श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
पासुरम् ३४
चौंतीसवां पासुरम्। मामुनिगळ् अब तक दयालुता पूर्वक उन नक्षत्रों और स्थलों के बारे में बताते रहे जहाँ आऴ्वार् अवतरित हुए। तीसरे पासुरम् में उन्होंने “ताऴ्वादुमिल् कुरवर् ताम् वाऴि- एऴ्पारुम् उय्य अवर्गळ् उरैत्तवैगळ् ताम वाऴि” कहकर हमारे आचार्यों के दिव्य कार्यों के लिए मंगलाशासन किया था। अब वे संकल्प लेते हैं कि वे आऴ्वारों की रचना के लिए हमारे आचार्यों द्वारा दिए गए व्याख्यानों (टिप्पणियों) की महिमा को आगामी पासुरों में दयापूर्वक बताएँगे।
आऴ्वार्गळ् एट्रम् अरुळिच्चॆयल् एट्रम्
ताऴ्वादुम् इन्ऱि अवै ताम् वळर्त्तोर् – एऴ् पारुम्
उय्य अवर्गळ् सॆय्द व्याक्कियैगळ् उळ्ळदॆल्लाम्
वय्यम् अऱिय पगर्वोम् वाय्न्दु
हम अपने आचार्यों के व्याख्यानों (टिप्पणियों) का उल्लेख करेंगे जिनमें कोई दीनता नहीं थी और जिन्होंने उन आऴ्वारों की विशिष्टता का पोषण किया, ताकि संसार के लोग उनके विषय में जान सकें। आऴ्वारों की विशिष्टता यह है कि वे भगवान द्वारा अकारण ही, दोषरहित ज्ञान और भक्ति प्राप्त किए। उनके अरुळिच्चॆयल् की विशेषता है कि उन्होंने वेदों के अर्थों को सरलता से प्रकट किया। उन्होंने भगवान से संबंधित विषयों के अलावा अन्य किसी विषय की चर्चा नहीं की। हमारे आचार्यों ने स्वयं को लोक कल्याण के लिए समर्पित किया। अपने लिए किसी भी प्रकार की प्रसिद्धी, धन, ऐश्वर्य की इच्छा न रखते हुए केवल भगवान का स्मरण कर, उनका कैंङ्कर्य किया।
पासुरम् ३५
पैंतीसवां पासुरम्। वे अपने हृदय से कहते हैं कि वे लोग जो आऴ्वारों और उनके अरुळिच्चॆयलों की महानता को समझे बिना उनका तिरस्कार करते हैं, वे बहुत नीच हैं।
आऴ्वार्गळैयुम् अरुळिच्चॆयल्गळैयुम्
ताऴ्वा निनैप्पवर्दाम् नरगिल् – वीऴ्वार्गळ्
ऎन्ऱु निनैत्तु नॆञ्जे ऎप्पॊऴुदुम् नी अवर् पाल्
सॆन्ऱणुगक् कूसित्तिऱि
हे हृदय! संसार में ऐसे लोग भी हैं जो आऴ्वारों और उनके दिव्य रचनाओं को बहुत प्रतिष्ठित न मानकर, उनके बारे में बहुत दीन सोचते हैं। ऐसे लोग नर्क में गिरेंगे। ऐसे लोगों से दूर रहें और उसके पास न जाएँ तथा उनसे मित्रता न करें, क्योंकि यह हमारे लिए विनाशकारी होगा।
आऴ्वार् जो भगवान को बहुत प्रिय हैं, इस धरती पर अवतरित हुए और संसार के लोगों को उत्थान का मार्ग दिखाया। यदि लोग आऴ्वारों को उनके कुल के कारण नीचा समझते हैं, जिसमें वे अवतरित हुए, या इसलिए नीचा समझते हैं कि उनकी रचनाएँ तमिऴ् भाषा में थीं, तो भगवान उन्हें क्षमा नहीं करेंगे, भगवान उन्हें स्वयं नर्क में धकेलेंगे। जब लोग की सोच ऐसी हो, तो तुम उनके साथ कैसे रहोगे? इसलिए तुम उन्हें देख घृणा की भाव से दूर रहो।
अडियेन् दीपिका रामानुज दासी
आधार: https://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2020/06/upadhesa-raththina-malai-34-35-simple/
संगृहीत – https://divyaprabandham.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org