तिरुप्पावै – सरल व्याख्या – पाशुर १६ से २०

।।श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमत् वरवरमुनये नमः।।

तिरुप्पावै

<< पाशुर ६ – १५

इस सोलहवे पाशुर  में देवी आन्डाळ् नित्यसुरियों के लौकिक प्रतिनिधियों, जैसे क्षेत्रपाल द्वारपाल, आदिशेष आदि… को जगा रही है।

सोलहवाँ पाशुर:

इस सोलहवे पाशुर में देवी नन्दगोप के महल और नन्दगोप के कमरे के द्वारपाल को जगा रही है।

नायगनाय् निन्ऱ नन्दगोपनुडैय
  कोयिल् काप्पाने कोडित्तोन्ऱुम् तोरण
वायिल् काप्पाने मणिक्कदवम् ताळ् तिऱवाय्
  आयर् सिऱुमियरोमुक्कु अऱै पऱै
मायन् मणिवण्णन् नेन्नले वाय् नेर्न्दान्
  तूयोमाय् वन्दोम् तुयिल् एळप् पाडुवान्
वायाल् मुन्नमुन्नम् माऱ्ऱादे अम्मा नी
  नेय निलैक्कदवम् नीक्कु एलोर् एम्बावाय्

हे ! हमारे नायक नन्दगोप के  दिव्य महल की रक्षा करने वाले द्वारपालकों।

हे ! हमारे ध्वज लगे मेहराबों की रक्षा करने वालों, तुम्हे रत्नजड़ित द्वार की कुण्डी खोल देनी चाहिये।

कृष्ण जिनकी दिव्य अद्भुत गतिविधियां है, जिनका रंग नीलमणि जैसा है, उन्होंने कल हमें वचन दिया था की वह नाद करने वाले ढोल हमें देंगे।

हम सभी शुद्ध पवित्र मन से उन्हें जगाने आयी हैं ।

हे मेरे स्वामी! आप जिन्हे कृष्ण से मोह, प्रेम है आपको द्वार खोल देने चाहिये।

सत्रहवाँ पाशुर:

सत्रहवें पाशुर में देवी आण्डाळ्  नन्दगोपन्, माँ यशोदा और बलरामजी को जगा रही है।

अम्बरमे तण्णीरे सोऱे अऱन्जेय्युम्
  एम्पेरुमान् नन्दगोपाला एळुन्दिराय्
कोम्बनार्क्केल्लाम् कोळुन्दे कुलविळक्के
  एम्पेरुमाट्टि यसोदाय् अऱिवुऱाय्
अम्बरम् ऊडु अऱुत्तु ओन्गि उलगु अळन्द
  उम्बर् कोमाने उऱन्गादु एळुन्दिराय्
सेम्बोन् कळल् अडिच् चेल्वा बलदेवा
  उम्बियुम् नीयुम् उऱन्गु एलोर् एम्बावाय्`

ओह ! वस्त्र अन्न जल दान करने वाले, हे नाथ नन्दगोप उठो, हे ! छरहरे बदन वाली ग्वालकुल की नायिका, हे! ग्वालकुल की दीपस्तम्भ, ओ ! यशोदा पिराट्टी अवगत हो जाइये! हे !आकाशीय गृह तारों के राजा! जिन्होंने  आकाश को चीरते  हुए सारे संसार को मापते हुए  ऊपर उठे ,आपको अब नींद से  जागना चाहिए | हे लाली लिये स्वर्णिम पायल धारण करने वाले बलराम ! आप दोनों भाइयों को अब उठ जाना चाहिये।

अट्ठारवें , उनीसवें और बीसवें पाशुर में देवी गोदाम्बाजी को यह आभास होता है की, भगवान कृष्ण को जगाने में कहीं कोई कमी रह गयी, उन्हें लगता है की भगवान् कृष्ण को जगाने में उन्हें देवी नप्पिन्नै पिराट्टी का पुरुषकार  लेना चाहिये।

इसलिये इन तीन पाशुरों में देवी आण्डाळ् , नप्पिन्नै पिराट्टी की महानता का उल्लेख करती है।

जैसे नप्पिन्नै पिराट्टी की भगवान् कृष्ण के साथ अंतरंगता, उनके दिव्य चिर यौवन की बात कहती है, कैसे भगवान् के साथ रह आनंद लेती है और उनके गुण जिससे वह भगवान की इतनी प्रिय हो गयी, का बखान करती है।

भगवान को चेतन जीवों पर कृपा करने के लिये बाध्य करने के गुण की भी प्रशंसा करती है।

हमारे पूर्वाचार्य कहते है की पिराट्टी को भूल, सिर्फ भगवान् को प्राप्त करने की इच्छा, शूर्पणखा की इच्छा की तरह है, जो सीताजी को छोड़ उनके सम्मुख ही रामजी को पाने की इच्छा रखती थी।

भगवान् को छोड़, पिराट्टी को पाने की ही इच्छा रखे तो उसकी इच्छा रावण की इच्छा की तरह है, जो भगवान रामजी को छोड़ सीताजी की ही कामना करता था।

अट्ठारवाँ पाशुर :

अट्ठारवें पाशुर में , देवी के बहुत जगाने पर भी भगवान निद्रा से नहीं उठे, देवी सोंचती है उसे नप्पिन्नै पिराट्टी की अनुशंसा (पुरुषकार) लेकर सतत प्रयास करते रहना चाहिये ।

 यह पाशुर भगवद रामानुज स्वामीजी को अति प्रिय था।

उन्दु मद कळिऱ्ऱन् ओडाद तोळ् वलियन्
  नन्द गोपालन् मरुमगळे नप्पिन्नाय्
गन्दम् कमळुम् कुळली कडै तिऱवाय्
  वन्दु एन्गुम् कोळि अळैत्तन काण् मादविप्
पन्दल् मेल् पल्गाल् कुयिल् इनन्गळ् कूविन काण्
  पन्दार् विरलि उन् मैत्तुनन् पेर् पाड
सेन्दामरैक् कैयाल् सीर् आर् वळै ओलिप्प
  वन्दु तिऱवाय् मगिळ्न्दु एलोर् एम्बावाय् !

ओ ! हाथी से बलवान, चौड़े कांधो वाले,  जो युद्ध में कभी पीछे नहीं हटते, ऐसे नन्दगोप की पुत्रवधु।

ओ ! नप्पिन्नै  पिराट्टी, ओ ! सुगन्धित केशों वाली, द्वार खोलो, देखो चहुँ और चिड़ियाँ चहक रही है, कोयल लताओं से घिरे मचान से कुक रही है।

अपने उँगलियों से  पुष्प गेंद से खेलने वाली, अपने लाली लिये कमल के समान, दिव्य सुन्दर हाथों में पहनी चूड़ियों को खनकाते प्रसन्नता से द्वार खोलो । 

उनीसवाँ पाशुर :

इस पाशुर में देवी ,कृष्णजी और नप्पिन्नै  पिराट्टी को बारी बारी से जगाने का प्रयत्न कर रही है ।

कुत्तु विळक्कु एरियक् कोट्टुक्काल् कट्टिल् मेल्
  मेत्तेन्ऱ पन्जसयनत्तिन् मेल् एऱि
कोत्तु अलर् पून्गुळल् नप्पिन्नै कोन्गैमेल्
  वैत्तुक् किडन्द मलर् मार्बा वाय् तिऱवाय्
मैत्तडम् कण्णिनाय् नी उन् मणाळनै
  एत्तनै पोदुम् तुयिल् एळ ओट्टाय् काण्
एत्तनैयेलुम् पिरिवु आऱ्ऱगिल्लायाल्
  तत्तुवम् अन्ऱु तगवु एलोर् एम्बावाय्

ओ ! चिराग से प्रकाशमान अपने कमरे में , हाथी दन्त से बने सुसज्जित पलंग पर,नप्पिन्नै पिराट्टि के संग, जिसके केशपाश सलीके से सुन्दर फूलों से सजे हुये है, के विकसित वक्षस्थल पर सोने वाले ।

हे नाथ ! अपने दिव्य मुख से कुछ तो हम को कहो ।

ओह ! अपनी आँखों को काजल से सजाने वाली, क्या तुम अपने पति को एक पल के लिये भी उठने नहीं दे रही ? क्या तुम उनसे एक पल भी दूर नहीं रह सकती, हमारे नज़दीक आने से उन्हें रोकना आपके स्वभाव और स्वरुप के अनुकूल नहीं लगता है ।

बीसवाँ पाशुर :

इस पाशुर में देवी आन्डाळ् नप्पिन्नै पिराट्टि और भगवान् कृष्ण दोनों को जगा रही है ।

नप्पिन्नै पिराट्टि से कहती है कि , तुम्हे हम सबको कृष्ण से मिलाना चाहिये, हमें उनके मिलन के आनंद का अनुभव लेने में सहायक होना चाहिये ।

मुप्पत्तु मूवर् अमरर्क्कु मुन् सेन्ऱु
  कप्पम् तविर्क्कुम् कलिये तुयिल् एळाय्
सेप्पम् उडैयाय् तिऱल् उडैयाय् सेऱ्ऱार्क्कु
  वेप्पम् कोडुक्कुम् विमला तुयिल् एळाय्
सेप्पन्न मेन् मुलै सेव्वाय्च् चिऱु मरुन्गुल्
  नप्पिन्नै नन्गाय् तिरुवे तुयिल् एळाय्
उक्कमुम् तट्टु ओळियुम् तन्दु उन् मणाळनै
  इप्पोदे एम्मै नीराट्टु एलोर् एम्बावाय्

३३ कोटि देवताओं के कष्ट निवारण का सामर्थ्य रखने वाले हे कृष्ण , उठों !भक्तों की रक्षा करने वाले , शत्रुओं का संहार करने वाले उठो! मुख पर लालिमा लिये, स्वर्ण कान्ति लिये विकसित उरोजों वाली, पतली कमर वाली हे नप्पिन्नै पिराट्टी ! आप तो माता महालक्ष्मी सी लग रही हो, उठिये. आप हमें हमारे व्रत अनुष्ठान के लिये, ताड़पत्र से बने पंखे, दर्पण और आपके स्वामी  कण्णन् आदि प्रदान कर , हमें स्नान करवाइये ।

अडियेन श्याम सुन्दर रामानुज दास

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