पूर्वदिनचर्या – श्लोक – १०

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः

परिचय

श्लोक  ९                                                                                                                         श्लोक  ११

श्लोक  १०

स्मयमान मुखाम्भोजं दयमानदृगंचलम् ।
मयि प्रसादप्रवणं मधुरोदारभाषणम् ॥१०॥

स्मयमान मुखाम्भोजंवरवरमुनि स्वामीजी का मुखारविन्द कमल की तरह है जो सदैव मुस्कुराता हुआ रहता है ,
दयमानदृगंचलम्        – दया के साथ एक उत्तेजित सौम्य रूप में ,
मयि                          – इन दिनों में मै वरवरमुनि स्वामीजी को देखने में असफल रहा हूँ ,
प्रसादप्रवणं                – अनुग्रह ( कृपा ) करने के लिये जो स्वीकार करते है ,
मधुरोदारभाषणम्       – जिनके वचनो में गहरा अर्थ है और सुनने में आनन्द दायक है ।

इस श्लोक में देवराजमुनि वरवरमुनि स्वामीजी की कृपा उनपर कैसे बरस रही है, इसका वर्णन करते हुये स्वामीजी के ओष्ठों की मुस्कुराहट, सौम्यरूप और मधुर वचनों का अनुभव कर रहे है । इसके साथ देवराजमुनि अनुभव करते है की वरवरमुनि स्वामीजी सदैव मुस्कुराते हुये रहते है, उनको मालूम है की निरन्तर द्वयानुसन्धान से उनका मोक्ष अत्यन्त सरल हो जायेगा, इसके अलावा उनकी मुस्कुराहट उनके मधुर शब्दों को दर्शाते है । महान व्यक्ति उनकी प्रसन्नता को मुस्कुराहट के द्वारा दर्शाते हुये बोलते है । “दया” शब्द का अर्थ होता है की दूसरों के दर्द को महसूस करना । वरवरमुनि स्वामीजी अत्यन्त दुःखी होते है, वे स्वयं द्वय मंत्र के अनुसन्धान करते हुये आनन्द का अनुभव कर रहे है और दुनिया के लोग ऐसा न करते हुये इस संसार के चक्र में पड़े हुये है । इनके वचन भी अत्यन्त मधुर है और आचार्य अपने शिष्यों के साथ मधुर वचनों में संभाषण करते है । भारद्वाज मुनि कहते है सत्य, पवित्रता, दयालुता, धैर्य और खुशी इत्यादि महत्वपूर्ण धर्म है, इन्हे सभी लोगों को अपने आचरण में लाना चाहिये । “ मयि प्रसादप्रवणं ” का अर्थ है, पहिले जान बुजकर वरवरमुनि स्वामीजी के पास ध्यान नहीं देते हुये दोषी है और अभी वरवरमुनि स्वामीजी का वैभव जानकर उनकी भक्ति कर रहे है । मेधथीथी मनुस्मृति के टिकाकार है वे कहते है सुनने के लिये आनन्द दायक शब्दों को बोलना चाहीये । शाण्डील्य मुनि कहते है वार्तालाप करते समय गहरे अर्थ के शब्दों से वार्तालाप करना चाहीये । यहाँ पर गहरे अर्थ का मतलब होता है वार्तालाप करते समय द्वय मंत्र के अर्थ को ध्यान में रखना चाहीये ।

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