उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर १४ और १५

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर १२ और १३

पासुर १४ 

चौदहवां पासुर। श्रीवरवरमुनि स्वामी वैकासी (वैशाख) मास के विसागम् (विशाखा) नक्षत्र के महान दिन का उत्सव मनाते हैं, जिस दिन नम्माऴ्वार्‌ (श्रीशठकोप स्वामी), जिन्होंने सरल तमिऴ् में वेद के अर्थों का वर्णन किया और जिनके पास अन्य आऴ्वार् उनके अंग स्वरूप हैं, अवतरित हुए।

एरार् वैगासि विसागत्तिन् एट्रत्तैप्
पारोर् अऱियप् पगर्गिन्ऱेन् – सीरारुम्
वेदम् तमिऴ् सॆय्द मॆय्यन् ऎऴिल् कुरुगै
नादन् अवदरित्त नाळ्‌

विश्व के लोगों के लिए प्रसिद्ध वैगासी विसागम् की महानता का वर्णन करेंगे। यह वह दिन है जब एक सत्यवादी और सुंदर तमिऴ् में वेद के उपयुक्त अर्थों की रचना करनेवाले नम्माऴ्वार् अवतरित हुए। सत्यवादी होने का अर्थ है कि किसी इकाई के बारे में वह जैसा हो वैसा ही सच्चेपन से कहना। वेद इस बात के लिए प्रसिद्ध है कि उसके पास अपौरुषेयम् (किसी व्यक्ति के द्वारा न लिखा गया) है, स्वयं प्रमाणत्वम् ( किसी के द्वारा प्रमाणित होने पर निर्भर न होकर, अपने आप को निरंतर बनाए रख सकना) है। वेदों के लिए एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि वह केवल श्रीमन्नारायण के स्वरूपम् (मूल प्रकृति), रूपम् (दिव्य रूप) और गुण (संदिग्ध गुण) के बारे में बोलते हैं। उनके द्वारा तमिऴ् में अर्थ का संकलन करना इस बात को संदर्भ करता है कि उन्होंने वेदों और वेदान्तों (उपनिषद) के आंतरिक अर्थों को दयापूर्वक अपने चार रचनाएँ तिरुविरुत्तम् (ऋग्वेद), तिरुवासिरियम् (यजुर्वेद), पेरिय तिरुवन्दादि (अथर्ववेद) और तिरुवाय्मोऴि (सामवेद) में स्पष्ट किया ताकि हम सभी अच्छी तरह से समझ सकें।

पासुर १५

पंद्रहवां पासुर। मामुनिगळ् आऴ्वार् (नम्माऴ्वार्) की महानता, उनका अवतार दिवस, उनके जन्मस्थान और उनका कार्य, तिरुवाय्मोऴि का आनंद लेते हैं और व्याख्या करते हैं।

उण्डो वैगासि विसागत्तुक्कु ऒप्पु ऒरु नाळ्
उण्डो सडगोपर्क्कु ऒप्पु ऒरुवर् – उण्डो
तिरुवाय्मोऴिक्कु ऒप्पु तॆन् कुरुगैक्कु उण्डो
ऒरु पार् तनिल् ऒक्कुम् ऊर्

क्या कोई और दिन इस दिव्य वैगासि विसागम् दिवस की महानता में बराबर हो सकता है, जब नम्माऴ्वार् ने अवतार लिया, जिन्होंने सर्वेश्वर (सभी के स्वामी) श्रीमन्नारायण की और उनकी ऐश्वर्य की ऐसी प्रशंसा की कि वे प्रतिष्ठा प्राप्त किए? [नहीं]। क्या ऐसा कोई है जो श्रीशठकोप की- जिन्हें नम्माऴ्वार् भी कहा जाता है- महानता से मेल खाता हो? [सर्वेश्वर‌ से लेकर‌ नित्यसूरियाँ, मुक्तात्माएँ और संसार के सभी लोग कोई भी नम्माऴ्वार के बराबर नहीं कर सकते]। क्या ऐसा एक भी प्रबंध है जो वेद के साथ उसका विस्तार से वर्णन करता है? [नहीं]। क्या ऐसा कोई स्थान है तिरुक्कुरुगूर् (कुरुकापुरि) जैसे, जिसने हमें दयापूर्वक नम्माऴ्वार् को प्रदान किया? [यह वह स्थान है जो आदिनाथ भगवान और नम्माऴ्वार् दोनों को समान प्रसिद्धि प्रदान करता है। यह वह दिव्य निवास है जहाँ भगवान की सर्वोच्चता, अर्चावतारम् (अर्चारूप) में उत्पन्न हुआ है। यह वह स्थान है‌ जहाँ अपने अवतार से चार हजार साल पहले, एम्पेरुमानार् (स्वामी रामानुज) का दिव्य विग्रह (अर्चा), नम्माऴ्वार् की दया के कारण, प्रकट हुआ। यह एक दिव्य निवास है जहाँ रामानुजाचार्य का पुनरावतार, श्रीवरवरमुनि स्वामी का अवतार हुआ।] क्योंकि यह स्थल भगवान, आऴ्वार् और आचार्यों की महानता में वृद्धि करता है, इस क्षेत्र को तीन गुना उत्साह के साथ मनाया जाता है।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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