SrI: SrImathE SatakOpAya nama: SrImathE rAmAnujAya nama: SrImath varavaramunayE nama:
SrI rAmAnuja – SrIrangam
maNavALa mAmunigaL – SrIrangam
SrI: SrImathE SatakOpAya nama: SrImathE rAmAnujAya nama: SrImath varavaramunayE nama:
SrI rAmAnuja – SrIrangam
maNavALa mAmunigaL – SrIrangam
श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
आर्ति प्रबंधं के इस अंतिम पासुरम में मामुनिगळ विचार करतें हैं, “ हमें अपने लक्ष्य के विषय में और क्यों तृष्णा हैं? पेरिय पेरुमाळ से श्री रामानुज को सौंपें गए सर्वत्र, श्री रामानुज के चरण कमलों में उपस्थित उन्के सारे बच्चों के भी हैं।” यहीं अत्यंत ख़ुशी प्रकट करतीं हैं इस अति अद्भुध ग्रंथ की अंतिम पासुरम।
मणवाळ मामुनिगळ तिरुवडिगळे शरणम!
इंद अरंगत्तु इनिदु इरु नीयेन्ड्रु अरंगर
एंदै एतिरासर्क्कींद वरं सिंदै सैय्यिल
नम्मदंरो नेंजमे नट्रादै सोमपुदल्वर
तम्मदंरो तायमुरै तान
अरंगर – पेरिय पेरुमाळ
इंद अरंगत्तु – कोयिल (श्रीरंगम) में
इनिदु इरु नीयेन्ड्रु – “श्रीरंगे सुखमास्व” (श्रीरंगम में सुखी रहो )कहें
एंदै एतिरासर्क्कु – मेरे पिता एम्पेरुमानार (से)
नेंजमे – हे मेरे हृदय
सिंदै सैय्यिल – अगर हम इस पर विचार करें तो
इंद वरं – पेरिय पेरुमाळ से एम्पेरुमानार को सौंपे गए वरदान
नम्मदंरो – क्या यह सच नहीं हैं कि यह वर हमारा भी है ?
नट्रादै – एम्पेरुमानार हमारें पिता
तायमुरै तान – क्योंकि हमारें माता-पिता के
सोमपुदल्वर तम्मदंरो – संपत्ति खुद बच्चों को जाता हैं
(मामुनि अपने हृदय को कहतें हैं, “ अत: हे मेरे प्रिय हृदय। अब हमारे लिए करने केलिए कुछ नहीं हैं, हमारा भोज अब भोज न रहा , क्योंकि श्री रामानुज कृपा से वर देकर, संकटों को मिटा चुके हैं।”)
पेरिय पेरुमाल श्री रामानुज को नित्य विभूति (परमपद) और लीला विभूति (परमपद से अन्य सर्वत्र) अपनी सारी संपत्ति सौंपे। इसीलिए धाटी पञ्चकं के ५वे श्लोक से श्री रामानुज, “श्री विष्णु लोक मणि मण्डप मार्ग दायी” कहलातें हैं। एम्पेरुमानार सारें प्रपन्नों के नेता हैं और इन्हीं के प्रति “जीयर” तथा “यतींद्र प्रवणर” दिव्य नामों से पहचाने जाने वाले मणवाळ मामुनिगळ ने प्रपत्ति किया। मामुनि को सर्व श्रेष्ट और अंतिम लक्ष्य परमपदं प्राप्त हुआ और वहाँ भगवान और भागवतों के प्रति नित्य कैंकर्य भी मिला। इसका अर्थ यह है कि यहीं फल हर किसी को मिलेगा जो एम्पेरुमानार के सद्भाव के पात्र हैं। अर्थात श्री रामानुज के दिव्य चरण कमलों में शरणागति करने पर हर किसी को उनका प्रेम तथा आश्रय प्राप्त होगा जो उन्हें नित्यानंद का निवास परमपदं तक पहुँचायेगा।
इस अंतिम पासुरं में श्री रामानुज के संबंध के कारण, प्रार्थना किये गए सारें वरों के प्राप्ति निश्चित होने के कारण मामुनि आनंद में हैं। यह संभव हैं क्योंकि, जैसे गद्य त्रयं के पँक्तियो से प्रकट होता हैं : पेरिय पेरुमाळ ने अपनी सारे संपत्ति एम्पेरुमानार को सौंप दिए। एम्पेरुमानार के वत्स होने के कारण मामुनि को ख़ुशी है कि पेरिय पेरुमाळ से एम्पेरुमानार को सौंपे गए वे सारे विषय( शेष जीवन के समय में यहाँ कैंकर्य से लेकर परमपदं में नित्य कैंकर्य तक) वें (मामुनि) भी अनुभव कर सकतें हैं।
मामुनि अपने हृदय को कहतें हैं, “हे मेरे प्रिय हृदय, “शरणागति गद्य” के शब्दों को स्मरण करतें हुए, हमारे पिता एम्पेरुमानार को पेरिय पेरुमाळ नें जो बताया उस विषय पर ध्यान करो। पहले पेरुमाळ कहें, “द्वयं अर्थानुसन्धानेन सहसदैवं वक्ता यावच्चरीर पादं अत्रैव श्रीरँगे सुखमास्व” . इस्के पश्चात “शरीर पाद समयेतु” से शुरु और “नित्यकिंकरो भविष्यसि माते भूतत्र समशय: इति मयैव ह्युक्तम अतस्तवं तव तत्वतो मत्ज्ञान दरशनप्राप्तिशु निसशंसय: सुखमास्व” तक पेरुमाळ कहतें हैं। पेरिय पेरुमाळ हमारे पिता एम्पेरुमानार को शेष जीवन केलिए आवश्यक विषय(कैंकर्य ) तथा परमपदं में कैंकर्य भी सौंपे। विचार करने से एहसास होता हैं कि एम्पेरुमानार के बच्चें होने के कारण हमें भी यह सब प्राप्त होगा। अत: प्रिय हृदय, खुद के रक्षा हेतु हमें कुछ भी नहीं करना है। अत: एम्पेरुमानार के कृपा के कारण हमें सर्व प्राप्त होगा। पेरिय पेरुमाळ परमपद जो नित्य विभूति है और अन्य सारा सृष्टि जो लीला विभूति है दोनों को एम्पेरुमानार को सौंपे। इसीलिए एम्पेरुमानार, धाटी पञ्चकं के ५वे श्लोक “श्री विष्णु लोक मणि मण्डप मार्ग दायी” से प्रशंसा किये जातें हैं। एम्पेरुमानार प्रपन्नों के नेता हैं और उन्के प्रति “जीयर” तथा “यतींद्र प्रवणर”नाम से पहचाने जाने वाले मणवाळ मामुनिगळ शरणागति किये। उन्हें परमपद पहुँच कर भगवान तथा भागवतों को नित्य कैंकर्य करने का सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य प्राप्त हुआ। अर्थात यहीं फल एम्पेरुमानार से सम्बंधित और उन्के सद्भाव के पात्र सारे जनों को यह प्राप्त होगा. और इससे हम समझ सकतें हैं कि एम्पेरुमानार के दिव्य चरण कमलों में शरणागति करने वाले सारे लोगो को स्वामि रामानुज के प्रेम और आश्रय प्राप्त होगा और इस दिव्य शुरुवात के संग ही वें सब निश्चित रूप में नित्यानंद की निवास परमपद को हमेशा केलिए प्राप्त करेँगे।
अनेकों बार एतिरासा! एतिरासा! पुकार कर मामुनिगळ यह संदेश देतें हैं कि एम्पेरुमानार यतियों के नेता हैं। उन्के सारे शिष्य स्वामि यतिराज के दिव्य नामों को लगातार जप कर उन्को प्रशँसा करतें हैं। स्वामि के शिष्य होने के कारण, मामुनि “यद्यसुधसत्व:” के अनुसार यतिराज के दिव्य नामों को जपना अपना हक़ समझतें हैं। इसलिए मामुनिगळ हमें भी जपने को कहतें हैं:“एतिरासा! एतिरासा !
जीयर तिरुवडिगळे शरणं
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
पिछले पासुरम के “तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै वासमलर ताळ अडैंद वत्तु” से मामुनि खुद को तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै के चरण कमलों को चाहनें वाले वस्तु घोषित करतें हैं। वें आगे कहतें हैं कि तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै के संबंध (आचार्य और शिष्य) से ही वें श्रीरामानुज के संबंध की महत्वपूर्णता को पेहचान और समझ सकें।
एंदै तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै इन्नरुळाल
उंदन उरवै उणर्तिय पिन इंद उयिर्क्कु
एल्ला उरवुम नी एनड्रे एतिरासा
निल्लाददु उनडो एन नेंजु
एंदै – (मामुनिगळ कहतें हैं) “ एक कहावत हैं: “तिरुमंत्र मातावुम पिता आचार्ययनुम एनड्रु अरुळि चेयवर्गल’ . इसके आधार पर मेरे पिता तिरुवाईमोळिपिळ्ळै।
तिरुवाईमोळिपिळ्ळै – उन्के
इन्नरुळाल – निर्हेतुक कृपा
उंदन उरवै – (मुझे समझाएं) आपके चरण कमलों में उपस्थित सारे संबंध
इंद उयिर्क्कु – जो इस आत्मा से जुड़े हैं
उणर्तिय पिन – मेरे अज्ञान को मुझे
एतिरासा – हे एम्पेरुमानार !
नी एनरे – आप ही तो हैं?
एल्ला उरवुम – तिरुमंत्र में कहे गए सारे बंधन?
एन नेंजु निल्लाददु उनडो – क्या ऐसा भी समय आयेगा जब मेरे हृदय में शंका उठेगा ( उत्तर हैं: कभी नहीं ). यहाँ “तंदै नट्राय तारम तनयर पेरुंजेल्वम एन्दनुक्कु नीये” तथा “अल्लाद सुट्रमागी” को याद करना है।
मामुनि कहतें हैं कि उन्के आचार्य और आत्मिक पिता तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै के कृपा से ही उन्हें श्री रामानुज के संग उपस्थित अपने सारे रिश्तों का एहसास हुआ। आचार्य कृपा में अज्ञान मिटाकर रक्षा किया। इस्के पश्चात मामुनि प्रश्न करतें हैं कि: क्या ऐसा भी समय आएगा जब उनका मन अपने दृढ़ विशवास से हिलेगा ? और इस्का निश्चित उत्तर है : कभी नहीं।
मामुनि कहतें हैं, “ एक कहावत है:तिरुमंत्र मातावुम पिता आचार्ययनुम एनड्रु अरुळि चेयवर्गल। उसके आधार पर मेरे आत्मिक पिता तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै के निर्हेतुक कृपा ने ही आप्के (श्री रामानुज के) चरण कमलों के संग उपस्थित इस आत्मा के सारें बंधनों को समझाये। हे एम्पेरुमानार! मेरे अज्ञान को मिटाकर मेरी रक्षा करने वाले आप ही तो तिरुमंत्र में सारे बंधनों के रूप में कहें गए हैं। क्या ऐसा भी समय आएगा जब उनका मन अपने दृढ़ विशवास से हिलेगा ?(और इस्का निश्चित उत्तर है : कभी नहीं). इस क्षण में (आर्ति प्रबंधं ३)”तंदै नट्राय तारम तनयर पेरुंजेल्वमएन्दनुक्कु नीये ” तथा (आर्ति प्रबंधं ५४) “अल्लाद सुट्रमागी” का अवश्य स्मरण करें।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
मामुनिगळ इस पासुरम में श्री रामानुज के एक काल्पनिक प्रश्न कि उत्तर प्रस्तुत करतें हैं। श्री रामानुज के प्रश्न:” हे मामुनि! हम आपके विनम्र प्रार्थनाओं को सुनें। आप किस आधार पर , किसके सिफ़ारिश पर मुझें ये प्रार्थना कर रहें हैं ?” मामुनि उत्तर में कहतें हैं, “मेरे आचार्य तिरुवाय्मोळिपिळ्ळै के दिव्य शरण कमलों में शरणागति करने के बाद खुद को एक उचित वस्तु ही समझा। मेरे पास वही एकमात्र योग्यता और रत्न हैं। “यतीश्वर श्रुणु श्रीमन कृपया परया तव” के प्रकार कृपया मेरे इन नीच शब्दों को सुनें।
पासुरम ५७
देसिगरगळ पोठ्रुम तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै
वासमलर ताळ अड़ैंद वत्तुवेन्नुम
नेसत्ताल एन पिळैगळ काणा एतिरासरे
अडियेन पुनपगरवै केळुम पोरुत्तु
शब्दार्थ:
वासमलर ताळ अड़ैंद वत्तुवेन्नुम – मैं एक वस्तु हूँ जिसने शरणागति किया , सुंगंधित और कोमल दिव्य चरण कमलों में
देसिगरगळ पोट्रुम तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै – तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै के। उन्हें हमारें पूर्वज, “सेंतमिळ वेद तिरुमलैयाळवार वाळि” से प्रशंसा करतें हैं। वें नम्माळ्वार के प्रति गहरे और अटल सेवा भाव के संग थे और अपने जीवन आळ्वार के पासुरमो के सहारे ही बिताते थे।
नेसत्ताल – इस संबंध के कारण
एतिरासरे – एम्पेरुमानारे
केळुम – कृपया सुनिए
अडियेन – मेरे
पुनपगरवै – नीच शब्द
एन पिळैगळ काणा – मेरे दोषों को देखे बिना
पोरुत्तु – गुस्से के बिना
सरल अनुवाद
मामुनि श्री रामानुज को (मामुनि के आचार्य)तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै के संग उपस्थित अपने संबंध को देखने केलिए विनति करतें हैं।वे गुस्से के बिना अपने दोषों को उपेक्षा कर अपनी नीच शब्दों को सुन्ने केलिए श्री रामानुज से विनती करतें हैं।
स्पष्टीकरण
श्री रामानुज मामुनिगळ से कहतें हैं, “ सेंतमिळ वेद तिरुमलैयाळवार वाळि” से प्रशंसाा किये जाने वाले तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै के सुगंधित कोमल दिव्य चरण कमलों में शरणागति अनुसंधान किये वस्तु हूँ मैं। तिरुवाईमोळिप्पिळ्ळै ऐसे आचार्य हैं जिन्होंने नम्माळ्वार और उन्के ग्रंथों के प्रति गहरे और अटल सेवा भाव प्रकट किया था। वे नम्माळ्वार के अमृत समान पासुरमो के स्मरण में ही अपना जीवन बिताएं।
हे एम्पेरुमानार! आपसे यह विनती हैं की मेरे आचार्य तिरुवाईमोळिपिळ्ळै के संबंध के कारण आप मेरे दोषों को उपेक्षा करें और बिना क्रोध के मेरे नीच शब्दों को सुनें।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
पिछले पासुरम में, मामुनि ने, “मदुरकवि सोरपडिये निलयाग पेट्रोम” गाया था। उस्के संबंध में और अगले पद के रूप में , इस पासुरम में वें एम्पेरुमानार के दिव्य चरण कमलों में नित्य कैंकर्य की प्रार्थना करतें हैं।
पासुरम ५६
उनदन अभिमानमें उत्तारकम एन्ड्रु
सिँदै तेळिंदिरुक्क सेयद नी
अंदो एतिरासा नोयगळाल एन्नै नलक्कामल
सदिराग निन तिरुत्ताळ ता
एतिरासा – हे यतियों के नेता
उनदन अभिमानमें उत्तारकम एन्ड्रु – मेरे प्रति जो भक्ति और ध्यान आपने दिखाया हे यतिराजा वहीं मेरे आत्मा के उन्नति का सबसे महत्वपूर्ण कारण हैं। इसी को पिळ्ळैलोकाचार्यार श्रीवचनभूषणं के ४४७ वे सूत्र में प्रस्ताव करतें हैं, : “आचार्य अभिमानमे उत्तारकम”
सिँदै तेळिंदिरुक्क सेयद नी – तिरुवाय्मोळि के ७.५.११ वे पासुरम , “तेळिवुठृ सिंदैयर” के अनुसार, आप (श्री रामानुज) ने मुझे सदा निरमल हृदय प्राप्त होने का आशीर्वाद किया
अंदो – हो !
ता – आप को ही देना हैं
एन्नै – मुझे
सदिराग – बुद्धिमान के प्रकार
निन तिरुत्ताळ – ( कैंकर्य के संग) आपके चरण कमलों के प्रति
नलक्कामल – हानि के बिना
नोयगळाल – पीड़ाओं से
मामुनि एम्पेरुमानार के प्रति कैंकर्य प्रार्थना करतें हैं. पिछले पासुरम के, “मदुरकवि सोरपडिये निलयाग पेट्रोम” का अगला पग है यह। वे कहतें हैं कि एम्पेरुमानार ने ही उनको सिखाया कि: “ आचार्य के तुम्हारे प्रति विचार क्या हैं और तुम्हारे भलाई के विचार में कितने दिलचस्प हैं , यही सबसे महत्वपूर्ण बात है!” . और यह ज्ञान भी श्री रामानुज के अनुग्रह से ही मुझे हुआ हैं। इससे मामुनि अपने सारे पीड़ाओं को मिटा कर आश्रय देने केलिए एम्पेरुमानार से प्रार्थना करतें हैं।
मामुनि कहतें हैं, “हे यतियों के नेता! “आचार्य अभिमानमे उत्तारकम” ( पिळ्ळैलोकाचार्यार के श्रीवचनभूषणं के ४४७ वे सूत्र ) का अर्थ आप ही ने मुझे दिया। उससे पता चलता हैं की मेरे प्रति आपका प्रेम और भक्ति ही मेरे लिए सर्व श्रेष्ट विषय है। तिरुवाय्मोळि के ७.५.११ वे पासुरम , “तेळिवुट्र सिंदैयर” में चित्रित यह ज्ञान मेरे हृदय में अटल है। आपके आशीर्वाद से मैं उसी प्रकार अपना जीवन जी रहा हूँ। कृपया इस सँसार में मेरी पीड़ा न बढ़ाए। आपके शरणागति गद्य के “सुखेनेमाम प्रकृतिं स्तूल सूक्ष्म रूपं विसृज्य” के अनुसार, आप कृपया मुझे अपने चरण कमलों में ले और ,” उन पद युगमाम येर कोन्ड वीडु (रामानुस नूट्रन्दादि ८३) के प्रकार उनके प्रति कैंकर्य दें।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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संगृहीत- http://divyaprabandham.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org
श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
एक सच्चे शिष्य और अटल सेवक को दो विषयों की ज्ञान होनी चाहिए
१) उस्के लाभार्थ मात्र आचार्य ने कृपा से किये सारे विषय
२) भविष्य में आचार्य से मिलने वाली विषयों में दिलचस्पी
इन दोनों में से पहले विषय कि यह पासुरम विवरण हैं। मामुनि ,श्री रामानुज से मिले सारे लाभार्थ और उन्के मिलने कि कारण जो श्री रामानुज के कृपा हैं, दोनों का गुण-गान करतें हैं।
तेन्नरंगर सीर अरुळुक्कु इलक्काग पेट्रोम
तिरुवरंगम तिरुपतिये इरूप्पाग पेट्रोम
मंनीय सीर मारनकलै उणवाग पेट्रोम
मदुरकवि सोरपड़िये निलैयाग पेट्रोम
मुन्नवराम नम कुरवर मोळिगळुळ्ळ पेट्रोम
मुळुदुम नमक्कवै पोळुदुपोक्काग पेट्रोम
पिन्नै ओन्ड्रु तनिल नेंजु पेरामरपेट्रोम
पिरर मिनुक्कम पोरामयिला पेरुमैयुम पेट्रोमे!
इलक्काग पेट्रोम – ( हम) लक्ष्य बने
सीर अरुळुक्कु- निर्हेतुक कृपा
तेन्नरंगर – पेरिय पेरुमाळ (के) , जो शयन अवस्था में, दक्षिण दिशा में स्थित श्रीलंका को देख रहें हैं , कोयिल नामक रम्य जगह में हैं जहाँ वे अपने भक्तों को आशीर्वाद कर आकर्षित कर रहें हैं। ( अरुळ कोडुतिट्टू अडियवरै आठकोळवान अमरुम ऊर, पेरियाळ्वार तिरुमोळि ४.९.३)
इरूप्पाग पेट्रोम – (हमें) निरंतर निवासी बनने का श्रेयसी अवसर
तिरुवरंगम तिरुपतिये – “ तेन्नाडुम वडनाडुम तोळ निन्ड्र तिरुवरंगम तिरूप्पति ( पेरियाळवार तिरुमोळि ४.९.११), “आरामम सूळंद अरंगम (सिरिय तिरुमडल ७१)” , “ तलैयरंगम (इरंडाम तिरुवंदादि ७०)” से वर्णन किये गए श्रीरंगम। यहीं १०८ दिव्यदेशों में प्रधान है।
उणवाग पेट्रोम – खाने के रूप में (हम )पायें
कलै – अमृत जैसे पासुरम
मारन – नम्माळ्वार (के)
मंनीय सीर – परभक्ति जैसे शुभ गुणों से भरपूर
निलैयाग पेट्रोम – “ यतीन्द्रमेव नीरंद्रम हिशेवे दैवतंबरम” से प्रशंसा किये गए अंतिम स्थिति “चरम पर्व निष्टै” को हम पायें। “उन्नयोळिय ओरु देयवं मट्ररिया मन्नुपुगळ् सेर वडुगनम्बि तन्निलैयै (आर्ति प्रबंधं ११) जैसे पंक्तियों से हम इसके बारें में बात करने लगें।
सोरपड़िये – चरम पर्व निष्टै का यह भाव और उपाय (“आचार्य हि हैं सब कुछ ” जैसे मानना) लिया गया हैं
मदुरकवि – मदुरकवि आळ्वार (के शब्दों से ) जिन्होनें , “तेवु मट्ररियेन” (कण्णिनुन सिरुत्ताम्बु २) गाया था (उन्के नियमों का पालन करने का अवसर हमें मिला)
मुन्नवराम नम कुरवर मोळिगळुळ्ळ पेट्रोम – हमारें पूर्वजों के दिव्य ग्रंतों के सहारें हम जीतें हैं, उन्हीं के भल स्वास लेते हैं। आळ्वारों से दिखाए गए मार्ग में अपने जीवन बनाने वाले आचार्यों के ग्रंथ हैं ये।
मुळुदुम नमक्कवै पोळुदुपोक्काग पेट्रोम – हमारें पूर्वजों के इन ग्रंथों के सिवाय हमारा ध्यान किसी अन्य विषय में नहीं जाता। इन्हीं पर हम अपने सारा समय बिताते हैं।
पिन्नै नेंजु पेरामरपेट्रोम – इन्हीं विषयों में मग्न, हमारें हृदय और बुद्धि कभी पीछे न गयी
ओन्ड्रु तनिल – अन्य किसी ग्रंथों के
पिरर मिनुक्कम पोरामयिला – यहाँ कहें गए, श्री रामानुज के कृपा से मिली गुणों से बड्कर और भी एक हैं। ऐसे गुणों से भरपूर श्रीवैष्णवो के प्रति , “ इप्पडि इरुक्कुम श्रीवैषणवर्गळ येट्रम अरिंदु उगंदु इरुक्कयुम (मुमुक्षुपड़ि द्वय प्रकरणम ११६)” के अनुसार हमें ईर्ष्या नहीं होतीं हैं। श्री रामानुज के कृपा से हमें मिलने वालि श्रेयस यह हैं।
पेरुमैयुम पेट्रोमे! – यह हमें मिला ! कितनी भाग्य कि विषय है जो श्री रामानुज के निर्हेतुक कृपा के हम पात्र बने।
इस पासुरम में मामुनि के कृपा का प्रशंसा करतें हैं। उनका मानना है की श्री रामानुज के निर्हेतुक कृपा के कारण ही उन्हें (मामुनि को) तोडा भी अच्छे गुण प्राप्त हुए। पहलें उन्हें और उन्के संबंधित जनों को पेरिय पेरुमाळ का आशीर्वाद मिला, और १०८ दिव्यदेशों में सर्वश्रेष्ठ क्षेत्र श्रीरंगम में वास करने का भाग्य मिला, दिन और रात नम्माळ्वार के दिव्य ग्रंथों को ही खाने, पीने और स्वास के समान लेने का अवसर मिला। मदुरकवि के चरम पर्व निष्टै“आचार्य हि हैं सब कुछ ” जैसे मानना) धर्म के अनुसार जीने का भाग्य मिला। आळ्वारो के मार्ग अपनाने वाले आचार्यों के ग्रंथो के अनुसार जीये। वें श्रीवैष्णव ग्रंथों के अलावा किसी भी ओर नहीं गए और अपना जीवन इनके सहारें बिताते हैं। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन गुणों से भरे श्रीवैष्णव को मिलने पर तोडा सा भी ईर्ष्या नहीं होतीं, बल्कि अत्यंत ख़ुशी होतीं हैं। मामुनि कहतें हैं कि यह परम भाग्य श्री रामानुज के असीमित निर्हेतुक कृपा के कारण ही उन्हें प्राप्त हुआ।
मामुनि कहतें हैं कि, “ शयन अवस्ता में दक्षिण दिशा में स्थित लँका के ओर अपने दिव्य मुख दिखाकर, अति रम्यमय कोयिल नामक श्रीरंगम (जहाँ पेरुमाळ अपने अनुग्रह और आशीर्वाद से लोगों को आकर्षक करतें हैं) के पेरिय पेरुमाळ के निर्हेतुक कृपा के पात्र बने : “अरुळ कोडुत्तिटटु अडियवरै आठकोळवान अमरुम ऊर (पेरियाळ्वार तिरुमोळि ४.९.३) . “तेन्नाडुम वडनाडुम तोळ निंर तिरुवरंगम तिरुप्पति (पेरियाळ्वार तिरुमोळि ४.९.११)” , “आरामम सूळंद अरंगम (सिरिय तिरुमडल ७१)” , “ तलैयरंगम (इरंडाम तिरुवन्दादि ७०)” से चित्रित श्रीरंगम में हमें नित्य वासी बन्ने का अध्बुध अवसर मिला। यहीं १०८ दिव्यदेशों में सर्वश्रेष्ठ है। भगवान् को माला और हमें अमृत समान (परभक्ति इत्यादि कल्याण गुणों से भरपूर) नम्माळ्वार के पासुरम हमारें भोजन हैं। “यतीन्द्रमेव नीरन्द्रम हिशेवे दैवतम्बरम” से वर्णित “चरम पर्व निष्टै” स्थिति को हम प्राप्त किये। “उन्नैयोळिय ओरु देयवं मट्ररिया मन्नुपुगळ सेर वडुगनम्बि तन्निलैयै (आर्ति प्रबंधं ११)” जैसे विषयों को हम आपस मे बातचीत करने लगें। यह धर्म हमें मदुरकवि के दिव्य शब्दों से ही मिला: “तेवु मट्ररियेन(कण्णिनुन सिरुत्ताम्बु २)” . मदुरकवि के श्रेयस को हम “अवरगळै चिरित्तिरुप्पार ओरुवर उंडिरे” (श्री वचन भूषणम ४०९) से जान सकतें हैं , जिसका अर्थ है : बाकि १० आळ्वारों पर मदुरकवि हॅसते हैं क्योंकि, जहाँ बाकि १० आळ्वार पेरुमाळ को सीधे उन्हीं के द्वारा पहुँचते हैं, मदुरकवि को नम्माळ्वार के अलावा कुछ नहीं पता है) . हमें हमारे पूर्वजों के ग्रंथों और दिव्य अर्थों के भल ही जीना है , साँस लेना है। ये पूर्वज, आळ्वारों से दिखाये गए मार्ग में चलने वाले आचार्य हैं। इन्हीं ग्रंथों के विचार में हम अपना समय बिताते हैं और इन्से हमारा बुद्धि कहीं और नहीं जाता हैं। हमारे आचार्यों के ही ग्रंथों में मग्न होने के कारण हमारे हृदय और बुद्धि किसी और के सिद्धांतों में नहीं जाता ।
यह सारें नेक गुण एम्पेरुमानार के कृपा से ही हम पायें। इन्हीं गुणों से भर्पूर बड़ी कठिनाई से कोई और श्रीवैष्णव से मिलने पर भी, उन्के प्रति तोड़ी सी ईर्ष्या भी हम में नहीं होतीं हैं। इसको मुमुक्षपडी के द्वयप्रकरणम (११६ वे सूत्र) में, “ इप्पडि इरुक्कुं श्रीवैष्णवरगळ येट्रम अरिंदु उगंदु इरुक्कयुम ( मुमुक्षपडी द्वयप्रकरणम ११६)” कहा गया हैं। और यह श्रेयस श्री रामानुज के कृपा से ही हमें प्राप्त हुआ है। आह! श्री रामानुज के निर्हेतुक कृपा के कारण, यह हमें कैसा सौभाग्य से यह मिला हैं।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
पिछले पासुरम में मामुनि श्री रामानुज से खुद सुधार कर इस सँसार से विमुक्त करने की प्रार्थना को ज़ारी रखें। मामुनि जानते हैं की श्री रामानुज उनकी प्रार्थना को पूरा करेँगे, किंतु “ ओरु पगल आयिरम ऊळियाय” (तिरुवाय्मोळि १०.३.१) के अनुसार, मामुनि को हर पल एक युग के समान है। अत: वे श्री रामानुज से प्रार्थना करतें हैं, “आप मेरे सर्व प्रकार बंधु होने के कारण, कृपया मुझे शरीर से संबंधित सारें पीड़ाओं को और न बुगतने दें। न जानें आप मुझे यहाँ से कब मुक्ति दिलाकर, नित्यानंद का निवास परमपद ले जाएँगे।
इन्नम एत्तनै नाळ इव्वुडमबुडन
इरुंदु नोवु पडक्कडवेन अैयो
एन्नै इदिनिनड्रुम विडुवित्तु नीर
एन्ड्रु तान तिरुनाट्टीनुळ येट्रूवीर
अन्नैयुम अत्तनुम अल्लाद सुट्रमुम आगि
एन्नै अळित्तरुळ नादने
एन इदत्तै इरापगल इन्ड्रिये
एगमेण्णुम एतिरासा वळ्ळले!
नादने – हे मेरे स्वामि
अळित्तरुळ – ( आप) आशीर्वाद करतें हैं
एन्नै – मुझें
आगि – होकर मेरे
अन्नैयुम – प्रेम बरसने वाली माता
अत्तनुम – हित करने वाले पिता
अल्लाद सुट्रमुम – सारें बंधुओं के रूप में होते हुए
एतिरासा वळ्ळले! – यतियों के महानुभाव नेता जो एम्पेरुमानार जाने जातें हैं
इरापगल इन्ड्रिये एगमेण्णुम – जो दिन और रात पूरे ध्यान के सात सोचतें हैं
एन – मेरे
इदत्तै – आशाओं को ( उन्हीं को जो मेरेलिए अच्छे हैं)
(आपके दिव्य चरण कमलों में गिरने के बाद भी )
एत्तनै नाळ – कितने
इन्नम – देर
नोवु पडक्कडवेन – मुझें कष्ट झेलना है
इव्वुडमबुडन इरुंदु – इस शरीर के सात
अैयो – हो !
विडुवित्तु – कृपया मुक्ति दीजिये
एन्नै – मुझे
इदिनिनड्रुम – इस शरीर से जो बाधा बनकर रहता है
एन्ड्रु तान – कब
नीर – आप
येट्रूवीर – छड़ायेंगे
तिरुनाट्टीनुळ – परमपदम् ?
इस पासुरम में मामुनि कहतें हैं कि एम्पेरुमानार उन्के माता, पिता और सारे बंधु हैं और हमेशा मामुनि के भलाई कि ही सोचतें हैं। इसलिए मामुनि विनति करतें हैं कि वे कब इस बंधन से छुटकारा पाकर नित्यानंद की जगह परमपद पहुँचेंगे ? और कितने समय तक इस शरीर में इस सँसार में संकट झेलना हैं ?
मधुरकवि आळवार के (कँणिनुन सिरुत्ताम्बु ४ ) “अन्नैयाय अत्तनाइ एन्नै आँडिडुम तनमैयान” के भाव को प्रतिबिंब करतें हुए मामुनि कहतें हैं , “हे एम्पेरुमानार! आप ही असीमित प्रेम देने वाली माता हैं और आप ही मेरे लिए हित के ही आशा करने वाले मेरे पिता भी हैं। सन्मार्ग में पधारने वाले आत्म बंधु भी आप ही हैं। यतियों के नेता हैं आप। (तिरुवाय्मोळि ९.३.७) के “एन मनमेगमेन्नुम इरापगलिनरिये” के प्रकार अविभज्य ध्यान से दिन और रात मेरे हित के विचार में ही आप लगें हैं। (तिरुवाय्मोळि ५. ८.१०)” उनक्काटपट्टुम अडियेन इन्नुम उळलवेनों ?” के अनुसार आपके दिव्य चरण कमलों में शरणागति करने के बाद भी, इस शारीरिक संबंध से और कितने समय तक इस तुच्छ सँसार में रहना है स्वामी? अहो! इस शरीर नामक बाधा से मुक्त कर, नित्यानंद स्थल जो परमपद है , कब मुझे वहाँ भेझेंगे? वह दिन अद्वितीय दिन होगा। “वळळल” वें कहलातें है जिन्के भले कर्मों के किसी भी प्रकार प्रतिदान न किया जा सकता।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
पिछले पासुरम में मामुनि अपने अंतिम दिशा को वर्णन करते समय, पेरिय पेरुमाळ के गरुड़ में सवार उन्के (मामुनि को दर्शन देनें) यहाँ आने की बात भी बताया। इससे यह प्रश्न उठता है कि अपने अंतिम दिशा पर पेरिय पेरुमाळ के पधारने तक मामुनि क्या करेँगे ? मामुनि कहतें हैं कि, “उस अंतिम महान क्षण आने केलिए, सारे दुखों और पीड़ाओं की मूल कारण , इस शरीर को गिरना हैं। अत: हे रामानुज ! आप मुझे वह दीजिये जो उचित और आवश्यक है: दर्द और दुःख भरे इस सँसार से मुक्ति दिलाइये।
इदत्ताले तेन्नरंगर सेयगिरदु एन्ड्ररिन्दे
इरुंदालुम तर्काल वेदनैयिन कनत्ताल
पदैत्तु आवो एन्नुम इंद पाव उडंबुडने
पल नोवुं अनुबवित्तु इप्पवत्तु इरुक्कपोमो?
मदत्ताले वलविनैयिन वळी उळन्ड्रु तिरिंद
वलविनैयेन तन्नै उनक्कु आळाक्कि कोंड
इद तायुम तंदैयुमाम ऐतिरासा! एन्नै
इनि कडुग इप्पवत्तिनिन्ड्रुम एडुत्तरुळे
इदत्ताले – “हित” के कारण ( हमेशा अच्छाई केलिए सोचना और करना )
तेन्नरंगर- पेरिय पेरुमाळ (श्री रंगनाथ)
सेयगिरदुएन्ड्ररिन्दे इरुंदालुम – मेरे कर्मों के फल बुगतने दे रहें हैं , पर मुझे पता हैं कि यह भी मेरे हित में हैं।
तर्काल वेदनैयिन कनत्ताल – उस समय के पीड़ाओं से मैं
पदैत्तु – दर्द में तड़पा
आवो एन्नुम – दर्द और संकट में ले जाने वाली “हा” तथा “ओह” जैसे आवाज़ों को किया
इरुक्कपोमो?- क्या मैं जी पाऊँगा ?
इप्पवत्तु – इस तुच्छ सँसार में ?
इंद पाव उडंबुडने – इस शरीर के संग जो खुद पाप हैं
पल नोवुं अनुबवित्तु – और बहुत सारें दुःख एवं संकट झेलकर ?
मदत्ताले – इस शरीर के संबंध से
वलविनैयिन वळीउळन्ड्रु तिरिंद – मेरे कर्मों से निर्धारित मार्ग में भटकता गया और उसी यात्रा में था
वलविनैयेन तन्नै – मैं जो सबसे क्रूर पापी हूँ
आळाक्कि कोंड – आप (एम्पेरुमानार) के कृपा से आपका सेवक बना
उनक्कु – आप जो इन जीवात्माओं के आधार हैं
इद तायुम – हित करने वाली माता के रूप में किया , और मेरे
तंदैयुमाम – पिता
ऐतिरासा! – हे एम्पेरुमानारे
इनि – इसके बाद
कडुग – शीग्र
एडुत्तरुळे – सुधारों और मुक्ति दो
एन्नै – मुझे
इप्पवत्तिनिन्ड्रुम – इस सँसार से
सरल अनुवाद
मामुनि मुक्ति केलिए श्री रामानुज से प्रार्थना ज़ारी रख्ते हैं। उनको यह ज्ञान होता हैं कि उन्की कर्मों को शीग्र मिटाने के लिए ही दयाळु पेरिय पेरुमाळ उन्को इतने पीड़ा दिए। यह जानते हुए भी कर्मों के फलों के तीव्रता असहनीय है। शरीर के संबंध से ही निरंतर बने इस काँटो से भरे मार्ग से मुक्ति कि प्रार्थना, मामुनि पिता और माता समान श्री रामानुज से करतें हैं।
स्पष्टीकरण
इस विषय में अपना ज्ञान और परिपक्वता को प्रकट करतें हुए मामुनि कहतें हैं , “अरपेरुंतुयरे सेयदिडिनुम (ज्ञान सारम २१) तथा इस्के तुल्य अन्य पासुरमों से समझ में आता हैं कि उन्के “हित” गुण (जिस्से दूसरों के अच्छाई सोचना और उन्के बलाई केलिए कार्य करना) और उन्के आशीर्वाद के कारण ही मैं इतना दुःख और संकट झेल रहा हूँ। अर्थात, कर्म मिटाने केलिए पीड़ाओं झेलना ही रास्ता है। यह समझते हुए भी पीड़ा अन्यभाव करते समय, अत्यंत दुःख पहुँचता है और इतना असहनीय है की मैं “हा”, “ ओह” चिल्लाता हूँ। जो शरीर इन पीड़ाओं का मूल कारण है मैं उस्से ही ये बेबसी का आवाज़ निकालता हूँ। इसी स्थिति मैं अनादि काल से हूँ , मेरा ऐसे रहना उचित है क्या ? मैं पाप के सिवाय और कुछ नहीं कर रहा हूँ। इसी विषय को तिरुमंगैयाळवार भी कहतें हैं: “पावमे सेयदु पावि आनेन” (पेरिय तिरुमोळि १.९.९). शरीर के खींच में मग्न मैं उन दिशाओं में जाता हूँ और पाप करता जाता हूँ। लगातार किये जाने वाले इन पापों से मेरे दुःख और पीड़ा भी अधिक होतीं जा रहीं हैं। किंतु हे एम्पेरुमानार! मेरे माता और पिता होने के कारण और आपके “हितं” गुण के कारण आप ने मुझे स्वीकार कर आशीर्वाद भी किया हैं। अत: आपसे विनम्र प्रार्थना हैं कि मेरी निरंतर पीड़ाओं को मिटाकर इस सँसार के बंधनों से विमुक्त करें।
अडियेन प्रीती रामानुज दासि
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श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
मामुनि कहतें हैं कि, श्री रामानुज के असीमित कृपा के कारण उन्हें (मामुनि को) अपने व्यर्थ हुए काल कि अफ़सोस करने का मौका मिला। आगे इस पासुरम में वें ,श्री रामानुज के कृपा की फल के रूप में ,पेरिय पेरुमाळ अपने तरफ पधारने कि अवसर को मनातें हैं। “श्रीमान समारूदपदंगराज:” वचनानुसार पेरिय पेरुमाळ के अपने ओर पधारने कि अवसर कि विवरण देतें हैं।
कनक गिरि मेल करिय मुगिल पोल
विनतै सिरुवन मेरकोंडु
तनुविडुम पोदु एरार अरंगर एतिरासरक्काग एनपाल
वारा मुन्निर्पर मगिळंदु
करिय मुगिल पोल – बादलों के जैसे , जो मँडराते हैं
कनक गिरि मेल – “मेरु” नामक सुनहरे पर्वत के ऊपर
अरंगर – पेरिय पेरुमाळ
सिरुवन – “वैनतेयन” तथा “पेरिय तिरुवडि” नामों से प्रसिद्द जो हैं उन्के ऊपर आने वाले , जो पुत्र हैं
विनतै – विनता के
मेरकोंडु – विनतै सिरुवन वाहन होने के कारण पेरिय पेरुमाळ उनमें सवार होकर आएँगे
तनुविडुम पोदु – जब मेरा शरीर गिरेगा
अरंगर – पेरिय पेरुमाळ जो हैं
आर – भरपूर
येर – सौँदर्य तथा गुणों से
एनपाल वारा – आएँगे मेरे जगह
एतिरासरक्काग – यतिराज केलिए
(जैसे एक माँ आती हैं)
मुन्निर्पर – वें मेरे सामने खड़े होँगे
मगिळंदु – अत्यधिक ख़ुशी के सात
(पेरिय पेरुमाळ पधारेंगे, अपना दिव्य चेहरा दिखाएँगे, मुस्कुरायेंगे और मुझे भोग्य रूप से अनुभव करेंगे, यह निश्चित है )
इस पासुरम में, मामुनि अपने अंतिम स्थिति में पेरिय पेरुमाळ के पधारने कि सुन्दर दृश्य की विवरण देकर, ख़ुशी मनातें हैं। वे कहतें हैं कि पेरुमाळ, “विनतै सिरुवन”, “पेरिय तिरुवडि” एवं नामों से प्रसिद्द अपने वाहन में पधारेँगे। मेरे पास आकर वें मुस्कराहट से अलंकृत अपने सुँदर दिव्य मुख दिखाएँगे। और यह सब वें एम्पेरुमानार केलिए करेँगे।
मामुनि कहतें हैं, “काँचनस्प गिरेस् श्रुंघे सगटित्तो यधोयधा” और “मंजुयर पोनमलै मेल एळुंद मामुगिल पोनड्रुलर (पेरिय तिरुमोळि ९.२.८) वाख्यो के जैसे सुनहरे पर्वत “मेरु” के ऊपर काले बरसात के मेघ मँडराते हैं। उसी प्रकार मेरे इस पृथ्वी के बंधनों से विमुक्त होने के समय पर, “पेरुम पव्वम मँडियुन्ड वयिट्र करुमुगिल” (तिरुनेडुंताँडगम २४) में चित्रित किये गए उस रूप में पेरिय पेरुमाळ गरुड़ में सवार पधारेंगे। विनता के पुत्र होने के कारण गरुड़ “पेरिय तिरुवडि” तथा “विनतै सिरुवन” भी कहलातें हैं। मेरे इस शरीर से निकलने के समय, पेरिय पेरुमाळ एक माता के समान प्रेम के संग आएँगे।। सौंदर्य से भरपूर भगवान्, संतोष ,अपने दिव्य मुख में मुस्कराहट के संग, मेरे यहाँ, श्री रामानुज केलिए आएँगे। यह निश्चित हैं।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
एम्पेरुमानार विचार करतें हैं, “ तुम्हें अन्य तुच्छ विषयों के बारे में बात करने की क्या आवश्यकता हैं? इस्से पूर्व तुम्हारी स्थिति क्या थी?”. इस्के उत्तर में मामुनि कहतें हैं, “ मैं भी उन्हीं लोगों के तरह अनादि कालों से अपना समय व्यर्थ करता रहा और उसके कारण जो भी मुझे नुक्सान हुआ, उसका मुझे पछतावा नहीं हैं। इस स्थिति में , आप के ही कृपा के कारण मुझे अपने नुक्सान का एह्सास हुआ है,” यह कहकर मामुनि अपने लाभ के बारे में बात करतें हैं।
एंरुळन ईसन उयिरुम अन्रे उंडु इक्कालम एललाम
इन्रळवाग पळुदे कळिंद इरुविनैयाल
एड्रु इळविंरी इरुक्कुम एन्नेंजम इरवु पगल
निंरु तविक्कुम ऐतिरासा नी अरुळ सेयद पिन्ने
एंरुळन ईसन – “ नान उन्नै अंरि इलेन कंडाय नारणने नी एन्नै अंरी इलै”(नानमुगन तिरुवंदादि ७) के अनुसार परमात्मा श्रीमन नारायण और जीवात्माओं के मध्य उपस्थित संबंध नित्य है और कभी किसी से टूटा नहीं जा सकता है। इस्का अर्थ है, सर्वोत्तम नियंता नित्य हैं। उसी तरह ,
उयिरुम – नियंता श्रीमन नारायणन से नियंत्रित जीवात्मा
अन्रे उंडु – भी अनंत है
इक्कालम एल्लाम – इस सारा समय
इन्ड्रळवाग – अब तक
इरुविनैयाल – मेरे शक्तिशाली कर्मा के कारण ( अच्छे और बुरे )
पळुदे कळिंद एन्ड्रु – इस समय को मैं अत्यंत व्यर्थ समझता हूँ
इळविंरी इरुक्कुम – और इससे भी बुरा , इस नुक्सान केलिए मुझे कभी अफ़सोस भी नहीं हुआ हैं
एतिरासा – ( फ़िर भी)हे एम्पेरुमानार!
नी अरुळ सेयद पिन्ने – मेरे ऊपर आपके कृपा बरसाने के पश्चात
एन्नेंजम – मेरा हृदय
निंड्रु – धीरे से
तविक्कुम – पचताना शुरू किया
इरवु पगल – दिन और रात
इस पासुरम में मामुनि श्री रामानुज के आशीर्वाद कि गुणगान करतें हैं, जिसके कारण ही वे (मामुनि) अब तक व्यर्थ हुए समय केलिए पछतातें हैं। अनादि कालों से अब तक किये गए समय व्यर्थ का ,अब श्री रामानुज के आशीर्वाद के पश्चात मामुनि बहुत पछताते हैं।
स्पष्टीकरण
मामुनि कहतें हैं, “ तिरुमळिसै आळवार के (नानमुगन तिरुवंदादि ७) शब्दों में : नान उन्नै अंरि इलेन कंडाय नारणने नी एन्नै अंरि इलै”, परमात्मा श्रीमन नारायण और जीवात्माओं के मध्य जो बंधन है वह नित्य है और कभी किसी से टूट नहीं सकता है। इसका अर्थ है सर्वोत्तम नियंता श्रीमन नारायण नित्य हैं। और इस से पता चलता है कि, नियंत्रित जीवात्मायें भी नित्य हैं। और इससे पता चलता है कि इन्का सृष्टि का कोई दिनांक नहीं, श्रीमन नारायण और सारे जीवात्मायें हमेशा केलिए हैं। परंतु अत्यंत कृपा से किये गए आपके (एम्पेरुमानार) आशीर्वाद के भाग्य के पहले मैं अपना सारा वक्त मेरे कर्मों के फलों के अनुभव में व्यर्थ करता था। और इस व्यर्थ हुए समय का मुझे अफ़सोस भी न था। लेकिन आपके कृपा से मैं अब अपने नुक्सान के बारे में ही दिन और रात सोचता हूँ और पछताता हूँ। आपके अत्यंत कृपा की जय हो।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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