नाच्चियार तिरुमोऴि – सरल व्याख्या – दूसरा तिरुमोऴि – नामम् आयिरम्

श्रीः श्रीमतेशठकोपाय नमः श्रीमतेरामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

नाच्चियार् तिरुमोऴि

<< पहला तिरुमोऴि

एम्पेरुमान् दुखी थे कि उन्होंने हमें दूसरे देवता कामदेव के चरणों में प्रार्थना करने के लिए छोड़ दिया था। जब वे तिरुवायर्पाडि (श्री गोकुलम) में श्रीकृष्ण के रूप में थे वहाँ के चरवाहों ने इन्द्र को भोग दिया। यह देखकर कि उनके होते हुए वे किसी अन्य देवता को भोग दे रहे थे, उन्होंने उनसे गोवर्धन पर्वत को भोग कराया और स्वयं उस भोग खा ग‌ए। उसी तरह, आण्डाळ् और उसकी सहेलियाँ, जो केवल एम्पेरुमान् पर भरोसा करती थीं, एम्पेरुमान् के वहाँ होते हुए दूसरे देवता के पास ग‌ईं। एम्पेरुमान् यह अनुभूत कर कि वे उनके कारण ही किसी अन्य देवता के पास गईं, उन्होंने फैसला किया कि उन्हें अब और प्रतीक्षा नहीं करानी चाहिए और उनके और निकट चले गए। परंतु वे एम्पेरुमान् से क्रोधित होकर उनकी उपेक्षा करके रेत की महल बना रहे थे। यह देखकर, एम्पेरुमान् उनकी बनाई हुई रेत की महलों को नष्ट करना चाहता थे और वे उसे रोकना चाहते थे। इससे प्रणयकोप होकर उसके पश्चात मिलन हुआ और फिर अलगाव हो गया।

पहला पासुरम। कयोंकि यह पङ्गुनी का महीना है, हम कामदेव की राह में रेत के घर बना रहे हैं। इन्हें नष्ट करना आपकी ओर से उचित नहीं है।

नामम् आयिरम् एत्त निन्ऱ नारायणा! नरने! उन्नै
मामितन् मगनागप् पेट्राल् एमक्कु वादै तविरुमे
कामन् पोदरु कालम् एन्ऱु पङ्गुनि नाळ् कडै पारित्तोम्
तीमै सेय्युम् चरीदरा! एङ्गळ् चिट्रिल् वन्दु चिदैयेले

पासुरम् की पहली पंक्ति की दो व्याख्याएँ हैं। १) देवताएँ भगवान श्रीमन्नारायण के सहस्त्र (हजार) नामों की स्तुति कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने ऋषियों, नारायण  और नर के रूप में अवतार लिया था; २) नित्यसूरी श्रीमन्नारायण के सहस्त्र नामों की स्तुति कर रहे हैं क्योंकि वे जो श्रीवैकुंठ में नारायण के रूप में हैं उन्होंने ही श्रीराम, एक नर (मनुष्य), के रूप में अवतार लिया। हे ऐसे एम्पेरुमान! सिर्फ इसलिए कि माँ यशोदा ने आपको अपने बेटे के रूप में जन्म दिया, क्या हम अपनी परेशानियों से मुक्त हो जाएँगे? यह पंगुनी का महीना होने के कारण, मनमथ यात्रा करते हुए जिस मार्ग से आएगा, हमने उस रास्ते को सजाया है। हे नटखट और श्री महालक्ष्मी के कांत! हमारे छोटे से रेत के घरों को नष्ट करने के लिए हमारे स्थान पर न आएँ।

दूसरा पासुरम्। ग्वाल कन्याएँ [आण्डाळ और उसकी सहेलियां] भगवान से कहती हैं, “रेत के घरों को नष्ट मत करो जो हमने बहुत मेहनत से बनाए हैं”।

इन्ऱु मुटृम् मुदुगु नोव इरुन्दिऴैत्त इच्चिट्रिलै
नन्ऱुम् कण्णुऱ नोक्कि नाङ्गोळुम् आर्वम् तन्नैत् तणिगिडाय्
अन्ऱु बालनागि आलिलै मेल् तुयिन्ऱ एम् आदियाय्!
एन्ऱुम् उन्तनक्कु एङ्गळ् मेल् इरक्कम् एऴाददु एम् पावमे

हमने बिना हिले-डुले, एक ही जगह पर रहकर इतने परिश्रम से छोटा-सा घर बनाया है, उसके कारण हमारे कमर में दर्द हो रहा है। उसका आनंद लेने की इच्छा पूरी करें। वह जो प्रलय काल में एक कोमल बरगद के पत्ते पर शिशु का रूप धारण कर लेटा, वही हमारा कारण भूत है। हमारे पापों के कारण ही आप हमेशा हमारे प्रति निर्दयी हैं।

तीसरा पासुरम्। वे उससे कहती हैं कि वह उनके छोटे-छोटे घरों को नष्ट करना और उन्हें उचटती दृष्टि से देखना बन्द करें।

कुण्डुनीर् उऱैकोळरी! मदयानै कोळ् विडुत्तय् उन्नैक्
कण्डु मालुऱुवोङ्गळैक् कडैक् कण्गळलिट्टु वादियेल्
वण्डल् नुण्मणल् तेळ्ळियाम् वळैक् कैगळाल् सिरमप्पट्टोम्
तेण्दिरैक् कडल् पळ्ळियाय्! एङ्गळ् चिट्रिल् वन्दु चिदैयेले

महाप्रलय के गहरे सागर में शक्तिशाली सिंह के समान लेटे हुए, हे प्रभु! आप ही हैं जिसने गजेन्द्राऴ्वान के दुःख को दूर किया! अपनी नज़रों से हमें मत सताओ, हम जो आपको देखने के पश्चात आपको ही चाहने लगी हैं। चूड़ियोंवाली हाथों से हमने छनी हुई जलोढ़ मिट्टी से इन छोटे-छोटे घरों को बड़ी मेहनत से बनाए हैं। स्पष्ट लेहरों के क्षीरसागर को अपनी दिव्य गद्दे के रूप में धारण करनेवाले, हमारे यह रेत की घरों को नष्ट न करें।

चौथा पासुरम। वे कहती हैं कि अपने चेहरे के जादू से हमें मोहित करके हमारी रेत के घरों को नष्ट न करें।

पेय्युमा मुगिल् पोल् वण्णा! उन्तन् पेच्चुम् चेय्गयुम् एङ्गळै
मैयल् एट्रि मयक्क उन् मुगम् माय मन्दिरम् तान् कोलो?
नोय्यर् पिळ्ळैगळ् एन्बदऱ्कु उन्नै नोव नाङ्गळ् उरैक्किलोम्
सेय्य तामरैक् कण्णिनाय्! एङ्गळ् चिट्रिल् वन्दु चिदैयेले

हे वर्षाव करने वाले काले बादल के समान रंग वाले! क्या आपका दिव्य चेहरा एक जादुई पूड़ी की तरह है, जो आपके नीच शब्दों और गतिविधियों के माध्यम से हमें भ्रमित कर दे? हे लाल कमल के समान दिव्य नेत्र वाले! इस डर से कि आप कहेंगे, “ये नीच, छोटी लड़कियाँ हैं”, हम आपके बारे में कुछ नहीं कह रही हैं और आपको दुःखी भी नहीं करना चाहती हैं। आकर हमारे छोटे रेत के घरों को नष्ट न करो।

पाँचवां पासुरम। वे उससे पूछती हैं कि क्या वह नहीं देख सकता कि वह जो कुछ भी कर रहा है उससे वे क्रोधित नहीं हो रही हैं।

वेळ्ळै नुण्मणल् कोण्डु चिट्रिल् विचित्तिरप्पड वीदि वाय्त्
तेळ्ळि नाङ्गळ् इऴैत्त कोलम् अऴित्तियागिलुम् उन्तन् मेल्
उळ्ळम् ओडि उरुगल् अल्लाल् उरोडम् ओन्ऱुमिलोम् कण्डाय्
कळ्ळ माधवा! केसवा! उन् मुगत्तन कण्गळ् अल्लवे

हे कपटपूर्ण कर्तृत्व करने वालेमाधव! हे केशव! हमने मार्ग पर ये सुंदर, छोटे-छोटे घर सफेद बालू से ऐसे बनाए हैं कि सभी आश्चर्यचकित हो ग‌ए। भले ही आप उन्हें नष्ट कर दें, केवल हमारे दिल टूटेंगे और पिघलेंगे, लेकिन हम आपसे रत्ती भर भी क्रोधित नहीं होंगी। क्या आपके दिव्य मुख पर आँखें नहीं हैं? आप स्वयं देख सकते हैं, उन आँखों से।

छठा पासुरम। आण्डाळ् और उसकी सहेलियाँ एम्पेरुमान से कह रहीं हैं कि आपका हमारे इन छोटे-छोटे रेत घरों को नष्ट करने के पीछे केशका काराण हम नहीं समझती।

मुट्रिल्लाद पिळ्ळैगळोम् मुलै पोन्दिलादोमै नाळ्तोऱुम्
चिट्रिल् मेलिट्टुक् कोण्डु नी सिऱिदुण्डु तिण्णेन नाम् अदु
कट्रिलोम् कडलै अडैत्तु अरक्कर कुलङ्गळै मुट्रवुम्
चेट्र इलङ्गैयैप् पूसलाक्किय केसवा! एम्मै वादियेल्

हे योद्धा! जिसने समुद्र में सेतु बनाकर राक्षसों के सारे कुलों का नाश कर लंका को रणभूमि बना दिया! हम छोटी बच्चियाँ हैं जिनका स्तन भी अभी उठा नहीं। हमारे द्वारा बनाए गए रेत के छोटे-छोटे घरों को नष्ट करने के आपके कृत्यों में एक आन्तरिक अर्थ है, जो हम समझ नहीं पा रही हैं। हमें परेशान मत करो।

सातवां पासुरम। हम आपको आपकी दिव्य पत्नियों के नाम से आदेश दे रही हैं। हमारे छोटे रेत के घरों को नष्ट मत करो।

बेदम् नन्गऱिवार्गळोडु इवै पेसिनाल् पेरिदु इन्सुवै
यादुम् ओन्ऱु अऱियाद पिळ्ळैगळोमै नी नलिन्दु एन् पयन्?
ओदमा कडल वण्णा! उन् मणवाट्टिमारोडु चुऴऱुम्
सेतु बन्दम् तिरुत्तिनाय्! एङ्गळ् चिट्रिल् वन्दु चिदैयेले

यह आपके लिए बहुत सुखद होगा यदि आप ऐसे लोगों के साथ ये वार्तालाप करें जो आपकी वाणी को अच्छी तरह से जानते हैं। हम जैसी नासमझ लड़कियों को परेशान करने से आपको क्या लाभ होगा? लहरों से भरे समुद्र के समान रंग वाल, जिसने समुद्र में सेतु बनाया! हम आपको आपकी दिव्य पत्नियों के नाम से आदेश दे रही हैं। यहाँ मत आओ और हमारे छोटे-छोटे रेत के घरों को नष्ट मत करो।

आठवां पासुरम। कहती हैं कि खाना कितना भी मीठा हो, अगर दिल में कड़वाहट हो तो स्वाद अच्छा नहीं आता।

वट्टवाय्च् चिऱु तूदैयोडु चिऱु चुळगुम् मणलुम् कोण्डु
इट्टमा विळैयाडुवोङ्गळैच् चिट्रिल ईड​ऴित्तु एन् पयन्?
तोट्टु उदैत्तु नलियेल् कण्डाय् चुडर्च् चक्करम् कैयिल् एन्दिनाय्!
कट्टियुम् कैत्ताल् इन्नामै अऱिदिये कडल् वण्णने!​

हे दिव्य अंग में दिव्य तेजोमय चक्र धारण करने वाले! हे महासागर के रूप वाले! हम गोल मुँह वाले मिट्टी के छोटे बर्तनों से‌ फटक और बालू से छोटे-छोटे घर बनाकर खेलती हैं, उन्हें बार-बार उजाड़ने से तुम्हें क्या लाभ? अपने हाथ से छूकर और पैर से लात मारकर परेशान न करो। क्या तुम नहीं जानते कि जब मन कड़वा होता है, तो एक चीनी का टुकड़ा भी कड़वा होगा?

नौवां पासुरम। वे एक दूसरे से बात करती हैं कि कैसे वे कृष्ण के साथ एकजुट हुए और अनुभव का आनंद लिया।

मुट्रत्तूडु पुगुन्दु निन् मुगम् काट्टिप् पुन्मुऱुवल् सेइदु
चिट्रिलोडु एङ्गळ् चिन्दैयुम् चिदैक्कक् कडवैयो? गोविन्दा!
मुट्र मण्णिडम् तावि विण्णुऱ नीण्डळन्दु कोण्डाय्! एम्मैप्
पट्रि मेय्प्पिणक्किट्टक्काल् इन्द पक्कम् निन्ऱवर् एन् चोल्लार्?

हे गोविन्द! हे जिसने एक पग से सारी पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पांव को आकाश की ओर बढ़ाकर ऊपर के सारे लोकों को नाप लिया! क्या आप हमारे आँगन में आएँगे, मुस्कान भरा अपना दिव्य चेहरा दिखाएँगे और हमारा हृदय और छोटे घरों को नष्ट कर देंगे? इसके अलावा आप हमारे समीप आकर हमें गले से लगा लें तो यहाँ के लोग क्या कहेंगे?

दसवां पासुरम। वह उन लाभों को बताते हुए दशक को पूरा करती हैं, जो इन दस पाशुरों का अर्थ जानने वालों को प्राप्त होंगे।

चीदै वाय्यमुदम् उण्डाय्! एङ्गळ् चिट्रिल् नी चिदैयेल् एन्ऱु
वीदि वाय् विळैयाडुम् आयर् चिऱुमियर् म​ऴलैच् चोल्लै
वेद वाय्त् तोऴिलार्गळ् वाऴ् विल्लिपुत्तूर् मन् विट्टुचित्तन् तन्
कोदै वाय्त तमिऴ् वल्लवर् कुऱैविन्ऱि वैकुन्दम् चेर्वरे

ओह, सीता देवी की अधरामृत पीने वाले! गली में खेल रही छोटी ग्वालबालिकाओं ने भगवान से कहा, “हमारे छोटे घरों को नष्ट मत करो।” शास्त्र बोलने वाले और शास्त्रों में वर्णित कर्म करने वाले सज्जनों का निवासस्थान श्रीविल्लिपुतूर के शासक श्रीपेरियाऴ्वार् की सुपुत्री आण्डाळ् के तमिऴ् पासुरों को जो पाठ करते हैं और उपर्युक्त शब्दों को मन‌ में धारण करते हैं, वे बिना किसी दोष के परमपदम प्राप्त करेंगे।

अडियेन् वैष्णवी रामानुज दासी

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