श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
मामुनि पिछले पासुरम में भागवदों (भगवान श्रीमन नारायण के भक्त) के प्रति कैंकर्य के बारे में गाये। तब, “इरामानुसाय नम:” कहतें हुए, वें, श्री रामानुज और उन्के भक्तों के प्रति कैंकर्य करने कि लिए उन्के इन्द्रियों और अंगों को आशीर्वाद करने वाले पेरिय पेरुमाळ की स्मरण करतें हैं। वे इस विषय को अत्यंत संतुष्टि के संग कहतें हैं।
पासुरम ४८
एणादु एन्नेंजम इसैयादु एन नावु इरैंजादु सेन्नी
कण्णानवै ओंरुम काणलुरा कलियार नलिय
ओण्णाद वण्णम उलगु अळित्तोन ऐतिरासन अडि
नण्णादवरै अरंगेसर सैयद नलम नमक्के
शब्दार्थ
नण्णादवरै – ऐसे भी लोग हैं जो शरणागति नहीं करतें हैं
ऐतिरासन अडि – चरण कमल श्री एम्पेरुमानार के , जो
अळित्तोन – रक्षा किये
उलगु – साँसारिक
कलियार – कलियुग के लोग, जो विवेकी होते हैं
नलिय ओण्णाद वण्णम – कलि के क्रूरता के प्रभाव से
एन्नेंजम – (ऐसे लोगों के प्रति ) मेरा ह्रदय नहीं
एण्णादु – नहीं सोचेगा
एन नावु – मेरा वचन
इसैयादु – उनके बारें में नहीं होगा
सेन्नी – मेरा सिर
इरैंजादु – नहीं झुकेगा (उनके ओर )
कणानवै – मेरे आँख
ओंरुम काणलुरा – कुछ नहीं देखेगा (उनसे संबंधित)
अरंगेसर – पेरिय पेरुमाळ ने ही मुझें सोच और उस्से संबंधित इन्द्रियाँ दिए।
सैयद नलम नमक्के – ये इन्द्रियाँ किसी अन्य के सेवक नहीं बनेंगे। ये केवल श्री रामानुज के ही हैं। और यह श्री नम्पेरुमाळ के आशीर्वाद के द्वारा ही हमें प्राप्त हुआ।
(कलियार नलिय ओण्णाद वण्णम उलगु अळित्तान ऐतिरासन – इसका अर्थ ऐसे भी हो सकता हैं : “ कलि के क्रूरता से सँसार को श्री रामानुज बचाएँ )
सरल अनुवाद
मामुनि का कहना हैं कि श्री रामानुज के चरण कमलों में शरणागति न करने वालों के प्रति , उन्के (मामुनि के ) मन , आँखें, जिह्व, और सिर कभी अपना कर्तव्य न निभायेंगे। वे कहतें हैं कि, उन्के आँखें उन्हें न देखेंगें , सिर न झुखेगा , मन विचार न करेगा , और जिह्व उन्के विषय नहीं बोलेगा। मामुनि इस विषय को सौंपने वाले पेरिय पेरुमाळ श्री रंगराजन के कृपा कि अत्यंत प्रशंसा करतें हैं।
स्पष्टीकरण
मामुनि कहतें हैं कि, इरामानुस नूट्रन्दादि १६वे पासुरम के, “ताळवॉण्ड्रिल्ला मरै ताल्ंदु तल मुळुदुम कलिये आळगिन्ड्र नाळवंदळित्तवन” के अनुसार एम्पेरुमानार इस सँसार को कलि के क्रूरता से रक्षा करतें हैं। इरामानुस नूट्रन्दादि ४५वे पासुरम के “पेर अोनृ मट्रील्लै” के प्रकार, उपाय एवं उपेय (मार्ग तथा लक्ष्य) एम्पेरुमानार के दिव्य चरण कमल हैं। इस बात के अज्ञान पर भी एम्पेरुमानार के दिव्य चरण कमलों में शरणागति करने वालों के प्रति मेरे इन्द्रियाँ और अंग ऐसे रहेंगें: यतिराज विंशति ४ के “नित्यं यतींद्र” और “नैयुम मनं उन गुणंगळै एँण्णि” के प्रकार मेरा बुद्धि और हृदय उछल खूदकर एम्पेरुमानार के श्रेय में मग्न, उन्हीं के गुण-गान करेंगे। किंतु श्री रामानुज के दिव्य चरण कमलों में शरणागति न करने वालों के प्रति, मेरे इन्द्रियाँ और हृदय बंद हो जाएँगे। पेरिय पेरुमाळ श्री रंगराजन के असीमित कृपा ही मेरे ऐसे बर्ताव की कारण हैं। “नँणादवरै अरंगेसर सैयद नलं” में उपस्तित “नलं” का अर्थ “धन” है। “ मन: पूर्वो वागुत्तर:” वचनानुसार वचन/जिह्व मन से जुड़ा हुआ हैं , क्योंकि मन से उगने वालें विचारों का जिह्व माध्यम है। किंतु तिरुवाय्मोळि ४.५.४ के “नावियल इसै मालैगळ एत्ती” के प्रकार मेरा जिह्व उनकी प्रशंसा ही नहीं उन्के बारे में बात भी न करेगा। कूरत्ताळ्वान के रचित तनियन के “प्रणमामि मूर्ध्ना” को प्रतिबिंबित करते हुए श्री रामानुज के आगे झुकने वाला यह सिर इन लोगों के सामने न झुकेगा। इरामानुस नूट्रन्दादि १०२वे पासुरम के “कण करुदिडुम काण” और यतिराज विंषति १ के “श्री माधवाङ्गरी” के जैसे मेरी आँखें उन्हें कभी नहीं देखेँगे। “कलियार” कलि युग का व्यक्तित्व हैं। (पेरिय तिरुमोळि १.६.८) “येविनार कलियार” से साबित है कि कलि की क्रूरता इतनी घोर हैं कि भय के कारण उसे मर्यादा से पुकारना पड़ता हैं।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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