श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
पासुरम ८
तन कुळवि वान किणट्रै चार्न्दिरुक्क कनडिरुन्दाल
एन्बदन्रो अन्नै पळियेर्किन्राल – नंगु उणरिल
एन्नाले नासं मेलुम एतिरासा
उन्नाले आम उरवै ओर
शब्दार्थ
तन कुळवि – अगर अपना बच्चा
चार्न्दिरुक्क – निकट
वान किणट्र – एक बड़ा कुआँ (कुऍ में गिरने से बच्चे की मृत्यु हो जाए )
एन्बदन्रो – तो संसार कहेगा
कणडिरुन्दाल – माँ ने यह देखा (कुऍ के पास जाते हुए पर ध्यान न दिया )
अन्नै – (अंत में ) माता
येर्किन्राळ – ज़िम्मेदारी लेति है
पळि – गलति
नंगु उणरिल – ध्यान से सोचे तो
एन्नाले – पापो के गड्ढे में पडा मैं हूँ
इन नासमेलुम – अगर मेरी नाश भी हो
एतिरासा – हे ! यतिराजा
ओर – कृपया समझाइये
उरवै – रिश्ते को
आम – जो स्थापित है
उन्नाले – आपके (और मेरे ) कारण (अर्थात श्री रामानुज और मणवाळ मामुनि के बीच मात्रु -शिशु संबंध को देख, संसार, बच्चे की पालन न करने का दोष माता को देगी)
सरल अनुवाद
इस पासुरम में मणवाळ मामुनि श्री रामानुज के प्रश्न की उत्तर देते हैं। श्री रामानुज पूछते हैं , “तुम्हारा कहना यह है कि शिशु को पालने वाली माता की तरह, हम तुम्हारे रक्षण करे , पर तुम्हारे कभी अच्छे कर्म नहीं थे और अब बुरे कर्म अधिक हो रहे हैं , ऐसे व्यक्ति की हम रक्षण कैसे करे ? मणवाळ मामुनि उत्तर देते हुए कहते हैं कि, रक्षण न करने से श्री रामानुज पर ही कलंक आएगा। यहाँ एक सुन्दर दृश्टान्त यह है कि एक अन्जान ,मासूम बच्चे को कुछ भी होने से उस बच्चे कि माता को ही दोष दिया जाता है। शाश्त्र कहता है कि ५ से कम उम्र के बच्चे के मृत्यु होने पर, बच्चे की माता ही दोषी कहलाती हैं।
स्पष्टीकरण
शास्त्र कहता है कि पाँच सालों से कम उम्र के बच्चे की अचानक मृत्यु होने पर, माता ही उपेक्षा के कारण दोषी मानी जाती हैं। इस दोष से बचने केलिए माता को अधिक ध्यान से बच्चे की रक्षा करना है। अगर एक छोटा बच्चा (५ सालों से कम उम्र ) एक कुए के निकट जाता है और अचानक से कुए में घिर कर उसकी मृत्यु हो जाती है , इस स्तिथि में , उस माँ से अन्जान भी बच्चा कुए के पास गया हो , तब भी माता की उपेक्षा ही दोषित मानी जाएगी। मणवाळ मामुनि कहते है कि “हे ! यतिराजा ! इसी प्रकार पापो के गड्ढे में गिरा हुआ अडियेन, खुद को नाश करने कि कोशिश करूँ तो आपके और अडियेन से संबंध याद रखे। मेरे माता होने के नाते शिशु के मृत्यु की उत्तरदायित्व आपकी होगी। अतः इस संबंध के कारण आपसे रक्षा करने केलिए विनती करता हूँ। इस विषय में श्री वचन भूषणं के सूत्र #३७१ में पिळ्ळै लोकाचार्यार प्रस्ताव करते हैं , “ प्रजयै किणट्रिन करयिल निन्रुम वाङ्गादोळिन्दाल ताये तळिनाळ एन्नक कडवदिरे” .
अतिरिक्त टिप्पणी
इस पासुरम मे मणवाळ मामुनि की चतुराई झलकती है। वे नहीं कहते हैं कि बच्चे के मृत्यु की जिम्मेदार माता जैसे यतिराजा मणवाळ मामुनि के पापो केलिए जिम्मेदार हैं। वे मानते हैं कि उनकी कर्म ही पापो के गहरे गड्ढे में गिरने की और उससे सम्बंधित पीड़ा की कारण हैं। वे अपने पापो को किसी भी प्रकार यतिराजा से संबंध नहीं करते हैं। पर वे श्री रामानुज से उनके बीच उपस्थित माता-पुत्र के रिश्ते पर विचार करने का विनती करते हैं। इस रिश्ते के कारण मणवाळ मामुनि श्री रामानुज को अपने रक्षा करने का प्रार्थना करते हैं, क्योंकि ऐसे न करने पर, संसार श्री रामानुज को मणवाळ मामुनि के विनाश काल पर रक्षा न करने कि दोष देगी।
अडियेन प्रीती रामानुज दासि
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