नाच्चियार तिरुमोऴि – सरल व्याख्या​ – पहला तिरुमोऴि – तैयोरु तिङ्गळ्

श्रीः श्रीमतेशठकोपाय नमः श्रीमतेरामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

नाच्चियार् तिरुमोऴि

<< तनियन्

आण्डाळ् ने तिरुप्पावै में  एम्पेरुमान् को उपाय माना और घोषित किया कि जो भगवान् के प्रति निःस्वार्थ कैंङ्कर्य ही उपेय है। यदि सदा यह विचार स्मरण में रहे तो एम्पेरुमान् स्वयं उसका फल देता है। परंतु एम्पेरुमान् तो न आण्डाळ् के समीप आया, न उसकी आशाओं को पूर्ण किया। आण्डाळ्, एम्पेरुमान् के प्रति उसकी असीमित प्रेमभाव और भगवान के उदासीनता से व्याकुल हो उठी। श्री अयोध्या में सीतादेवी से लेकर सारे अयोध्या वासी, श्रीराम के सिवा अन्य किसी देवता को न जानते थे, फिर भी, उन्होंने श्रीराम के मङ्गल के लिए इतर सभी देवताओं से प्रार्थना की। श्रीराम को अन्य कोई भी रूप से अनुभव नहीं करूँगा, ऐसे बोलने वाले हनुमान जी (तिरुवडि) ने भी श्रीराम के कल्याण के लिए वाचस्पति नामक एक देवता से प्रार्थना की थी। वैसे ही, यहाँ आण्डाळ् , उसे एम्पेरुमान् के साथ मिलवाने के लिए कामदेव से प्रार्थना कर रही है। हमारे पूर्वाचार्यों ने यह दिखाया है, प्रेमभाव के कारण से उत्पन्न होने वाला अज्ञान अति श्रेष्ठ है।​ पेरियाऴ्वार् एम्पेरुमान् के लिए पुष्प कैंङ्कर्य करते थे, वैसे ही यहाँ आण्डाळ् भी उसे एम्पेरुमान के साथ मिलानेवाले कामदेव को, उसका मन  पसंद जंगली फूल समर्पित कर रही है। आण्डाळ् नाच्चियार् की यह कार्य उसकी अनियंत्रित विरह के लिए सही होगा, परंतु हम जैसे साधारण मुनुष्यों के लिए अन्य देवताओं की आराधना करना हमारे स्वभाव के लिए सही नहीं होगा।

पहला पासुरम्। इसमें आण्डाळ् किस प्रकार काम देव और उसका छोटा भाई साम देव दोनों की आराधना कर‌ रही है यह बताती है।

तैयोरु तिङ्गळुम् तरै विळक्कित् तण मण्डलमिट्टु मासि मुन्नाळ्
ऐय नुण्मण​ऱ कोण्डु तेरुवणिन्दु अऴगिनुक्कु अलङ्गरित्तु अनङ्ग देवा!
उय्यवुमाङ्कोलो एन्ऱु चोल्लि उन्नैयुम् उम्बियैयुम् तोऴुदेन्
वेय्यदोर् त​ऴल् उमिऴ् चक्करक् कै वेङ्गडवऱ्कु एन्नै विदिक्किट्रिये

हे कामदेव! मैंने इस पूरे तै (तमिऴ महीना) महीने में उसके आने के मार्ग को शीतल रूप से परिष्कार किया है। सुन्दर मण्डल रंगोली से सजाया है। माघ माह के प्रथम पक्ष मैंने उसके  आने के मार्ग को मृदु रेत से अलंकृत कर, उसे देखकर कहा, “हे कामदेव! क्या तुम मेरी अपेक्षाएँ पूरी करोगे?” मैं तुम्हारी और तुम्हारे छोटे भाई की आराधना करती हूँ। मेरे लिए तुम्हें  प्रज्वलित तीक्ष्ण दिव्य चक्र को हाथ में धारण करनेवाले तिरुवेङ्गडमुडैयान् (तिरुपति एम्पेरुमान्) से मेरी अधीनता सवीकार करवाना होगा।

दूसरा पासुरम्। आण्डाळ् इस पासुर में उसके व्रत के क्रम का सविस्तार  विवरण करके, कामदेव से, “मुझे एम्पेरुमान् के साथ मिलवा दो”, ऐसे  प्रार्थना कर रही है। 

कळ्ळविऴ् पूङ्गणै तोडुत्तुक् कोण्डु कडल्वण्णन् एन्बदोर् पेर् एऴुदि
पुळ्ळिनै वाय् पिळन्दान् एन्बदोर् इलक्किनिल् पुग एन्नै एय्किट्रिये
वेळ्ळै नुण्मणल् कोण्डु तेरुवणिन्दु वेळ्वरैप्पदन् मुन्नम् तुऱै पडिन्दु
मुळ्ळुमिल्लाच् चुळ्ळि एरिमडुत्तु मुयन्ऱु उन्नै नोऱकिन्ऱेन् काम देवा!

हे कामदेव​! मैंने तुम्हारे आने के मार्ग को सफ़ेद रेत से सजाया है। मैंने प्रातः काल में नदी में जाकर डुबकी लगाकर स्नान करके, बिना काँटों वाली लकडियाँ चुनकर अग्नि में देकर तुमहारे लिए व्रत अनुष्ठान कर रही हूँ। तुम अपने शहद टपकते फूलों के काम-बाण को, समुद्र के रंग से एम्पेरुमान पर छोड़कर, पक्षी के मुँह  चीरनेवाले उस एम्पेरुमान से मुझे मिलवा दो।  

तीसरा पासुरम्। आण्डाळ् इस पासुरम में कह रही है, अगर कामदेव चाहते हैं कि मेरे द्वारा उनकी निंदा न हो, तो उनको मुझे तिरुवेङ्गडमुडैयान से मिलवाना होगा।

मत्तनन् न​ऱुमलर् मुरुक्कमलर् कोण्डु मुप्पोदुम् उन्नडि वणङ्गि
तत्तुवमिलि एन्ऱु नेञ्जेरिन्दु वाचकत्त​ऴित्तु उन्नै वैदिडामे
कोत्तलर् पूङ्गणै तोडुत्तुक् कोण्डु गोविन्दन् एन्बदोर् पेर् एऴुदि
वित्तकन् वेङ्गडवाणन् एन्नुम् विळक्किनिल् पुग एन्नै विदिक्किट्रिये

हे कामदेव! मैं धतूरा एवम पलाश फूलों को लेकर दिन में तीन बार तुम्हारे चरणों की अराधना कर रही हूँ। फिर भी मेरी आशा पूर्ण न हुई तो, मेरा हृदय दुःखी होगा, और  “यह कामदेव अपनी वचन नहीं निभाता है” जैसे शब्दों से मैं पूरी नगर में तुम्हारी निंदा करूँगी। अगर तुम चाहते हो मैं यह न करूँ, तो तुम्हें ताजे, खिल उठे फूलों के बाण बनाकर, अपने हृदय में “गोविन्द” का नाम लिखकर‌ तीर चलाओ, ताकी मैं अद्भुत स्वभाव के तिरुवेङ्गडमुडैयान् नामक दीपक के पास जा पहुँचूँ। 

चौथा पासुरम। इस में आण्डाळ् अपनी अत्यधिक दुःख को बतला रही है।

सुवरिल् पुराण! निन् पेर् एऴुदिच् चुऱव न​ऱ् कोडिक्कळुम् तुरङ्गङ्गळुम्
कवरिप् पिणाक्कळुम् करुप्पु विल्लुम् काट्टित् तन्देन् कण्डाय् कामदेवा!
अवरैप् पिरायम् तोडङ्गि एन्ऱुम् आदरित्तु एऴुन्द एन् तडमुलैगळ्
तुवरैप् पिरानुक्के सङ्गऱ्पित्तुत् तोऴुदु वैत्तेन् ओल्लै विदिक्किट्रिये

हे पुरातन​! मैंने दिवारों पर तुम्हारे नाम लिखकर, मछली से चित्रित किए गए ध्वज (कामदेव के ध्वज पर मछली होती है), घोड़े, चामर धारण की हुई स्त्रियाँ, गन्ने का धनुष ये सब समर्पित किए हैं, देखो। मैं बचपन से ही कण्णन् एम्पेरुमान् (भगवान श्रीकृष्ण) की अराधना करती आ रही हूँ। उस चाहत से बडे हुए मेरे स्तन, हमेशा से ही द्वारका के राजा कण्णन् एम्पेरुमान के लिए हैं, यही सोचकर मैं प्रार्थना करती आ रही हूँ। तुम्हें मुझे जल्दी से उसके पास सौंपना होगा।

पांच्वा पासुरम्। आण्डाळ् कह रही है कि उसे एम्पेरुमान के अलावा अन्य किसी के साथ जुड़ना पड़ा तो वह जीवित नहीं रहगी।

वानिडै वाऴुम् अव्वानवर्क्कु म​ऱैयवर् वेळ्वियिल् वगुत्त अवि
कानिडैत् तिरिवदोर नरि पुगुन्दु कडप्पदुम् मोप्पदुम् सेय्वदोप्प​
ऊनिडै आऴि चङ्गु उत्तमर्क्केन्ऱु उन्नित्तु एऴुन्द एन् तडमुलैगळ्
मानिडवर्क्केन्ऱु पेच्चुप्पडिल् वाऴगिल्लेन् कण्डाय् मन्मदने

ओह मन्मथ! ब्राह्मण (इस दुनिया में) हविस (घी, दूध, दही आदि से बना प्रसाद) बनाते हैं ताकि अनुष्ठानों के समय स्वर्ग के देवताओं को अर्पित किया जा सके। जंगल में घूमता एक सियार यदि उसे पार करे या सूंघे तो चढ़ावा व्यर्थ जाता है। उसी तरह, मेरी अच्छी तरह से उठी हुई छाती पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ एम्पेरुमान के लिए है, जिनके दिव्य हाथों में दिव्य चक्र और दिव्य शंख हैं। हे मन्मथ​! अगर कोई इस स्तन को साधारण मनुष्य के लिए कहेंगे तो मैं जीवित नहीं रहूँगी।

छठवां पासुरम। जिस तरह एक व्यक्ति उन लोगों के साथ जुड़ जाता है जो पूरी तरह से सत्व गुण (विशुद्ध रूप से अच्छे गुणों) में बंधे हुए हों और वे एम्पेरुमान के अनुभव में एक साथ आगे बढ़ते हैं, उसी प्रकार यहाँ आण्डाळ्, भगवान को प्राप्त करने के लिए, मन्मथ से प्रार्थना करती है कि उन लोगों के साथ जुड़ सके जो कामशास्त्र (प्रेम पर ग्रंथ) में विशेषज्ञ हैं।

उरुवुडैयार् इळैयार्गळ् नल्लार् ओत्तु वल्लार्गळैक् कोण्डु वैगल्
तेरुविडै एदिर् कोण्डु पङ्गुनि नाळ् तिरुन्दवे नोऱकिन्ऱेन कामदेवा!
करुवुडै मुगिल्वण्णन् कायावण्णन् करुविळै पोल् वण्णन् कमल वण्णत्
तिरुवुडै मुगत्तिनिल् तिरुक्कण्गळाल् तिरुन्दवे नोक्केनेक्कु अरुळ् कण्डाय्

ओह मनमथ​! सुंदर रूप, युवा अवस्था, अच्छे आचरण और काम शास्त्र के विशेषज्ञों का आह्वान करते हुए, मैं उस गली में जाती हूँ जिसमें आप आते हैं, और पङ्गुनी (फाल्गुन)  के महीने में आपके त्यौहार के दौरान, मन में स्पष्टता के साथ आपकी पूजा करती हूँ । आपको मुझे ऐसा आशीर्वाद देना चाहिए कि वर्षाव करने वाले मेघ के और काया फूल के रंग के, जंगली लता के नीले रंग के फूलों के समान तेजस्वी, कमल की तरह दिव्य मुख वाले एम्पेरुमान् अपनी नेत्रों से मुझे कटाक्ष करें ।

सातवां पासुरम। इसमें, वह अनुरोध करती है कि एम्पेरुमान् त्रिविक्रमन् अपने दिव्य हाथों से उसे स्पर्श करें। वह बताती है कि उसकी भक्ति केवल भगवान के लिए है।

कायुडै नेल्लोडु करुम्बमैत्तुक् कट्टि अरिसि अवल् अमैत्तु
वायुडै म​ऱैयवर् मन्दिरत्ताल् मन्मदने! उन्नै वणङ्गुगिन्ऱेन्
तेस मुन्नळन्दवन् तिरिविक्किरमन् तिरुक्कैगळाल् एन्नैत् तीण्डुम् वण्णम्
सायुडै वयिऱुम् एन् तडमुलैयुम् तरणियिल् तलैप्पुग​ऴ् तरक्किट्रिये

ओह मनमथ​! मैं चावल, गुड़ और पोहे के साथ कच्चे फल और गन्ने पकाऊँगी, और उन लोगों के मंत्रों (भजन) के साथ आपकी पूजा करूंगी जिनकी आवाज मीठी है और जो कामशास्त्र में विशेषज्ञ हैं। जब महाबली के कारण जग पीडित हुआ, तब अपने दिव्य पैरों से इन तीनों लोकों को नाप लेने वाले उस एम्पेरुमान के दिव्य हाथों से मेरी आकर्षक पेट और मेरी कोमल स्तन को स्पर्श करे और मैं सदैव इस दुनिया में प्रसिद्ध रहूँ, ऐसा तुम कर दो।

आठवां पासुरम। इसमें, वह मनमथ से उसे भगवान के दिव्य चरणों की सेवा का आशीर्वाद देने के लिए कह रही है, जो उसके स्वरूप (मूल स्वभाव) के अनुरूप होगा।

मासुडै उडम्बोडु तलै उल​ऱि वाय्प्पुरम् वेळुत्तोरु पोदुमुण्डु
तेसुडैत् तिऱलुडैक् कामदेवा​! नोऱ्किन्ऱ नोन्बिनैक् कुऱिक्कोळ् कण्डाय्
पेसुवतु ओन्ऱु उण्डु इङ्गु एम्पेरुमान्! पेण्मैयैत् तलैयुडैत्तु आक्कुम् वण्णम्
केसव नम्बियैक् काल् पिडिप्पाळ् एन्नुम् इप्पेऱु एनक्करुळ् कण्डाय्

हे तेजस्वी और शक्तिशाली, मेरे स्वामी कामदेव! याद रखें कि मैं मलीन शरीर, खुले बाल, पीले होंठों के साथ एक बार भोजन करते हुए इस नोन्बु (व्रत) का अनुष्ठान कर रही हूँ। मुझे अब आपको कुछ बताना है। आपको एम्पेरुमान्, जिन्होंने केशी राक्षस को नष्ट कर दिया और जो अपने शुभ गुणों से संपन्न हैं, उनके दिव्य चरणों की सेवा का लाभ प्राप्त करने में मेरी मदद करनी चाहिए।

नौवां पासुरम। इसमें वह उन दुर्भाग्यों को प्रकट करती है जो उसकी सहायता न करने पर उसे प्राप्त होंगे।

तोऴुदु मुप्पोदुम् उन्नडि वणङ्गित् तूमलर् तूय्त् तोऴुदु एत्तुकिन्ऱेन्
प​ऴुदिन्ऱि पार्कडल् वण्णनुक्के पणि सेय्दु वाऴप् पेऱाविडिल् नान्
अऴुदऴुदु अलमन्दु अम्मा व​ऴङ्ग आट्रवुम् अदु उनक्कु उऱैक्कुम् कण्डाय्
उऴुवदोर् एरुत्तिनै नुकङ्गोडु पाय्न्दु ऊट्टमिन्ऱित् तुरन्दाल् ओक्कुमे

मैं दिन में तीन बार तुम्हें शीश झुकाकर प्रणाम प्रणाम करके, तुम्हारे चरणों में शुद्ध पुष्प अर्पित कर, तुम्हारी स्तुति पाठ कर रही हूँ। इस सन्सार को समुद्र की तरह धारण करने वाले भगवान की निष्कलंक सेवा की प्राप्ति और उत्थान यदि मुझे नहीं लाभा, तो मैं “हे माँ!” ऐसा विलाप करके बार-बार रोऊँगी, अविचल घूमूँगी, और इन सबका परिणाम तुम्हारे ऊपर आएगा। यह वैसा ही होगा जैसे कोई किसान अपने बैल से खेत में काम करवाए और उसे बिना खिलाए ही जूते से भगा दे।

दसवां पासुरम। वह इन दस पाशुरों को सीखने के लाभ बताते हुए दशक पूरा करती है।

करुप्पु विल् मलर्क् कणैक् काम वेळैक् क​ऴलिणै पणिन्दु अङ्गोर् करि अल​ऱ
मरुप्पिनै ओसित्तुप् पुळ्वाय् पिळन्द मणिवण्ण​ऱ्कु एन्नै वगुत्तिडेन्ऱु
पोरुप्पन्न माडम् पोलिन्दु तोन्ऱुम् पुदुवैयर् कोन् विट्टिचित्तन् कोदै
विरुप्पुडै इन्तमिऴ मालै वल्लार् विण्णवर् कोन् अडि नण्णुवरे

मैंने मनमथ के चरणों की वंदना की, जिसके पास गन्ने का धनुष और फूलों के बाण हैं। मैंने उससे मुझे कण्णन् एम्पेरुमान् के साथ मिलाने के लिए कहा था, जिन्होंने मथुरा में एक मल्लयुद्ध स्थल में आयोजित धनुष यज्ञ में, प्रवेश द्वार पर उपस्थित कुवलयापीठ हाथी का दन्त तोडा था, और जिसने बक के रूप में आए असुर का चोंच चीर दिया था। मुझे कण्णन् एम्पेरुमान्, जिनका दिव्य रूप नीले रत्न के समान है, उस भगवान के साथ जोड़े। मैं पहाड़ों की तरह दिखने वाले महलों से भरी हुई श्रीविल्लिपुत्तूर् के नेता पेरियाऴ्वार् की सुपुत्री कोदै (गोदा) हूँ। जो इन दस मीठे तमिऴ् पाशुरों को इच्छा से गाएँगे, वे नित्यसूरियों के नेता श्रीमन्नारायण के दिव्य चरणों को प्राप्त करेंगे।

अडियेन् वैष्णवी रामानुज दासी

आधार: https://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2020/05/nachchiyar-thirumozhi-1-simple/

archived in https://divyaprabandham.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment