नाच्चियार् तिरुमोऴि – सरल् व्याख्या पाँचवा तिरुमोऴि – मन्नु पेरुम् पुगऴ्

श्रीः श्रीमतेशठकोपाय नमः श्रीमतेरामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

नाच्चियार् तिरुमोऴि

<<चौथा तिरुमोऴि

आण्डाळ् कूडल् में संलग्न होने के बाद भी एम्पेरुमान् के साथ एकजुट नहीं हो पाई, तो वह उस कोयल पक्षी को देखती है जो पहले उसके साथ थी जब वह एम्पेरुमान् के साथ एकजुट हुई थी। वह कोयल‌ उसकी बातों का उत्तर दे सकता था । यह अनुभूत होकर वह उस कोयल के चरणों में गिर जाती है और उससे प्रार्थना करती है, “मुझे उससे मिला दो”। उसकी बातों का जवाब देने की उसकी क्षमता को ध्यान में रखते हुए वह उससे प्रार्थना करती है। आण्डाळ् सीताप्पिराट्टि के समान है जो स्वयं रावण से कह सकती थी “मुझे पेरुमाळ् के साथ मिलाओ”, वह भला कोयल को कैसे छोड़ेगी! यहाँ, वह कोयल से भगवान के साथ उसे मिलाने के लिए विनती कर रही है।

पहला पाशुरम्। वह कोयल से पूछ रही है कि भगवान जो सभी की उचित रक्षा कर सकता है, वह मेरी रक्षा नहीं करते तो क्या इसे ठीक करना उसका कर्तव्य नहीं है।

मन्नु पेरुम्पुग​ऴ् माधवन् मामणिवण्णन् मणिमुडि मैन्दन्
तन्नै उगन्ददु कारणमाग एन् चङ्गिऴक्कुम् व​ऴक्कुण्डे?
पुन्नै कुरुक्कत्ति ज्ञाऴल् चेरुन्दिप् पोदुम्बिनिल् वाऴुम् कुयिले!
पन्नि एप्पोदुम् इरुन्दु विरैन्दु एन् पवळवायन् वरक् कूवाय्

हे कोयल पक्षी, जो विभिन्न प्रकार के पेड़ों जैसे कि मस्त-लकड़ी, सफेद अंजीर, लोहे की लकड़ी, सेज आदि के साथ एक उपवन में एक बिल के अंदर रहते हो! क्या यह उचित है कि मेरी चूड़ियाँ मेरे हाथों से गिर रही हैं क्योंकि मैं भगवान को चाहती थी जो उपयुक्त असंख्य शुभ गुणों से युक्त हैं, जो श्री महालक्ष्मी के पति हैं, जिनका रंग नीले रत्न जैसे हैं, जो बहुमूल्य रत्नों से जड़ा हुआ मुकुट पहनते हैं और जिनका दिव्य होंठ मूंगे जैसे लाल हैं, आप उन भगवान के दिव्य नामों का उच्च स्वर में उच्चारण करते रहना ताकि वह शीघ्र ही मेरे पास आएँ।

दूसरा पाशुरम्। वह अपनी वर्तमान स्थिति को व्यक्त करती है ताकि कोयल उसे सुनकर इसका उपयुक्त निवारण ढूंढ सके । इसलिए वह अपनी वर्तमान स्थिति की व्याख्या करती है।

वेळ्ळै विळि चङ्गु इडङ्कैयिल् कोण्ड विमलन एनक्कु उरुक्काट्टान्
उळ्ळम् पुगुन्दु एन्नै नैवित्तु
नाळुम् उयिर्प्पेय्दु कूत्ताट्टुक् काणुम्
कळ्ळविऴ् चेण्बगप् पूमलर् कोदिक् कळित्तिसै पाडुम् कुयिले!
मेळ्ळ इरुन्दु मिऴट्रि मिऴट्रादु एन् वेङ्गडवन् वरक्कूवाय्

हे शहद से टपकने वाले चंपक फूल के रस का आनंद लेने वाली और खुशी से गाने वाली कोयल! पुरूषोत्तम परम सर्वोच्च सत्ता जो अपने दिव्य बाएँ हाथ में दिव्य शंख धारण किए हुए है, जो शुद्ध हृदय वाले अनुयायियों को आकर्षित करता है, वह अपना दिव्य रूप मेरे सामने प्रकट नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा, वह मुझे बेहोश करने, और अधिक पीड़ा देने के लिये मेरे हृदय में प्रवेश करते हैं, और दिन प्रतिदिन मेरे प्राण का पोषण करते हैं, और मुझे पीड़ा से बहलाते हैं। इसे वह अपने मनोरंजन के रूप में मानते हैं। मेरे पास बैठकर अपनी अस्पष्ट बातों से मेरे साथ खेलने के बजाय, तुम्हें मेरे लिए तिरुवेङ्गड पर्वत में खड़े भगवान को यहाँ आने के लिए बुलाना चाहिए।

तीसरा पाशुरम्। वह कोयल से कहती है कि आपको श्रीराम को यहाँ आने के लिए बुलाना चाहिए जो हमारे दुश्मनों को हरा सकते हैं और हमें अनुभव दे सकते हैं।

मादलि तेर् मुन्बु कोल् कोळ्ळ मायन् इराणन् मेल् चरमारि
ताय्तलै अट्रटृ वीऴत् तोडुत्त तलैवन् वरवेङ्गुम् काणेन्
पोदलर् काविल् पुदुमणम् नाऱप् पोऱिवण्डिन् कामरम् केट्टु उन्
कादलियोडु उडन् वाऴ् कुयिले! एन् करुमाणिक्कम् वरक् कूवुवाय्

हे कोयल, जो अपनी मादा के साथ रहते हुए, अच्छी सुगंध फैलाने वाले फूलों से भरे बगीचे में, भृंगों की गुंजन सुनते हो! मैंने कहीं भी उस भगवान की उपस्थिति नहीं देखी, जिन्होंने रावण पर ऐसे बाणों की वर्षा की थी जिससे उनका महान सिर बार-बार गिर जाता था, जब मादलि श्रीराम के सारथी के रूप में कार्य कर रहा था जबकि रावण जादुई युद्ध में लगा हुआ था। अत: तुम्हें उस भगवान को, जो नीले रत्न के समान है, यहाँ पर आने के लिए पुकारना चाहिए।

चौथा पाशुरम्। वह कोयल से कहती है कि उसकी आवाज ऐसी होनी चाहिए कि गरुड़ ध्वज वाले सुंदर एम्पेरुमान् यहाँ पर आ जाएँ।

एन्बुरुगि इनवेल् नेडुङ्कण्गळ् इमै पोरुन्दा पल नाळुम्
तुन्बक् कडल् पुक्कु वैकुन्दन् एन्बदोर् तोणि पेऱादु उऴल्गिन्ऱेन्
अन्बुडैयारैप् पिरिवुऱु नोय् अदु नीयुम् अऱिदि कुयिले!
पोन्बुरै मेनिक् करुडक् कोडियुडैप् पुण्णियनै वरक् कूवाय्

हे कोयल! हड्डियाँ पिघल रही हैं और भाले जैसी दो लंबी, चौड़ी आँखें सोने से इनकार कर रही हैं। बहुत लंबे समय से, मैं (भगवान से) वियोग के सागर में डूबी हुई हूँ, और यहाँ व्यथा में हूँ, मुझे विष्णोपद जहाज‌ (नाँव के रूप में श्रीवैकुंठनाथ) नहीं मिल रहा है जो मुझे श्रीवैकुंठ तक ले जाएगा। क्या तुम भी प्रेमियों के वियोग में होने वाली पीड़ा को नहीं जानते? कण्णन् जो स्वयं धर्म का स्वरूप है, स्वर्ण रूपधारी है, जिसके ध्वज में गरुड़ है, उसको यहाँ आने के लिए बुलाओ।

पाँचवा पाशुरम्। वह कोयल से कहती है कि जिस एम्पेरुमान् ने दयापूर्वक संसार को मापा था, क्या वह उसे पुकारेगा ताकि वह यहाँ आए और आणडाळ् उसे देख सके।

मेन्नडै अन्नम् परन्दु विळैयाडुम् विल्लिपुत्तूर् उऱैवान् तन्
पोन्नडि काण्बदोर् आसैयिनाल् एन् पोरुकय​ऱ् कण्णिनै तुञ्जा
इन्नडिसिलोडु पालमुदूट्टि एडुत्त एन् कोलक्किळियै
उन्नोडु तोऴमै कोळ्ळुवन् कुयिले! उलगळ्न्दान् वरक्कूवाय्

श्रीविल्लिपुत्तूर् दिव्य क्षेत्र विस्तृत है, ताकि धीमी -धीमी चलने वाले हंस अच्छी तरह वहाँ खेल सके। मेरी कार्प-मछली जैसी आँखें सोने से इनकार कर रही हैं, वे एक दूसरे से लड़ती हैं क्योंकि वे दयापूर्वक श्रीविल्लिपुत्तूर् में निवास कर रहे भगवान के सुंदर, सोने जैसे दिव्य चरणों को देखने की इच्छा रखती हैं। हे कोयल! इस प्रकार बुलाओ कि जिन भगवान ने दयालुता से संसार को नापा, वे यहाँ आए। यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं अपने तोते का, जिसे मैंने मीठा चावल और दूध चावल से पाला है, तुम्हारे साथ मित्रता कराऊँगी।

छठा पाशुरम्। वह कोयल से कहती है कि “एम्पेरुमान् मेरे जीवन को बनाए रखने का मूल कारण हैं। यदि तुम उसे यहाँ आने के लिए बुलाओगे, तो मैं जब तक जीवित रहूँगी अपना सिर तुम्हारे चरणों पर रखूँगी”।

एत्तिसैयुम् अमरर् पणिन्देत्तुम् इरुडीकेसन् वलि चेय्य​
मुत्तन्न वेण्मुऱुवल् चेय्य वायुम् मुलैयुम् अऴक​ऴिन्देन् नान्
कोत्तलर् काविल् मणित्तडम् कण्पडै कोळ्ळुम् इळ्ङ्गुयिले! एन्
तत्तुवनै वरक् कूगिट्रियागिल् तलै अल्लाल् कैम्माऱिलेने

ओह! छोटे से कोयल! जो फूलों से खिले बगीचे के अंदर एक खूबसूरत जगह पर सो रहा है! हृषीकेसन् (जो अपने अधीनों की इंद्रियों को अपने नियंत्रण में रखता है), जिनकी सभी दिशाओं में देवताओं द्वारा पूजा करने की महिमा प्राप्त है, उन्होंने अपने आप को मेरे सामने प्रकट नहीं किया और मुझे पीड़ा दी, इसलिए मैंने अपने मोती जैसे सफेद दांतों, अपने रंग और अपनी छाती से संबंधित मामलों में अपनी सुंदरता खो दी है। यदि तुम ऐसे भगवान को बुलाओगे, जो मेरे अस्तित्व का मूल कारण है, तो मैं अपना सिर सदैव आपके चरणों पर टिकाए रखने के अलावा और कोई भी प्रति उपकार नहीं जानती।

सातवाँ पाशुरम्। वह कोयल से पूछ रही है कि, क्या वह सुंदर सशस्त्र एम्पेरुमान् को यहाँ आने के लिए बुलाएगा ?

पोङ्गिय पाऱ्कडल् पळ्ळि कोळ्वानैप् पुणर्वदोर् आसैयिनाल् एन्
कोङ्गै किळर्न्दु कुमैत्तुक् कुदूकलित्तु आवियै आकुलम् सेय्युम्
अङ्गुयिले! उनक्केन्न म​ऱैन्दुऱैवु ? आऴियुम् चङ्गुम् ओण्तण्डुम्
तङ्गिय कैयवनै वरक् कूविल् नी चालत्तरुमम् पेऱुदि

हे सुंदर कोयल! एम्पेरुमान् के साथ जुड़ने की इच्छा रखते हुए, मेरे स्तन अत्यधिक उत्तेजना से फूल जाते हैं, जो एम्पेरुमान् उत्तेजित लहरों के साथ तिरुप्पार्कडल् (क्षीर सागर) पर लेटे हुए हैं, उस​ एम्पेरुमान् से जुड़ने की इच्छा से मेरा जीवन पिघल जाता है। यदि तुम छुपे हुए हो तो इससे तुम्हारा क्या प्रयोजन सिद्ध होगा? यदि तुम ऐसे भगवान को बुलाओगे जिनके दिव्य हाथ में दिव्य चक्र, दिव्य शंख और दिव्य गदा हैं, वह स्वामी को यहाँ आने का आह्वान करके आपने बहुत बड़ा नेक काम किया होगा।

आठवाँ पाशुरम्। वह कोयल से कहती है शीघ्र बुलाए ताकि एम्पेरुमान् जो कि तिरुमाल् (श्री महालक्ष्मी के पति) हैं, यहाँ आए।

चार्ङ्गम् वळैय वलिक्कुम् तडक्कैच् चदुरन् पोरुत्तमुडैयन्
नाङ्गळ् एम्मिलिरुन्दु ओट्टियकच्चङ्गम् नानुम् अवनुम् अऱिदुम्
तेङ्गनि माम्पोऴिल् चेन्दळिर् कोदुम् चिऱुकुयिले! तिरुमालै
आङ्गु विरैन्दु ओल्लै कूगिट्रियागिल् अवनै नान् चेय्वन काणे

हे युवा कोयल! जो मीठे फलों से भरे आम के बगीचे में आम के कोमल लाल पत्तों को अपनी चोंच मार रही है! अत्यधिक प्रतिभाशाली एम्पेरुमान् जिनके पास विशाल दिव्य हाथ हैं जिनमें धनुष सारंगम को खींचने की शक्ति है, वे प्रेम के विषय में भी एक महान विशेषज्ञ हैं। हम दोनों उन गुप्त प्रतिज्ञाओं को जानते हैं जो हमने एक साथ ली थी। यदि तुम दूर उस तिरुमला में स्थित उस भगवान को नहीं बुलाओगे तो तुम स्वयं देखोगे कि मैं उसे किस प्रकार प्रताड़ित करती हूँ।

नौवां पाशुरम्। वह कोयल से कहती है कि “तुम या तो एम्पेरुमान् को यहाँ बुलाओ या मेरी सोने की चूड़ियाँ [उनसे] वापस ले आओ”।

पैङ्किळि वण्णन् चिरीदरन् एन्बदोर् पासत्तु अगप्पट्टिरुन्देन्
पोङ्गोळि वण्डिरैक्कुम् पोऴिल् वाऴ् कुयिले! कुऱिक्कोण्डु इदु नी केळ्
चङ्गोडु चक्करत्तान् वरक् कूवुदल् पोन्वळै कोण्डु तरुदल्
इङ्गुळ्ळ काविनिल् वाऴक् करुदिल् इरण्डत्तोन्ऱेल् तिण्णम् वेण्डुम्

हे कोयल! जो उस बगीचे में सुख से रह रही है जहाँ दैदीप्यमान भृंग गुंजन कर रहे हैं! मैं जो कह रही हूँ उसे ध्यान से सुनो। मैं हरे तोते जैसे रंग के तिरुमाल् के अतुलनीय जाल में फँस गयी हूँ। यदि तुम इस उद्यान में रहना चाहते हो तो तुम्हारे पास भगवान को बुलाने, जिनके पास दिव्य चक्र और दिव्य शंख हैं, या मेरी खोई हुई सोने की चूड़ियाँ वापस लाने के ही विकल्प हैं।

दसवाँ पाशुरम्। वह कोयल से कहती है कि “यदि तुमने एम्पेरुमान् को यहाँ आने के लिए नहीं बुलाया तो मैं तुम्हें दंड दूँगी”।

अन्ऱुलगम् अळन्दानै उगन्दु अडिमैक्कण् अवन् वलि चेय्य​
तेन्ऱलुम् तिङ्गळुम् ऊड​ऱुत्तु एन्नै नलियुम् मुऱैमै अऱियेन्
एन्ऱुम् इक्काविल् इरुन्दिरुन्दु एन्नैत् तदैत्तादे नीयुम् कुयिले!
इन्ऱु नारायणनै वरक् कूवायेल् इङ्गुत्तै निन्ऱुम् तुरप्पन्

उस समय जब महाबली बहुत शक्तिशाली था, मैंने एम्पेरुमान् के कैङ्कर्य की कामना की थी। उसने भी मेरे से कैङ्कर्यं नहीं लिया इस कारण से मैं बीमार हो गई। उस समय मैं यह नहीं जानती थी कि हल्की-हल्की हवा और पूर्णिमा का चाँद मेरे भीतर प्रवेश करके मुझे क्यों सता रहा है। हे कोयल! तुम भी सदैव इसी उद्यान में रहो और मुझे कष्ट मत दो। यदि तुमने आज नारायणनन् एम्पेरुमान् को यहाँ आने के लिए नहीं बुलाया, तो मैं तुम्हें इस उद्यान से बाहर निकाल दूँगी।

ग्यारहवाँ पाशुरम्। अंत में, वह कहती है, जो लोग इस दशक को सीखकर गा सकते हैं, उन्हें अपने स्वभाव का पुरुषार्थ (लाभ) मिलेगा।

विण्णुऱ नीण्डु अडि ताविय मैन्दनै वेऱ्कण् मडन्दै विरुम्बि
कण्णुऱ एन् कडल् वण्णनैक् कूवु करुङ्गुयिले! एन्ऱ माट्रम्
पण्णुऱु नान्म​ऱैयोर् पुदुवै मन्नन् बट्टर्पिरान् कोदै चोन्न​
नण्णुऱु वाचक मालै वल्लार् नमो नारायणा एन्बारे

श्रीविल्लिपुत्तूर्, जहाँ वैदिक श्रीवैष्णव लोग जो संगीत के साथ चार वेदों का पाठ करने में सक्षम हैं, वहाँ के मुखिया पेरियाऴ्वार् की पुत्री आण्डाळ् (मैं), जिसकी आँखें भाले जैसी और सौम्य गुणों वाली है, वह एम्पेरुमान् को चाहती थी, वो एम्पेरुमान् जिन्का दिव्य चरण कमल अंतरिक्ष तक फैले हुए थे, जो सभी स्थानों में व्याप्त थे। और आण्डाळ् ने एक कोयल से कहा, “ओह काली कोयल! ऐसे पुकारो कि मैं भगवान को देख सकूँ”। एम्पेरुमान् के माहानता गाने वाले इस दशक को बोलने में जो सक्षम होते हैं वे एम्पेरुमान् के अंतरंग कौशल प्राप्त करेंगे।

अडियेन् वैष्णवी रामानुज दासी

आधार: http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2020/05/nachchiyar-thirumozhi-5-simple/

संगृहीत- http://divyaprabandham.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment