उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर ४ – ६

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<< पासुर १ – ३

पासुर ४

चौथे पासुर में मामुनिगळ् ने, आऴ्वार् जिस क्रम में अवतरित हुए उस क्रम को बताया है।

पॊय्गैयार् भूतत्तार् पेयार् पुगऴ् मऴिसै
अय्यन् अरुळ् माऱन् सेरलर्कोन् – तुय्य भट्ट
नातन् अन्बर् ताळ् दूळि नऱ्-पाणन् नऱ्-कलियन्
ईदिवर् तोट्रत्तु अडैवाम् इङ्गु

आऴ्वारों के अवतरण का क्रम बताया गया- पोय्गै आऴ्वार्, भूतत् आऴ्वार्, पेय् आऴ्वार्, तिरुमऴिसै आऴ्वार् जो चिरस्थायी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। नम्माऴ्वार् जो अनुग्रह से परिपूर्ण हैं, कुलशेखर पेरुमाळ् जो चेरा राजाओं के कबीले के राजा हैं, पेरियाऴ्वार् जिनके पास शुद्ध हृदय है, तोण्डरडिप्पोडि आऴ्वार्, तिरुप्पाण् आऴ्वार् और तिरुमंङ्गै आऴ्वार् जो पूरी तरह से पवित्र हैं। 

पासुर ५

पांचवे पासुर में उन महीनों और नक्षत्रों को करुणा पूर्वक सूचीबद्ध किया जाएगा, जिनमें आऴ्वार् का अवतरण हुआ था। 

अन्दमिऴाल् नर्कलैगळ् आय्न्दुरैत्त आऴ्वार्गळ्
इन्द उलगिल् इरुळ् नीङ्ग – वन्दुदित्त
मादङ्गळ् नाळ्गळ् तम्मै मण्णुलगोर् ताम् अऱिय
ईदॆन्ऱु सॊल्लुवोम् याम्

आऴ्वारों ने वेद (पवित्र ग्रंथों) के गूढ़ अर्थों का विश्लेषण कर उनका निर्देश दिया, जिससे अज्ञान का अंधकार इस पृथ्वी से हट गया। आगे उन महीनों और दिनों को सूचित किया जाएगा, जिनमें आऴ्वारों का अवतरण हुआ था, ताकि समस्त संसार उन्हें जान सके। 

पासुर ६ 

छठे पासुर में पहले तीन आऴ्वारों के अवतार की महानता का वर्णन किया है, जिन्हें सामूहिक रूप से मुदल् आऴ्वार् (पहले आऴ्वार्) कहा जाता है। 

अय्प्पसियिल् ओणम् अविट्टम् सदयम् इवै
ऒप्पिलवा नाळ्गळ् उलगत्तीर् – ऎप्पुवियुम्
पेसु पुगऴ् पॊय्गैयार् भूतत्तार् पेयाऴ्वार्
तेसुडने तोन्ऱु सिऱप्पाल्

हे संसार के लोगों! जान लो। अय्प्पसी (आश्विन) महीने के तिरुवोणम् (श्रवण), अविट्टम् (धनिष्ठा), सदयम् (शतभिषा) नक्षत्रों के दिन अद्वितीय हैं। यह क्रमशः– वैभवशाली पोय्गै आऴ्वार्, भूदत्ताऴ्वार्, पेयाऴ्वार् के अवतार के कारण है। इन तीन आऴ्वारों को सभी के द्वारा मनाया जाता है।

अडियेन् दीपिका रामान्ज दासि

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