आर्ति प्रबंधं – ४७

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

“ऐतिरासर्काळानोम याम” कहते हुए, संतुष्ट होकर, मामुनि “रामानुज” दिव्य नाम कि महान्ता  को प्रकट करने का इच्छा करतें हैं। मामुनि का मानना है कि पूर्व पासुरम में “ माकान्त नारणनार” और “नारायणन तिरुमाल” से कहें  गए “नारायणा” दिव्य नाम से “रामानुज” दिव्य नाम और भी उत्तम और महत्वपूर्ण हैं।

पासुरम ४७

इरामानुसाय नमवेनृ इरवुम पगलुम सिंदित्तिरा

मानुसरगळ इरुप्पिडम तन्निल इरैपोळुदुमिरा

मानुसर अवरक्कु एल्ला अडिमैयुम सेय्यवेणणि

इरा मानुसर तम्मै मानुसराग एन्कोल एणणुवदे

 

शब्दार्थ

मानुसरगळ – ( हैं) कुछ लोग

इरा  – जो नहीं करतें हैं

इरवुम पगलुम  – दिन और रात

सिंदित्तिरा – (के ओर )द्यान

इरामानुसाय  – श्री रामानुज

नमवेनृ – जो कहे “इरामानुसाय नम:”  ( इस्का अनुवाद है, “ मैं खुद मेरे लिए नहीं हूँ , मैं श्री रामानुज के लिए हूँ )

मानुसर अवरक्कु – ऐसे कुछ लोग ( कूरत्ताळ्वान के जैसे )

इरा – जो नहीं जीतें हैं

इरैपोळुदुम – एक क्षण मात्र भी

इरुप्पिडम तन्निल – आगे बताये गए लोगों के स्थल ( जो दिन रात “इरामानुसाय  नम:” नहीं कहतें हैं)

मानुसर तम्मै  – लोग

इरा – जो नहीं

सेय्यवेणणि  – करतें हैं

एल्ला अडिमैयुम  – सारें कैंकर्यं (कूरत्ताळ्वान के जैसे लोगों के प्रति)

मानुसराग एन्कोल एणणुवदे  – इनको मनुष्य कैसे माने जाए ? यह पशु के समान हैं।  

 

सरल अनुवाद

मामुनि कहतें हैं कि सँसार में तीन प्रकार के लोग होते हैं।  हम उनको गण १, गण २ , गण ३ के नाम से बुलाएँगे। गण १ के लोग कभी “इरामानुसाय नम:” नहीं कहतें है।  गण २ के लोग ऐसे गुण के हैं कि वें गण १ के संग कभी नहीं रह पाएँगे। इसकी सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कूरत्ताळ्वान हैं। आखरी हैं गण ३ के लोग जो न गण २ लोगों कि श्रेयस तथा महान्ता समझते हैं , न ही उनके प्रति नित्य  कैंकर्य में इच्छा रखते हैं। मामुनि को शंका हैं कि गैन ३ के जैसे लोगों को मनुष्य कैसे माना जाए, जब वें पशुओँ के समान हैं।

 

स्पष्टीकरण

मामुनि श्री रामानुज के दिव्य नाम की श्रेयस प्रकट करते हुए कहतें हैं कि , “सारे जनों को निरंतर “इरामानुसाय नम:” दिव्य मंत्र पर ध्यान करना आवश्यक हैं” . तिरुमंगैयाळ्वार के (पेरिय तिरुमोळि १.१.१५) “नळ्ळिरुळ अळवुम पगलुम नान अळैप्पन” के अनुसार यह स्मरण  दिन रात होनी चाहिए। किन्तु अनेक जन हैं जो यह नहीं करतें हैं। हर एक को यह महसूस करना चाहिए कि “इरामानुसाय नम:” दिव्य मंत्र पर ध्यान न करने वालों के संग कभी नहीं रहना हैं। पशुओँ के समान इन जनों के संगत या स्नेह भाव नहीं रखनी चाहिए। कूरत्ताळ्वान कि तरह शास्त्र के अनुसार जीने वालों को कभी भी इन जैसे लोगों के संग नहीं रहना चाहिए। “इरामानुसाय नम:” दिव्य मंत्र पर ध्यान न करने वालों इस दूर रहने वाले गण के लोगों कि महान्ता को समझ कर उसकी प्रशंसा करनी चाहिए।  ऐसे उत्तम जनों के प्रति निरंतर कैंकर्य करने को तरसना चाहिए। इस भाव को ही तिरुवरंगत्तमुदनार “एत्तोळुंबुम सोल्लाल मनत्ताल करुमत्तिनाल सेयवन सोरविनड्रिये” (इरामानुस नूट्रन्दादि ८० ) में प्रकट करतें हैं। “मानिडवरल्लर एन्रे एन मनत्ते वैत्तेन” के अनुसार, इन उत्तम जनों के प्रति कैंकर्य न करने वाले पशु समान हैं। अंत में मामुनि कहतें हैं कि, “इरामानुसाय नम: दिव्य मंत्र पर ध्यान न करने वालों के संग न रहने वालों के प्रति जो नित्य कैंकर्य न करें , वें मनुष्य कैसे मानें जा सकतें हैं ?”

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

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