आर्ति प्रबंधं – ३९

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

यह पासुरम कुछ लोगों के प्रश्न कि मामुनि के उत्तर के रूप में है। लोग मामुनि से प्रश्न करतें हैं, “ हे मामुनि! पिछले पासुरम में आपने कहाँ कि, आपका मन श्री रामानुज के चरण कमलों से अन्य सारे विषयों के पीचे जाता है (“उन ताळ ओलिन्दवट्रये उगक्कुम”) . किंचित भी अच्छाईयों के बिना, नीच साँसारिक विषयों से प्रभावित आपको श्री रामानुज स्वीकार कैसे किये ? बंधनों के प्रभाव से दुर्गुणों से भरे आपको श्री रामानुज अनुमोदित कैसे किये  ? उत्तर देते हुए मामुनि कहतें हैं, “उन्के चरण कमलों को एकमात्र आश्रय मानकर शरणागति, श्री रामानुज मेरे संचित अशुभ गुणों को शुभ मानकर अनुमोदित  किये और संतोष से  भोग्य वस्तु के रूप में स्वीकार किये। आगे इसको एक उदाहरण के सात समझाते हैं।  

पासुरम ३९

वेम्बु करियाग विरुंबिनार कैत्तेनृ

ताम पुगडादे पुसिक्कुम तम्मैपोल

तीमबन इवन एनृ निनैत्तु एन्नै इगळार एतिरासर

अनृ अरिन्दू अंगीकरिक्कैयाल

शब्दार्थ

विरुंबिनार ताम  – जिन्मे रस है

वेम्बु  –  नीम(और नीम के पत्ते)

करियाग  –  अपने सब्ज़ी में

पुगडादे –  फेंकते नहीं है

कैत्तेनृ  – कड़वा समझ कर

पुसिक्कुम  – अत्यंत रस से खाते हैं

तम्मैपोल  – यह उन लोगों की गुण हैं

(इसी प्रकार)

एतिरासर  – एम्पेरुमानार

इगळार – मुझें नहीं फेंकेंगे

निनैत्तु  – यह सोच कर कि

एन्नै  – मैं   (मामुनि)

तीमबन इवन एनृ  –  पापी है

अनृ  – उस दिन  जब मैं  उन्से शरणागति किया

अरिन्दू  – यह जान्ते हुए भी कि मैं पापि हूँ

अंगीकरिक्कैयाल  –  मेरे पापों को अपने भोग्य वस्तु मानकर मुझे अनुमोदित किये

सरल अनुवाद

इस पासुरम में मामुनि श्री रामानुज के वात्सल्य के गुणगान करते हुए कहतें हैं कि वे मामुनि के पापों को भी भोग्य वस्तु समझ अपनायें।  इस्को समझाने केलिए मामुनि नीम कि उदाहरण देतें हैं जिस्को कुछ लोग अत्यंत रस से ख़ाते हैं।  

स्पष्टीकरण

तिरुमळीसै आळ्वार के नान्मुगन तिरुवन्दादि ९४वे पासुरम के “वेम्बुं करियागुमेनृ” के अनुसार, ऐसे भी लोग हैं जो नीम तथा नीम के पत्तों को सब्ज़ी के रूप में खातें हैं।  इस पासुरम के सहायता से मामुनि इस विषय कि विवरण देतें हैं। कहतें हैं कि, “ कुछ लोग हैं जो मीठाइ पसंद नहीं करतें हैं। ये जानते हुए, अपने पसंद के कारण, अत्यंत आनंद और  रुचि के सात, नीम के जैसे कड़वी वस्तु अपने भोजन में , खातें हैं। इसी प्रकार मेरे शरणागति करते वक्त, श्री रामानुज को मेरे सारें पापों कि जानकारी होते हुए भी, वे मुझे इंकार करने कि बजाय, उन्हीं पापों को भोग्य वस्तु समझ मुझे स्वीकार किये।”

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2017/02/arththi-prabandham-39/

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