नाच्चियार् तिरुमोऴि – सरल व्याख्या – तनियन्

श्रीः श्रीमतेशठकोपाय नमः श्रीमतेरामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

नाच्चियार् तिरुमोऴि

अल्लिनाळ् तामरै मेल् आरणंङ्गिन् इन्तुणैवि
मल्लि नाडाण्ड मडमयिल्- मेल्लियलाळ्
आयर्कुल वेन्दन् आगत्ताळ् तेन्पुदुवै
वेयर् पयन्द विळक्कु

श्री गोदा मृदु स्वभाव की है; वह नव खिले कमल पुष्प में नित्य वास करने वाली, देवी पेरिय पिराट्टि की प्रिय सखी है, वह एक मोरनी की तरह तिरुमल्लि प्रदेश में राज्य करती है। गोदाजी का यह दिव्य रूप, यादव कुल श्रेष्ठ श्रीकृष्ण के दिव्य रूप के समान है और वह ब्राह्मण कुल श्रेष्ठ श्रीविष्णुचित्त स्वामि के कुल का चिराग भी है ।

कोलच् चुरिसङ्गै मायन् चेव्वायिन् गुणम् विनवुम्
सीलत्तनळ् तेन् तिरुमल्लि नाडि चेऴुङ्कुऴल् मेल्
मालैत् तोडै तेन्नरङ्गर्क्कु ईयुम् मदिप्पुडैय​
सोलैक् किळि अवळ् तूय न​ऱ्पादम् तुणै नमक्के

आश्चर्य लीलाओं से भरे एम्पेरुमान् (भगवान्) के दिव्य अदरम के मिठास कि बारे में उनकी अति अदभुत कुंचित श्रीपाञ्चजन्य (दिव्य शंख्) से जानने की महत्ता आण्डाळ् रखती है। वह तिरुमल्लि प्रदेश की राणि (मुखिया)भी है। वह तिरुवरङ्गनाथ् भगवान ( श्रीरङ्गम् के भगवान) को, अपनी केश में पहनकर उतारा हुआ पुष्पमाला समर्पित करने की महत्ता रखती है। वह एक सुन्दर वाटिका की मादा तोता की भाँति है। उस आण्डाळ् के शुद्धता एवं मिठास से भरे हुए दिव्य श्रीचरण हम सब की रक्षा कवच है।

अडियेन् वैष्णवी रामानुज दासी

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