आर्ति प्रबंधं – २

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

<< पासुरम १

ramanuja_sriperumbudur

इरामानुसाय नम एन्रु सिंदित्तिरा
मनुसरोडु इरैप्पोळुदु – ईरामारु
सिन्दिप्पार ताळिनैयिल सेर्न्दिरुप्पार ताळिनैयिल
वन्दिप्पार विन्नोरगळ वाळ्वु

शब्दार्थ :

वाळ्वु – (का) नित्य धन
विण्णोर्गळ –  नित्यसूरीयाँ हैं
ताळिनैयै – उनके उभय चरण कमल
वन्दिप्पार – जो दण्डवत प्रणाम करते हैं
सेर्न्दिरुप्पार – वहाँ पर
ताळिनैयिल – चरण कमलों पर
सिन्दिप्पार – जो सोचते हैं
इरैपोळुदु – कुछ समय केलिए भी
इरामारु – संग जीना निर्धारित नहीं हैं
मनुसरोडु – (उन) जनों का संग जो
सिंदित्तिरा – नहीं सोचते हैं
इरामानुसाय नम एन्रु – श्री रामानुज के विषय में जैसे “इरामानुसाय नम” में

सरल अनुवाद :

इस संसार में ऐसे जन (गण १ ) हैं , जो “इरामानुसाय नम” नहीं जानते हैं या नहीं जपते हैं। इस गण (गण १) से कोई किस्म का संबंध न चाहने वाले गण (गण २ ) हैं। तीसरी गण (गण ३) हैं , जो दूसरी गण २ ) के महान्ता को समझ कर , उनके चरण कमलों में दण्डवत प्रणाम करता हैं। नित्यसूरी इस तीसरे गण (गण ३ ) के चरण कमलों को ही अपना नित्य संपत्ति मानते हैं।

प्रस्तावना :

तिरुवाय्मोळि में नम्माळ्वार, पहले पासुरम में “तोळुदु एळु एन मनने” (तिरुवाय्मोळि १.१.१ ) से अपने ह्रदय को श्रीमन नारायण के चरण कमलो में आश्रय लेने कि सलाह देते हैं। तिरुवाय्मोळि के दूसरे दशक में “वण पुगळ नारणन (तिरुवाय्मोळि 1.२. १० )”, से भजने वाले तिरुनाम “नारणन” का प्रस्ताव करते हैं। पहला पासुर हैं “अन्वयं”(निश्चयण) का उदाहरण और दूसरा, “व्यतिरेकं”(प्रतिवाद) का। किसी भी विषय की महत्वपूर्णता स्थापित करने कि अनुभवी तरीखा है। पहले हमारी ध्यान में जो विषय है, उसकी महान्ता कि घोषण करना। यह है “अन्वय।” उसके पश्चात अन्य विषयों की हीनता को प्रकट करना, यह है , “व्यतिरेक” . मणवाळमामुनि पहले पासुर में “एतिरासन” की महानता की प्रस्तावना करते हैं और दूसरे में, “रामानुसाय नम:” को छोड़ अन्य विषयों की हीनता कि। इस प्रकार “अन्वय” और “व्यतिरेक” उपयोग से वे एतिरासन का कीर्तन करते हैं।

स्पष्टीकरण

हमारे ग्रंथो किअध्यादेश हैं , कि “इरामानुसाय नमः” दिव्य मन्त्र का अविरल (अहो रात्र) स्मरण करते रहे। परंतु अत्यधिक जनों को इसका ज्ञान नहीं हैं , और ज्ञान होने पर भी वे यह अभ्यास नहीं करते हैं। ये मोक्ष के पथ में विरोधी हैं, श्री रामानुज के प्रति भजन और स्मरण जैसे जीवनाधार न चाहते हैं , और “प्रतिकूल” कहलाते हैं। जीवनाधार भी न चाहने के कारण ये पशु-पक्षी माने जाते हैं। दूसरे प्रकार के लोग हैं जो इन “प्रतिकूल” के भय में रहते है और एक क्षण भी उनके संग रहना नापसंद करते हैं। यह मोक्ष के पथ में होने वालों को प्रोत्साहित करते हैं और “अनुकूल” कहे जाते हैं। इन “अनुकूलों” के चरण कमलों में आश्रय करने वाले लोग हैं , और (ज्ञान सार ४) के “अरुमपेरू वानत्तवर्क्कु” के अनुसार , इनके चरण कमलों को नित्यसुरियाँ भी पूजनीय समझते हैं।

अड़ियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार : http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/06/arththi-prabandham-2/

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