उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् २५ -२६

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर २३ – २४

पासुरम् २५
पच्चीसवां पासुरम्। मामुनिगळ् मधुरकवि की महिमा को दो पासुरों में प्रकट करते हैं। इस पासुर में वे अपने हृदय से कहते हैं कि, चित्तिरै (चैत्र) महीने के चित्तिरै (चित्रा) नक्षत्र‌के दिन, जब मधुरकवि आऴ्वार् का अवतार दिन है, अन्य आऴ्वारों के अवतार दिनों के ऊपर इसकी महानता का विश्लेषण करे।

एरार् मधुरकवि इव्वुलगिल् वन्दु उदित्त नाळ्
सीरारुम् चित्तिरैयिल् चित्तिरै नाळ् – पार् उलगिल्
मटृळ्ळ आऴ्वार्गळ् वन्दु उदित्त नाळ्गळिलुम्
उट्रादु एमक्कु एन्ऱु नेञ्जे ओर्

हे हृदय! चित्तिरै मास में चित्तिरै नक्षत्र उपयुक्त महानता का दिन है, जब उपयुक्त महानता के मधुरकवि आऴ्वार् ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया था। विश्लेषण करना कि यह दिन अन्य आऴ्वारों के अवतार दिनों की तुलना में हमारे स्वरूप (स्वभाव) के लिए उपयुक्त दिन है।

हमारे पूर्वाचार्यों में से एक, पिळ्ळै लोकाचार्य ने अपने शास्त्र, श्रीवचन भूषणम् में मधुरकवि आऴ्वार् की अनूठी महानता को सुंदरता से समझाया है। अन्य आऴ्वार् जब पीड़ित होते कि कब एम्पेरुमान् से संयुक्त होंगे, उस समय वेदना में पासुरों की रचना करते, और जब मन की क्षमता के माध्यम से एम्पेरुमान् का अनुभव करते, तब उन्होंने प्रसन्नचित्त अवस्था में पासुरों की रचना की‌। हालाँकि, मधुरकवि आऴ्वार् ने अपने आचार्य नम्माऴ्वार् को अपना सर्वस्व मानते थे और उनके कैंङ्कर्य में संलग्न रहते थे। इसलिए, वे इस संसार में सदैव आनंदित अवस्था में रहते थे, उसके बारे में चर्चा करते थे और अन्यों को भी समझाते थे। यह महानता और किसी में नहीं है। सीरारुम् चित्तिरैयिल् चित्तिरै नाळ् वाक्यांश में सीर्मै (उत्कृष्टता या महानता) यह शब्द चित्तिरै मास और चित्तिरै नक्षत्र दोनों के लिए योग्य है। हमारा स्वरूप यह है कि आचार्य की कृपा की आशा में रहना। आऴ्वार् की यह स्थिति इसके अनुरूप है।

पासुरम् २६
छब्बीसवां पासुरम्। मामुनिगळ् एक उदाहरण सहित समझाते हैं कि कैसे आचार्यों ने, जिन्होंने आऴ्वारों के अरुळिच्चेयल् (दिव्य रचना) का अर्थ निर्धारित और प्रकट किया, मधुरकवि आऴ्वार् के प्रबंधम् की महानता का विश्लेषण किया और उसे अरुळिच्चेयल् में संग्रह किया।

वाय्त्त तिरुमंदिरत्तिन् मद्दिममाम् पदम् पोल्
सीर्त्त मधुरकवि सेय्कलैयै – आर्त्त पुगऴ्
आरियर्गळ् ताङ्गळ् अरुळिच्चेयल् नडुवे
सेर्वित्तार् ताऱ्परियम् तेर्न्दु

तिरुमंत्रम् (दिव्य मंत्र) जो आठ अक्षरों से बना है, शब्दों और अर्थों से परिपूर्ण है ऐसे माना जाता है। इसका मध्य पद “नमः” की महानता की समता प्रख्यात मधुरकवि आऴ्वार् द्वारा रचित कण्णिणुन् सिऱुत्ताम्बु की‌ अद्भुत रचना ही कर सकती है। इस प्रबंध के अर्थ का महान मूल्य जानने वाले आचार्यों ने इसे अन्य आऴ्वारों के अरुळिच्चेयल् के साथ समाविष्ट करने और इतर प्रबंधम् के साथ सदैव इसका गायन करने की‌ व्यवस्था की।
“नमः” शब्द भागवत शेषत्व – एम्पेरुमान् के भक्तों का कैंङ्कर्य को इंगित करता है। मधुरकवि आऴ्वार् ने नम्माऴ्वार् को स्वयं भगवान माना जैसे कि उन्होंने कहा देवु मट्रऱियेन् – मैं अन्य भगवान को न जानता, उनके प्रबंध में‌ उनकी गहरी आस्था को प्रकट करता है। यह जानकर, आचार्यों ने इतर अरुळिच्चेयल् के साथ इस प्रबंधम् का समावेश करके इसे सम्मानित किया।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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