उत्तरदिनचर्या – श्लोक – २

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः

परिचय

श्लोक १                                                                                                                                 श्लोक ३

श्लोक 

अथ गोष्ठिम्  गरिष्ठानाम् अधिष्ठाय सुमे धसाम् |
वाक्यालङ्क्रुति वाक्यानि व्याख्यातारम  नमामि म्  ||

शब्दश: अर्थ

अथ                                : यतिराज विंशति को रचने के पश्चात
गरिष्ठानाम्                    : एक जो अपनी रचनायें तैयार करने मे और आचार्य के दर्जे को संभालने के लिए सक्षम है
सुमेध्साम्                       : वास्तव में बुद्धिमान और धार्मिक
गोष्ठिम्                         : सभा
अधिष्ठाय                      : यह प्राप्त करना
वाक्यलङ्क्रुति वाक्यानि   : श्रीवचन भूषण के वाक्यों में
व्याख्यातारम                 : समझता हूँ
तम                               : उन श्रीवरवर मुनि स्वामीजी कि
नमामि                          : आराधना करता हूँ

व्याख्या

ग्रन्थ कि रचना के लिए अब तक स्वाध्याय विस्तृत तरिके से किया गया इसलिये अब वें आचार्य के महान कार्य की व्याख्या को समझाने के लिए दूसरे स्वाध्याय को पहिले के जैसे विस्तृत कर रहे है। करिश्थ = अध्यंतम कुरवक करिश्थ = श्रेष्ठ आचार्य।“सुमेधस:” उनके लिये पदवी है। अर्थो को एक ही बार सुनकर पहचानना, सिखे हुए विचारों को याद करने को मेधा कहते है। सुमेधस: जिसके पार अत्युतम मेधा है। इधर सुमेधा कौन है? कोइल कांतादै अन्नन, वानमामलाई जीयर और अन्य अष्ठ दिग्गज। श्रीवरवर मुनि स्वामीजी जो अब तक योगा में स्वयं श्रीरामानुज स्वामीजी कि पूजा करते थे अब सब कुछ त्याग कर शिष्यों के साथ बैठकर श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र को समझा रहे है। श्री देवराज स्वामीजी कहते है मैं ऐसे संत कि पूजा करत हूँ। श्रीवचन भूषण = एक आभूषण जो मणि और हीरा से बना है वह है रत्न भूषण। श्रीपिल्लै लोकाचार्य द्वारा रचित जिसमे उनके स्वयं के थोड़े ही शब्द है परन्तु दूसरे आचार्य की उच्च शब्द रचना है जो पाठक को प्रकाश दिखाता है वह है श्रीवचन भूषण। क्योंकि यह ग्रन्थ बहुत व्यवस्थित है उसके विषय सूची और शैली में श्रीवरवर मुनि स्वामीजी उसे बहुत सम्मानित तरिके से समझाते है उसके अर्थ को समझे जैसे बनाते है। वह जिनका अर्थ मालूम न था ऐसे शब्दों और पंक्तियों को तोड़कर समझाते है, ताकि वह विषय आसानी से समझ सके और जहाँ शंका हो वहाँ प्रश्न उठाकर उसका उत्तर दे सके। सुमेधस: करिश्था…..ऐसा कहकर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी जो बड़े ज्ञानि जैसे कोइल अन्नन को भी जानना मुश्किल हैं ऐसे श्रीवचन भूषण के कठिन विचार समझाते है और यह कार्य का विचार बहुत गहरा है और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि मेधा हमें उसे पालन करने में आसान करती है।

क्योंकि श्रीवचन भूषण में वेद, स्मृति, इतिहास, पुराण, दिव्य प्रबन्ध आदि का सारा सार है इस एक ग्रन्थ को समझाना बाकी सब पुराने ग्रन्थ को समझाने के बराबर है और इसलिये श्रीवरवर मुनि स्वामीजी ने इस अनोखी ग्रन्थ को समझाते हुए स्वाध्याय का हीं पालन किया।

हिंदी अनुवाद – केशव रान्दाद रामानुजदास

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