उत्तरदिनचर्या – श्लोक – ३

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः

परिचय

श्लोक २                                                                                                                                 श्लोक ४-५

श्लोक  ३

सायन्तनम तत: क्र्त्वा सम्यगरधनम हरे:
स्वैरालापै: सुभै स्रोत्रुन नन्दयन्तम न्मा मि तम ||  ()

शब्दश: अर्थ

तत:                 : सायंकाल में संध्या वन्दन करने के पश्चात
सायन्तनम       : सायंकाल के अनुकूल
हरे: आराधनम  : अरंगनगर अप्पन कि तिरुआराधनम में उनके व्यक्तिगत अर्चा भगवान
सम्यग            : पूरे विवरण और गहरी भक्ति के साथ
क्र्त्वा               : पालन करते है
सुभै                : शुभ
स्वैरालापै:       : उनका खुदका साधा मधुर इच्छित उच्चारण
स्रोत्रुन             : दर्शक, सुननेवाले
नन्दयन्तम     : रमणीय
तम                : जो श्रीवरवरमुनि स्वामीजी
न्मा मि          : मैं  पूजा करता हूँ

व्याख्या

उपदेश रत्नमाला के ५५ छन्द के अनुसार “आर वचनभूषणत्ति नाल पोरुलेल्लामरिवार? आरदु शोन्नेरिलनुष्ठिप्पार?”…श्रीवरवर मुनि स्वामीजी अपने शिष्य को कितनी भी सरल भाषा में तत्त्वों को समझाये लेकिन श्रीवचन भूषण के विचार को निभाना कठिन है और उससे ज्यादा कठिन उसे पालन करना है; क्योंकि अर्थों में उलझन होने के कारण शिष्यों को शिक्षा देना भी उतना ही कठिन दिखायी पड़ता है। स्वामीजी उपदेश के पश्चात सायंकाल संध्यावंधन और आरती को सरल भाषा में कहते है। यह वह स्वैरालापै: है जिसके उपदेश में सब शास्त्र है और वह स्वैरालापै: सरल तरिके में है । श्रीवरवर मुनि स्वामीजी अपने शिष्यों को बहुत स्पष्ट और सरल उपदेशों से प्रसन्न करते है। यहाँ हरी अरंगनगराप्पन जो पूर्व दिनचर्या का १७वां श्लोक “रंगनिधि” है उसको दर्शाता है । ‘हरी’ यानि वह जो भक्तों के बाधाओं को मिटाता है और वह जो दूसरे सभी देवताओ को नियुक्त और नियंत्रण करता है । पूर्व दिनचर्या के १७वें श्लोक में ‘अथ रंगनिधि’ सुबह कि आराधना, २९वें श्लोक में ‘आराध्य श्रीनिधीम’ भगवद आराधना और इस श्लोक में सायंकाल आराधना बताया गया है इससे हमें यह समझना चाहिये कि यह बताता हैं कि स्वामीजी भगवान की तीनों तिरु आराधना करते थे।

हिंदी अनुवाद – केशव रान्दाद रामानुजदास

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