उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ६० – ६१

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<< पासुरम् ५७-५९

पासुरम् ६०

साठवां पासुरम्। इस पासुरम् से आरंभ करते हुए, वे कृपापूर्वक आचार्य के प्रति समर्पण की व्याख्या करते हैं, जिसे श्रीवचनभूषणम् में प्रमुख अर्थ के रूप में उजागर किया गया है। इस पासुरम् में, वे दापूर्वक कहते हैं कि एम्पेरुमान् उन लोगों का भरण-पोषण नहीं करेंगे जो अपने आचार्यों के प्रति भक्ति के रहित हैं।

तन् गुरुविन् ताळिणैगळ् तन्निल् अन्बु ऒन्ऱु इल्लादार् 
अन्बु तन् पाल् सॆय्दालुम् अम्बुयैकोन् – इन्ब मिगु‌
विण्णाडु तान् अळिक्क वेण्डियिरान् आदलाल्‌
नण्णार् अवर्गळ् तिरुनाडु

यदि किसी व्यक्ति में अपने आचार्यों के दिव्य चरणों के प्रते भक्ति नहीं है, तो एम्पेरुमान उसे परमपद में स्थान देने में इच्छुक नहीं होंगे, जहाँ असीमित आनंद है, भले ही उस व्यक्ति की श्री महालक्ष्मी के पति एम्पेरुमान् के प्रति कितनी भी भक्ति हो। जिस व्यक्ति में अपने आचार्य के प्रति भक्ति नहीं है उसे परमपद के दिव्य निवास की प्राप्ति नहीं होगी। चूंकि एम्पेरुमान् को, उनके पिराट्टि [श्रीमहालक्ष्मी] के साथ संबंध दर्शाने वाले शब्द अंबुयैकोन  के उपयोग से संदरभित किया गया है, ऐसे प्रतीत होता है कि ऐसी पिराट्टि की उपस्थिति में भी, जो चेतनों के दोषों को छिपाकर‌ भगवान से अनुरोध करती हैं, एम्पेरुमान् निकट होते हुए भी एम्पेरुमान् उन लोगों को स्वीकार नहीं करेंगे जो अपने आचार्य के प्रति समर्पित नहीं हैं। 

पासुरम् ६१

इकसठवां पासुरम्। मामुनिगळ् कृपापूर्वक कहते हैं कि, एम्पेरुमान् उन्हीं लोगों को परमपद प्रदान करेंगे जिनका उनके आचार्यों के साथ संबंध है। 

ज्ञानम् अनुट्टानम् इवै नन्ऱागवे उडैयन्
आन गुरुवै अडैन्दक्काल् – मानिलत्तीर् 
तेनार् कमलत् तिरुमामगळ् कोऴुनन् 
ताने वैगुन्दम् तरुम् 

हे इस विस्तार पृथ्वी पर रहने वाले! यदि कोई अपने ऐसे आचार्य के प्रति समर्पित होता है, जिन्हें अर्थ पञ्चकम् का और उसके अनुसार गतिविधियों का सच्चा ज्ञान है, तब श्रीमन्नारायण, जो महालक्ष्मी के  स्वामी हैं जो शहद से भरे कमल पुष्प पर निवास करती हैं, ऐसे शिष्यों को स्वयं श्री वैकुण्ठ प्रदान करेंगे। 

इस पासुरम् में, श्रीवरवरमुनि स्पष्ट रूप से बताते हैं कि एक उचित आचार्य को अर्थ पञ्चकम् के विषय में ज्ञान होना चाहिए-  पाँच पदार्थों का अर्थ- स्वयं के विषय में ज्ञान, एम्पेरुमान्  के विषय में ज्ञान, एम्पेरुमान् को प्राप्त करने के उपाय के विषय का ज्ञान, [एम्पेरुमान् तक पहुँचने के] लाभ के विषय में ज्ञान और प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं के विषय में ज्ञान। तत्पश्चात , इनके ज्ञान के अनुसार, एक व्यक्ति को साधन के रूप में एम्पेरुमान् को प्राप्त कर उनके प्रति एक आचार्य के माध्यम से समर्पण कर, एम्पेरुमान् और उस आचार्य के कैङ्कर्य (सेवा) करने में संलग्न होना चाहिए। इस पासुरम् में श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कृपापूर्वक कहते हैं कि, एक व्यक्ति को अपने आचार्य के प्रति समर्पण कर उन्हीं की शरण में जाना चाहिए। ऐसा करने वालों को स्वयं के प्रयास की आवश्यकता नहीं है, स्वयं एम्पेरुमान् उन्हें वैकुंठ प्रदान करेंगे। यह पासुरम् इस पूरे प्रबंध का सार है। 

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

आधार: https://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2020/07/upadhesa-raththina-malai-60-61-simple/

संगृहीत- https://divyaprabandham.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org