श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः
श्लोक १४
परेद्युः पश्चिमे यामे यामिन्यास्समुपस्थिते ।
प्रबुद्धय शरणं गत्वा परां गुरूपरम्पराम् ॥ १४ ॥
परेद्युः – वरवरमुनि स्वामीजी के अनेपक्षित संबंध के अगले दिन,
पश्चिमे यामे – रात्री के अंतिम भाग में,
समुपस्थिते – जब संपर्क किया गया,
प्रबुद्धय – वरवरमुनि स्वामीजी शयन से जागृत हुये,
परां – भव्य,
गुरूपरम्पराम् – श्रीमन्नारायण भगवान से लेकर वरवरमुनि स्वामीजी के आचार्य श्री शैलपूर्ण स्वामीजी तक गुरू परम्परा,
गत्वा – मनन करते हुये प्रार्थना करना ।
यहाँ पर देवराजमुनि पहीले वर्णन किये हुये कुछ संदर्भों को संक्षेप में बता रहे है । वरवरमुनि स्वामीजी के दैनिक कार्यों को वर्णन कर रहे है । भगवतगीता में कृष्ण भगवान चरम श्लोक में कहते है मोक्ष प्राप्त करने के लिये सभी धर्मों का त्यागकर मुझे एक मात्र साधन के रूप में स्वीकार करो । फिर भी हमारे पूर्वज दैनिक अनुष्ठान को भगवत कैंकर्य समझकर करते है ताकि आगे आनेवाली पीढ़ी इसका पालन करे । वरवरमुनि स्वामीजी इसका पालन करते हुये दिन के पाँच भागों को जैसे उपादानम, अभिगमनम, याग, स्वाध्याय, योग को भगवत कैंकर्य मानकर करते है । शिष्य को आचार्य निष्ठा दृढ़ करने के लिये आचार्य के दैनिक अनुष्ठानों का पालन करना शास्त्र में बताया गया है । इन बातों को ध्यान में रखते हुये देवराजमुनि ने वरवरमुनि स्वामीजी की दिनचर्या का निवेदन किया । पहले जैसे वरवरमुनि स्वामीजी को पंक्तिपावन कर्ता बताया गया है, उसके अनुसार स्वामीजी के इस स्तोत्र के पठन से तदियाराधन के समय श्रीवैष्णव और श्रीवैष्णवों की गोष्ठी को पवित्र कर देता है ।
अगले श्लोक में रहस्यानुसन्धान का वर्णन किया गया है, उसके एक भाग याने गुरुपरम्परानुसन्धान का वर्णन यहाँ पर किया गया है । गुरूपरम्परा अनुसन्धान के बिना रहस्यानुसन्धान नहीं करना चाहीये । आचार्यों की परम्परा को गुरुपरम्परा कहते है, गुरुपरम्परा के द्वारा मोक्ष पाने के लिये भगवान को उपाय के रूप में स्वीकार करने के लिये और भगवत कैंकर्य करते हुये अनुभव करने का उल्लेख किया जाता है ।
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