श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम:
उपक्षेप
अब तक मणवाळ मामुनिगळ श्री रामानुज से कई विषयों की प्रार्थना किये। श्री रामानुज की सौलभ्यता ऐसा हैं कि वे इन सारे प्रार्थनाओँ को सच्चा बनाएं। इस पासुरम में मामुनि श्री रामानुज के सौंदर्य रूप की गुण गाते हैं। इससे बढ़कर श्री रामानुज से सम्बंधित सारे जनों के भी गुण गाते हैं।
पासुरम १३
एतिरासन वाळि एतिरासन वाळि
एतिरासन वाळि एन्रेन्रेत्ति चदिराग
वाळ्वार्गळ ताळिणैकीळ वाळ्वार्गळ पेट्रिडुवर
आळवारगळ तनगळ अरुळ
शब्दार्थ
वाळवारगळ – जो वास करते हैं
ताळिनैकीळ – के चरण कमलों में
वाळवारगळ – जो वास करते हैं
चदिराग – बुद्धिमान प्रकार में
एत्तिच – श्रेय की गुणगान कर
एतिरासन वाळी – एतिरासन की जय
एतिरासन वाळी – एतिरासन की जय
एतिरासन वाळी – एतिरासन की जय
एन्रेन्रु – लंबे समय केलिए
पेट्रिडुवर – पाएँगे
अरुळ – के आशीर्वाद
आळ्वार्गळ तनगळ – सारे आळ्वारों
सरल अनुवाद
इस पासुरम में मामुनि वर्णन करते हैं कि कुछ जनों को सारे आळ्वारों के आशीर्वाद प्राप्त होगी। लंबे समय से, “ जय हो रामानुज की , जय हो रामानुज की, जय हो रामानुज की” के घोष से श्री रामानुज के श्रेय गाने वालों के चरण कमलों में गिरने वाले ही यहाँ पर दृष्टान्त किये जाने वाले आशीर्वादित जन हैं।
स्पष्टीकरण
तिरुप्पल्लाण्डु से पेरियाळ्वार श्रीमन नारायण के अनेकों प्रकार से मंगलं गायें। इसी प्रकार मामुनि भागवतो के मंगलं गाते हैं। मणवाळ मामुनि को यह अहसास है कि ,कण्णिनुन चिरुत्ताम्बु ५ के “अडियेन सदिर्तेन इन्रे” के अनुसार, कुछ जन “चरम पर्व निषटै” में हैं। “चरम पर्व निषटै” ऐसा स्थिति है जिसमें लोग अपने आचार्य को अपना सर्वत्र मानते हैं। इस स्थिति में उपस्थित श्री रामानुज के भक्त सदा “ जय हो एतिरासा, जय हो एतिरासा, जय हो एतिरासा” , की भजन करतें हैं। अब, हमारे समझ केलिए, इनको गण १ मानते हैं। माता के छाये में सुरक्षित शिशु के जैसे , “जय हो एतिरासा, जय हो एतिरासा, जय हो एतिरासा” भजन करने वालों के चरण कमलों में गण २ रहते हैं। तिरुवाय्मोळि ३.२. ४, “निन तालिणै कीळ वाळछी” की अर्थ समझ कर गण २ के लोग गण १ के लोगों के चरण कमलों के छाया में रहते हैं। पासुरम के पूर्व भाग में, गण २ पर बरसायें जानें वाले आशीर्वाद पर विचार किया गया है। मदुरकवि आळ्वार और आण्डाळ के गिनती नम्माळ्वार और पेरियाळ्वार के संग की जाती हैं , इससे आळ्वार दस हैं। तिरुवाय्मोळि १. १. १ से ये “मयर्वर मदिनलम अरुळ” पेट्र जाने जाते हैं। ये श्रीमन नारायण के अत्यंत कृपा के पात्र हैं जिससे इनकी अज्ञान हटी और श्रीमन नारायण के प्रति भक्ति बढ़ी। “एल्लयिल अडिमै तिरत्तिनिल एन्रुमेवुमनत्तनराइ (पेरुमाळ तिरुमोळि २.१० ) से यह पता चलता हैं कि इनकी भक्ति श्रीमन नारायण के संग उनके भक्तों के प्रति भी है। गण २ में उपस्थित लोगों को इन दस आळ्वारों की अनेक आशीर्वाद है। इसी आशीर्वाद के कारण गण २ के लोगों को चरम पर्व निष्ठा में विशवास बनी रहती है। यहाँ यह ध्यान रखना है कि, पहले पासुरम में मणवाळ मामुनि इन जनों की विवरण करते समय प्रकट किये कि ये नित्यसुरियों (तिरुवाय्मोळि १.१.१ अयर्वरुम अमरर्गळ ) को पूजनीय हैं। इस पासुरम में मणवाळ मामुनि प्रकट करते हैं कि ऐसे गण २ के जन,आळ्वारों ,जो “मयर्वर मदिनलम”(तिरुवाय्मोळि १. १. १ ) से आशीर्वादित हैं, को पूजनीय हैं।
अडियेन प्रीती रामानुज दासी
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