श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
भगवद श्रीरामानुज स्वामीजी ने नौ उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना की– श्रीभाष्य, वेदांत सारम, वेदांत दीपम, वेदार्थ संग्रहम, गीता भाष्यम, नित्य ग्रंथ, शरणागति गद्यम, श्रीरंग गद्यम और श्रीवैकुंठ गद्यम।
प्रथम तीन ग्रंथ, ब्रह्म सूत्र से सम्बंधित है, चतुर्थ ग्रंथ, वेदांत के कुछ विशिष्ट छंदों से संबंधित है, पंचम ग्रंथ, भगवद गीता पर रचित व्याख्यान है और नित्य ग्रंथ, श्रीवैष्णवों द्वारा किये जाने वाले दैनिक अनुष्ठानों (विशेषतः तिरुवाराधन) से संबंधित है।
अंतिम तीन ग्रंथ हमारे सिद्धांत की जीवनरेखा हैं– यह शरणागति के स्वरुप और उसे कैसे अनुसरण किया जाता है, उस विषय में अत्यंत सुंदर वर्णन प्रदान करता है। गद्य अर्थात छंदरहित और त्रय अर्थात तीन। क्यूंकि इस श्रृंखला में त्रय/ तीन गद्य हैं, इसलिए एक रूप में इसे गद्य त्रय भी कहा जाता है। हमारे पूर्वाचार्यों ने इन गद्य त्रय को अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया है। यही कारण है कि जिनमें अन्य दिव्य संप्रदाय ग्रंथों के सार को आत्मसात करने का सामर्थ्य नहीं है, वे भी अपने आचार्य की कृपा से इन तीन ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। आज की अत्यंत तेज जीवनशैली में, कभी-कभी आचार्य के लिए अपने अनुयायियों को इनके समस्त अर्थों का ज्ञान प्रदान करना कठिन हो जाता है। इसलिए इन तीन गद्यों की विशेषता को लेखों की श्रृंखला द्वारा समझाने का यह एक छोटा सा प्रयास है।
श्रीरंगनाच्चियार और श्रीरंगनाथ भगवान– श्रीरंगम
श्रीरामानुज स्वामीजी – श्रीरंगम
श्रीरामानुज स्वामीजी ने श्रीरंगम में पेरिय पिराट्टियार के तिरुनक्षत्र दिवस, उत्तर-फाल्गुन का चयन कर, उस दिन दिव्य दंपत्ति के श्रीचरणों में शरणागति की और अपने अनुयायियों को भी अनुकरणीय मार्ग दर्शाया। इस दिन श्रीरंगम में श्रीरंगनाथ भगवान और श्रीरंगनाच्चियार दोनों एक ही सिंहासन पर विराजमान होकर अपने दासों पर कृपा करते हैं। यह वर्ष का एकमात्र दिवस है, जब दिव्य दंपत्ति एक साथ विराजते हैं। श्रीरंगनाच्चियार के साथ विराजे भगवान श्रीरंगनाथ अपना सख्त स्वरुप त्यागकर, अपने दासों पर दया करते हैं। इसलिए श्रीरामानुज स्वामीजी ने इस दिन का चयन किया।
सर्वप्रथम उन्होंने पेरिय पिराट्टीयार के श्रीचरणों में शरणागति की, और तद्पश्चात नम्पेरुमाल के श्रीचरणों में। शरणागति गद्य में इसी की व्याख्या की गयी है। फिर उन्होंने श्रीरंग गद्य की रचना की, जो विशेषतः श्रीरंगम में विराजे नम्पेरुमाल के प्रति समर्पित है। तृतीय गद्य (श्रीवैकुंठ गद्य) में श्रीरामानुज स्वामीजी, श्रीवैकुंठ की विशेषताओं का वर्णन करते हैं, जिससे प्रपन्न (वह प्राणी जो प्रपत्ति अथवा शरणागति करता है) उस स्थान के महत्त्व को समझ सके जहाँ मोक्ष (लौकिक संसार से, जन्म मरण के चक्र से मुक्ति) प्राप्ति पर उन्हें जाना है।
इस गद्य के अर्थों का प्रयास, परमकरुणाकर श्रीपेरियवाच्चान पिल्लै के व्याख्यान पर आधारित है। शरणागति गद्य में 23 चूर्णिकायें हैं (एक चूर्णिका लगभग एक परिच्छेद के समान है)। सर्वप्रथम प्रत्येक चूर्णिका के शब्दों का अर्थ समझाया गया है और फिर श्रीपेरियवाच्चान पिल्लै के व्याख्यान के माध्यम से श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा प्रकट किये गए सार को समझाया गया है। हम श्रीवेलुक्कुड़ी श्री उ.वे. कृष्णन स्वामीजी के आभारी हैं, जिनके कालक्षेप के द्वारा श्रीपेरियवाच्चान पिल्लै के अद्भुत व्याख्यान को समझने में सहायता प्राप्त हुई।
अब हम इस अद्भुत ग्रंथ के हिंदी अनुवाद को प्रारंभ करेंगे।
- तनियन
- प्रवेशं (परिचय)
- चूर्णिका 1
- चूर्णिका 2 – 4
- चूर्णिका 5
- चूर्णिका 6
- चूर्णिका 7
- चूर्णिका 8 और 9
- चूर्णिका 10
- चूर्णिका 11
- चूर्णिका 12
- चूर्णिका 13
- चूर्णिका 14 और 15
- चूर्णिका 16
- चूर्णिका 17
- भाग 1
- भाग 2
- चूर्णिका 18
- चूर्णिका 19
- चूर्णिका 20
- चूर्णिका 21 – 23
– अडियेन भगवती रामानुजदासी
अंग्रेजी संस्करण – http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2015/11/saranagathi-gadhyam/
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
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