता की परवाह किए बिना आए। इस बात को ध्यान में रखते हुए, वे कहती हैं कि श्रीगजेन्द्राऴ्वान् ने जितना कष्ट उठाया, उससे क‌ई अधिक पीड़ित हम हैं, और इसलिए उसे उन्हें उनके कपड़े दे देने चाहिए।

कालैक् कदुविडुगिन्ऱ कयलोडु वाळै विरवि
वेलैप् पिडित्तु एन्नैमार्कळोटिल् एन्न विळैयाट्टो?
कोलच् चिट्राडै पलवुम् कोण्डु नी एऱि इरादे
कोलम् करिय पिराने! कुरुन्दिडैक् कूऱै पणियाय्

हे एम्पेरुमान्, जिनका श्यामल दिव्य रूप है! कार्प मछली और म्यान मछली एक साथ हमारे पैरों को काट रही हैं। अगर हमारे भाइयों को पता चल जाए कि आप हमें इस प्रकार परेशान कर रहे हैं, तो वे भाले ले कर दौड़े आएँगे और आपको भगा देंगे; तो क्या वह दूसरे प्रकार के खेल में समाप्त नहीं हो जाएगा? सुंदर वस्त्र धारण कर वृक्ष पर बैठने के बजाय, दया करके हमें हमारे वस्त्र प्रदान करें।

छठा पासुरम। इसमें वे यह कहते हुए प्रार्थना करती हैं कि कैसे वे कमल के डंठल से परेशान हैं ।

तडत्तविऴ् तामरैप् पोय्गैत् ताळ्गळ् एम् कालैक् कदुव​
विडत्तेळ् एऱिन्दाले पोल वेदनै आट्रवुम् पट्टोम्
कुडत्तै एडुत्तेऱ विट्टुक् कूत्ताडवल्ल एम् कोवे!
पडिट्रै एल्लाम् तविर्न्दु एङ्गळ् पट्टैप् पणित्तरुळाये

तालाब में विशाल और खिले हुए कमल के डंठल, जो विस्तृत हैं हमारे पैरों को काट रहे हैं। हम ऐसे तड़प रही हैं मानो हमें जहरीले बिच्छुओं ने काट लिया हो। हे घड़े को ऊंचा फेंकने में और नाचने में सक्षम हमारे नेताजी! आप जो शरारत कर रहे हैं उसे बंद कर दें और दया करके हमें हमारी रेशमी वस्त्र प्रदान करें।

सातवां पासुरम्। वे उससे कहती हैं कि वह उन जैसी लड़कियों को परेशान न करे और अन्याय न करें।

नीरिले निन्ऱु अयर्क्किन्ऱोम् नीदि अल्लादन सेय्दाय्
ऊरकम् चालवुम् चेय्त्ताल् ऊऴि एल्लाम् उणर्वाने!
आर्वम् उनक्के उडैयोम् अम्मनैमार् काणिल् ओट्टार्
पोर विडाय एङ्गळ् पट्टैप् पूङ्गुरुत्तु एऱि इरादे

हे जब कोई न हो ऐसे प्रलय काल में भी सबकी रक्षा करने के बारे में सोचनेवाले! हम पानी में खड़े होकर तड़प रही हैं। आप अन्यायपूर्ण कार्य कर रहे हैं। हमारा घर और गाँव यहाँ से बहुत दूर है, भले ही हम आपसे बचना चाहती हो। ओह! आप हमें इस प्रकार सताने के बावजूद हम आपसे अत्यंत प्रेम करती हैं। यदि हमारी माताएँ हमें आपके साथ देख लेंगी, तो वे हमें [यहाँ फिर से आने] की अनुमति नहीं देंगी। कृपा करके हमें हमारे रेशमी वस्त्र प्रदान करें। अच्छे फूल खिले कुरुंदम के पेड़ के ऊपर न बैठें।

आठवां पासुरम्। जिन रिश्तेदारों के सामने आपको लज्जा आएगी वे यहाँ आ गए हैं। उनके सामने शरारतें करके लज्जित महसूस न करें।

मामियार् मक्कळे अल्लोम् मट्रुम् इङ्गु एल्लारुम् पोन्दार्
तूमलर्क् कण्गळ् वळरत् तोल्लैयिरात् तुयिल्वाने!
चेममेल् अन्ऱिदु चालच् चिक्केन नाम् इदु चोन्नोम्
कोमळ आयर् कोऴुन्दे! कुरुन्दिडैक् कूऱै पणियाय्

पहले प्रहर में (दिन के समय) शरारत करने के बाद, है, पवित्र पुष्प रूपी नेत्रों से रात को सोने वाले! यहाँ उपस्थित लोगों में केवल आपकी मामियों की बेटियाँ ही नहीं हैं, बल्कि अन्य रिश्तेदार भी हैं जैसे कि आपकी मामी और उनकी माताएँ। आप जो कर रहे हो वह योग्य कर्म नहीं है। हम सत्य बोल रही हैं। हे, जो आयर् कुल के लिए एक कोमल अंकुर के समान है! आप कृपा करके हमें हमारे वस्त्र प्रदान करें।

नौवां पासुरम्। एम्पेरुमान् दो अवस्थाओं में होंगे – वे उन लोगों के लिए कार्य करेंगे जो उनका उत्सव मनाती [पूजा करती] हैं; वे अपने साथ दुर्व्यवहार करने वालों के लिए भी कार्य करेंगे। चूँकि उनकी प्रशंसा करने से उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ, इसलिए वे अब तय करती हैं कि वे उसकी निंदा करेंगे और देखेंगे कि इससे उन्हें लाभ होता है या नहीं।

कञ्जन् वलै वैत्त अन्ऱु कारिरुळ् एल्लिल् पिऴैत्तु
नेञ्जु तुक्कम् सेय्यप् पोन्दाय् निन्ऱ इक्कन्नियरोमै
अञ्ज उरप्पाळ् अचोदै आणाड विट्टिट्टु इरुक्कुम्
वञ्जगप् पेय्च्चि पाल् उण्ड मचिमैयिली! कूऱै ताराय्

उस समय जब कंस [कण्णन के मामा] ने तुम्हें मारना चाहा, तुम घोर अँधेरे की रात में बच निकले और इस झील में खड़ी युवा लड़कियों को दुःख देने के लिए यहाँ आए। यशोदाप् पिराट्टी आपको भयभीत न कराने के लिए नहीं डाँटेंगी। वे आपको पूरी हद तक शरारतें करने की अनुमति देती हैं। हे निर्लज्ज! छल कपट से पूतना [राक्षस] का दूध और प्राण पीने वाले! हमें हमारे वस्त्र दे दो।

दसवां पासुरम। आण्डाल जो इस दशक को सीखते हैं उन लोगों के लिए लाभ बताते हुए दशक को पूरा करती है ।

कन्नियरोडु एङ्गळ् नम्बि करिय पिरान् विळयाट्टै
पोन्नियल् माडङ्गळ् चूऴन्द पुदुवैयर् कोन् पट्टन् कोदै
इन्निसैयाल् चोन्न मालै ईरैन्दुम् वल्लवर् ताम् पोय्
मन्निय माधवनोडु वैगुन्दम् पुक्कु इरुप्पारे

कण्णपिरान् (श्री कृष्ण) जो हमारे स्वामी हैं और जिनका रंग सांवला है, हम ग्वालबालिकाओं के साथ दैविय खेल में लिप्त हैं। सुंदर सुनहरे महलों से घिरा हुआ श्रीविल्लिपुत्तूर् में रहने वाले लोगों की नेता, आण्डाळ् (मैं), पेरियाऴवार् की सुपुत्री ने मधुर संगीत के साथ पाशुरम के रूप में उन कृत्यों की दयापूर्वक रचना की। जो लोग इन दस पाशुरों को सीखने में सक्षम हैं वे अर्चिरादि मार्ग (प्रकाश का मार्ग) के माध्यम से जायेंगे, श्रीवैकुंठम पहुँचेंगे और वहाँ स्थायी रूप से रहने वाले श्रीमन्नारायण के साथ महान अनुभव में रहेंगे।

अडियेन् वैष्णवी रामानुज दासी

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