आर्ति प्रबंधं – १२

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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emperumAnAr-thiruvAimozhippiLLai-mAmunigaLएम्पेरुमानार – तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै – मणवाळमामुनिगळ

उपक्षेप

पिछले पासुरम में, मणवाळ मामुनि, श्री रामानुज से वडुग नम्बि के स्थिति अनुग्रह करने की प्रार्थना करते हैं।  श्री रामानुज उनसे प्रश्न किये कि, “हे ! मणवाळ मामुनि ! आप  वडुग नम्बि के स्थिति अनुदान करने की प्रार्थना करते हैं, पर आपके और हमारे बीच संबंध क्या हैं ?” इस काल्पनिक प्रश्न का उत्तर देते हुए मणवाळ मामुनि कहते हैं ,”हे ! एम्पेरुमानारे! हाँ! अडियेन के आचार्य तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै के द्वारा स्थापित संबंध हैं।”

पासुरम १२

तेसं तिगळुम तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै
मासिल तिरुमलैयाळ्वार एन्नै
नेसत्ताल एप्पडिए एण्णि निन्बाल सेर्त्तार
एतिरासा अप्पडिए नी सेय्दरुळ

शब्दार्थ 

तेसं – सारे अंड
तिगळुम – श्रेय से प्रकाशमय
तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै – तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै, जिनका तिरुनामम से ही प्रकट होता है कि तिरुवाय्मोळि उनकी अस्तित्व है
मासिल – खुद को आचार्य समझने से आने वाले दोषों से विमुक्त – श्रीशैलनात नामक
एन्नै – अडियेन , जो उनके अत्यंत कृपा के पात्र हूँ
नेसत्ताल – उन्के कृपा से
एप्पडिए एण्णि – वे विचार किए , अडियेन के मोक्ष पर
निन्बाल – आपके दिव्य चरण कमल जो सर्वत्र के एकमात्र आश्रय हैं
सेर्त्तार – कैसे आपके चरण कमलों तक पहुँचाए
एतिरासा – एम्पेरुमानारे
अप्पडिए सेय्दरुळ – आप भी अडियेन को अनुग्रह कर मोक्ष दिलाइये

सरल अनुवाद

इस पासुरम में, मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से प्रार्थना करते हैं कि, वे अपने आशीर्वाद से मामुनि को मुक्ति दिलायें। मामुनि एक काल्पनिक प्रश्न प्रस्तूत करते हैं जिसमें ,श्री रामानुज आशीर्वाद करने लायक, उन दोनों के मध्य उपस्थित  संबंध पर विचार करते हैं। इसके उत्तर देते हुए मामुनि अपने आचार्य तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै के कृपा से स्थापित किये गये संबंध बताते हैं। वे मोक्ष के एकमात्र उपाय के रूप में श्री रामानुज के चरण कमलों को दिखाए और मामुनि से उन्हीं चरण कमलों को एकमात्र आश्रय मानने को बतायें।

स्पष्टीकरण

इस पासुरम के पहले दो वाक्यों से मामुनि अपने प्रिय आचार्य तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै के श्रेयस की विवरण करते हैं।  वे एम्पेरुमानार से कहते हैं , “हे एम्पेरुमानार ! अडियेन के आचार्य तिरुवाइमोळ्प्पिळ्ळै नम्माळ्वार और आपके के चरण कमलों में शरणागति किये। श्रीवैष्णव पूर्वाचार्यो से अन्य किसी को अपने शेषी या स्वामी न मानें।  वें दैविक विषय में भक्ति तथा साँसारिक सुखों के विरुद्ध, ज्ञान परिपूर्ण  थे। उनके श्रेयस सँसार में प्रसिद्द था।  उन्के तिरुनामम से ही पता चलता है कि तिरुवाइमोळि उनकी सहारा थीं। अगर तिरुवाइमोळि निकाला गया तो वे जी नही पाएँगे।  खुद को आचार्य घोषित करने वाले क्रूर कर्म जैसे कलंक से विमुक्त थे।  शैलनाथ नाम से भी  पहचाने जाने वाले वे, अडियेन के प्रति अत्यंत कृपा प्रकट किये और मोक्ष दिलाने के मार्गों  पर विचार किये।  वें मुक्ति के हेतु ,आपके चरण कमलों के ओर अडियेन के ध्यान बढ़ाये। इस सँसार के बंधन से छूटकर मोक्ष प्राप्त करने केलिए अडियेन पर कृपा करें।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/07/arththi-prabandham-12/

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