उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

अन्य प्रबंध

पिळ्ळै  लोकाचार्य और मणवाळ मामुनिगळ (श्रीपेरुम्बुतूर)

उपदेश रत्तिनमालै एक अद्भुत तमिल ग्रंथ (दिव्य संरचना) है, जिसे दया पूर्वक हमारे मणवाळ मामुनिगळ द्वारा रचित किया गया है। जो “विशधवाक शिखामणि “(एक प्रभावशाली वाणी, और जो मुकुट में जडे आभूषण के समान हैं )। यह एक अद्भुत रचना है जिसमें संक्षेप में पिळ्ळै लोकाचार्य (हमारे एक आचार्य) का दिव्य कार्य ,श्री वचनभूषणम का सार है । श्री वचनभूषणम का सार -“आचार्य अभिमानमे उद्धारकम”(आचार्य द्वारा दिखाया गया स्नेह एक ही है जो शिष्य का उत्थान करेगा । जब एक शिष्य आचार्य के पास जाता है , आचार्य शिष्य पर दया करके उसका उत्थान करते हैं | यह हमारे आचार्य द्वारा सबसे विशाल और सरल साधन के रूप में मनाया जाता है । शब्द जीवनम् – मनुष्य के शारीरिक पोषण और संरक्षण को दर्शाता है ।” उज्जीवनम् “- उस पथ को दर्शाता है जो आत्म उद्धार के लिए उपयुक्त है। आत्म स्वरूप (स्वभाव) के लिए सर्वोच्च लाभ परमपद (श्री वैकुंठ) में स्थित ऐम्पेरुमान (सर्वोच्च सत्ता) को प्राप्त करना , और उनके अनुयायियों के बीच रहते हुए उनका कैंकर्य करना। 

जब किसी ग्रंथ (रचना) का आंतरिक अर्थ समझाया जाता है तब उससे संबंधित विषयोंका अर्थ समझाना समान्य होता है । इसी प्रकार मामुनिगळ १) अपने आचार्य (तिरुवाय्मोळि पिळ्ळै) को प्रणाम करते हैं । २) आळवार और उन दिव्य स्थानों का कालानुक्रमिक विवरण बताया जहाँ वह अवतरित हुए। ३) उन आचायों (गुरों) का एक परिचय देते हैं जो आळवार द्वारा दिखाये मार्ग में आये। ४) रामानुजाचार्य की महानता की व्याख्या करते हैं, जिन्हें पूरे विश्व का उत्थान करने में, आचार्यों के बीच पथ प्रदर्शक के रुप में माना जाता है, ५) नम्पेरुमाळ (उत्सव मूर्ति, श्रीरंगम) की महिमा बताते हुए इस सम्प्रदाय (पारंपरिक मान्यताओं की प्रणाली) को नाम दिया “ऐम्पेरुमानार दर्शनम्” (रामानुजाचार्य का दर्शन) क्योंकि नम्पेरुमाळ रामानुजाचार्य की स्तुति करना चाहते थे । ६) तिरुवाय्मोळि (नम्मालवार द्वारा कृपा पूर्वक दी गई एक दिव्य रचना) के लिए टिप्पणियों को सूचिबद्ध करतें हैं, जो हमारे दर्शन का मूल है। ७) नम्पिळ्ळै (हमारे गुरूओं में से एक) की महिमा की व्याख्या करतें हैं । ८) श्री वचनभूषणम के गौरव को बतातें हैं जिसे वडक्कुत् तिरुवीधिप् पिळ्ळै के दिव्य पुत्र पिळ्ळ लोकाचार्य द्वारा दया पूर्वक रचा गया। इसके आंतरिक अर्थ – इस दिव्य कार्य का अनुसरण करने वाले लोगों की महिमा और वैभव बताते हैं। ९) अंत में बताते हैं कि हमें हर दिन अपने आचार्यों के विवेक के साथ- साथ उनके अनुष्ठानों (वेदों के अनुरूप गतिविधियों) को ध्यान में रखना चाहिए, और ग्रंथ को यह कहते हुए पूरा करते हैं कि- जो लोग इस प्रकार जीते हैं वह महान संत ऐम्पेरुमानार की आलौकिक दया के पात्र होंगे, जिन्होंने मानव के उत्थान के लिए अवतार लिया ।

ग्रंथ के अंत में ऐरूंबियप्पा (मामुनिगळ के शिष्य) द्वारा रचित एक ही पासुर(स्तुति) समस्त सभी पासुरों के साथ पढा जाता है। इसमें ऐरूंबियप्पा कहते हैं कि – जिन मनुष्यों का मामुनिगळ के अलौकिक चरणों के साथ संबंध है, वह निश्चित ही ऐम्पेरुमान् द्वारा स्वीकार किये जायेंगे।

यह इस श्रेष्ठ ग्रंथ का सरल सपष्टीकरण का प्रयास है। जिसे पिळ्ळै लोकम जीयर द्वारा दिए गये व्याख्यानों के साथ किया जा रहा है।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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