श्री: श्रीमते शटकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत वरवरमुनये नम:
उपदेशरत्न मालै के १५वे पासुरम में श्री मणवाळ मामुनिगळ वैकासि विसागम, नम्माळ्वार, तिरुवाईमोळी और तिरुक्कुरुगूर के वैभवों को विशिष्ट रूप में चित्रित करतें हैं.
उंडो वैकासि विसागत्तुक्कु ओप्पोरु नाळ
उंडो सडगोपर्कोप्पोरूवर – उंडों
तिरुवाईमोळीक्कोप्पु तेनकुरुगैकुंडो
ओरु पार तनिल ओक्कुम ऊर
सर्वेश्वर श्रीमन नारायण के और उन्के समृद्धि के प्रति मंगळासासनं कर महान्ता लाने वाले नम्माळ्वार के दिव्य जन्म दिवस वैकासि विसागं से अन्य कोई श्रेष्ट दिन हो सकती हैं? (नहीं) नम्माळ्वार दिव्यनाम से मानें जाने वाले शटकोप कि कोई तुलना की जा सकती हैं? (नहीं, सर्वेश्वरन, नित्यसूरिया, मुक्तात्मायें, भूलोक के निवासि कोई उनके समान नहीं हैं.) वेदों के सार को विस्तीर्ण रूप में प्रदर्शित करने वालें तिरुवाईमोळी कि समान कुछ हैं? (नहीं) आळ्वार को देनें वालें तिरुक्कुरुगूर के समान कोई नगर हैं ? (नहीं) यह ऐसा दिव्यदेश हैं जहाँ आदिनात पेरुमाळ और नम्माळ्वार कि समान महत्वपूर्णता हैं, यहाँ एम्पेरुमान कि आधिपत्य अर्चावतार रूप में दृश्य हैं, यह आळ्वार कि अवतार क्षेत्र हैं, यहीं पर उन्के दिव्य अवतार के ४००० सालों के पूर्व एम्पेरुमानार के दिव्य विग्रहं नम्माळ्वार के कृपा के कारण प्राप्त हुई तथा यहीं एम्पेरुमानार के पुनरवतार श्री मणवाळ मामुनिगळ के भी जन्म हुईं . ऐसी एम्पेरुमान, आळ्वार एवं आचार्यों से सम्बंधित और उनके वैभवों को अधिक करने वालें इस महत्वपूर्ण क्षेत्र कि वैभव कि तुलना अन्य किसी भी क्षेत्र से की नहीं जा सकती.
दिव्य ज्ञान तथा भक्ति से आशीर्वादित आळ्वारो के नेता नम्माळ्वार हैं। ये तिरुविरुत्तम, तिरुवासिरियम, पेरिय तिरुवन्दादि तथा तिरुवाईमोळी के ग्रंथकर्ता है। इन में से तिरुवाईमोळी हमारें पूर्वाचार्यों से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता हैं| मंत्रों में माणिक्य मानें जानें वालें द्वय महामंत्र की यह विस्तीर्ण अर्थ के रूप में हैं और इसकी तुलना साम वेद से की जाती हैं|
इस तिरुवाय्मोळी के व्याख्यान ग्रंथों को उपदेश रत्नमाला के ३९वे पासुरम में मामुनिगळ दिखातें हैं,
पिळ्ळान नन्जीयर पेरियवाच्चान्पिळ्ळै
तेळ्ळार वडक्कुतिरुविदीपिळ्ळै
मणवाळ योगि तिरुवाय्मोळियै कात्त
गुणवाळर एंरू नेंजे कूरु
हे ह्रदय! एम्पेरुमानार के पुत्र समान तिरुक्कुरुगुरपिरान पिळ्ळान, पराशर बट्टर के शिष्य वेदान्ति नन्जीयर, व्याख्यान चक्रवर्ती माने जाने वाले पेरिय वाचान्पिळ्ळै, नम्पिळ्ळै के प्रिय शिष्य और ज्ञानी वडक्कुतिरुवीदीपिळ्ळै, तथा पेरिय वाचान्पिळ्ळै से आशीर्वादित वादि केसरी अळगिय मणवाळ जीयर, इन सारे महात्मावों ने सम्प्रदाय के आधार द्वय महामन्त्र की विस्तीर्ण अर्थ तिरुवाय्मोळी की व्याख्यान किए हैं. नम्माळ्वार के दिव्य मुख से जनित, सम्प्रदाय के इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ की पालन एवं पोषण करने वाले महानों की जय.
आचार्य हृदयं के ३७ वें चूर्णिका में अळगिय मणवाळ पेरुमाळ नायनार, नम्माळ्वार और तिरुवाय्मोळि के विशेष महान्ता किवर्णन करते हुए कहतें हैं, “संदंगळ् आईरमुम अरिय कट्रू वल्लारानाल वैष्णवत्व सिद्धि”, अर्थात तिरुवाय्मोळि को परिपूर्ण रूप में अर्थ के संग जानकर, इस ज्ञान कि अभ्यास करने वालें श्रीवैष्णव मानें जाएँगे।
अत: इस्से यह समझ लेना चाहिए की हम श्रीवैष्णवों को तिरुवाय्मोळि सीखनी चाहिए और याद रखना चाहिए कि हमारें संप्रदाय में सर्वत्र आचार्य के द्वारा ही सीखनी चाहिए।
प्रतिदिन जब तिरुवाय्मोळि की अनुसंधान न की जा सकती हैं, तब हमारें पूर्वजो के व्यवस्थानुसार कोयिल तिरुवाय्मोळि जो तिरुवाय्मोळि के मुख्य पदिगम की संग्रह है, उस्की अनुसंधान की जा सकती हैं. भिन्न भिन्न दिव्यदेशों में इस्की पद्धति भिन्न है पर हम यहाँ अधिकतर क्षेत्रों के अनुसंधान क्रम पर आधारित पदिगम को पूर्वाचार्यों के व्याख्यानों के सात देखेंगें.
- तनियन्
- 1.1 – उयर्वर
- 1.2 – वीडुमिन्
- 2.10 – किळरोळि
- 3.3 – ओळिविल्
- 4.1 – ओरुनायगमाय
- 4.10 – ओन्रु
- 5.5 – एङ्गनेयो
- 5.7 – नोत्त
- 5.8 – आरावमुदे
- 6.10 – उलगमुण्ड
- 7.2 – कङ्गुलुम
- 7.4 – आळियेळ
- 8.10 – नेडुमर्कु
- 9.10 – मलैनण्णि
- 10.1 – ताळतामरै
- 10.7 – सेनोल
- 10.8 – तिरुमालिरुंजोलै
- 10.9 – सूळ्विसुम्बु
- 10.10 – मुनिये
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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