उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् २७ – २८

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुरम् २५ -२६

पासुरम् २७

सत्ताईसवां पासुरम्। अगले तीन पासुरों में मामुनिगळ् एम्पेरुमानार्, जिनकी महानता आऴ्वारों की महानता के समान है और जो आऴ्वारों के सेवक और अन्य सभी के लिए स्वामी हैं, उनके दिव्य नक्षत्र की महिमा का आनंद लेते हैं। इस पासुर में वे संसार के सभी प्राणियों के समक्ष चित्तिरै (चैत्र) मास के तिरुवादिरै (आर्द्रा) नक्षत्र की महानता को प्रकट करते हैं।

इन्ऱुलगीर् चित्तिरैयिल् एय्न्द तिरुवादिरै नाळ्
एन्ऱैयिनुम् इन्ऱु इदनुक्कु एट्रम् एन्दान् – एन्ऱवर्क्कुच्
चाटृगिन्ऱेन् केण्मिन एदिरासर् तम् पिऱप्पाल्
नट्रिसैयुम् कोण्डाडुम् नाळ्

ऐ संसार के लोगों! आज चित्तिरै मास में तिरुवादिरै नक्षत्र का महान दिवस है। जो लोग अन्य दिनों की तुलना में इस दिन की प्रमुखता पर प्रश्न उठाते हैं, मैं उत्तर दूँगा – कृपया ध्यानपूर्वक श्रवण करें। इस दिन की यह महिमा है कि यह चारों दिशाओं में लोगों द्वारा सर्व संन्यासियों के स्वामी, एम्पेरुमानार् के अवतार दिन मनाया जाता है।

मामुनिगळ् अपनी रचना आर्त्ति प्रबंधम् में एम्पेरुमानार् को संबोधित करते हुए कहते हैं, अनैत्तुलगम् वाऴप्पिरन्द एतिरास मामुनिवा – वे महान तपस्वी जो पूरे विश्व के समृद्धि के लिए इस संसार में अवतरित हुए। एम्पेरुमानार् के अवतरण के कारण यह निश्चित हुआ कि सामान्य व्यक्ति भी एम्पेरुमान् को प्राप्त कर उत्थान प्राप्त कर सकते हैं। उनकी इतनी महानता के कारण आज भी उनका अवतार दिवस संसार के समस्त लोगों द्वारा विशिष्ट रूप से मनाया जाता है।

पासुरम् २८

अट्ठाईसवां पासुरम्। सबको यह ज्ञात हो इसलिए मामुनिगळ् कृपापूर्वक कहते हैं कि तिरुवादिरै का यह दिन हमारे लिए उन दिनों से अधिक महत्वपूर्ण है जब आऴ्वार अवतरित हुए थे।

आऴ्वार्गळ् ताङ्गळ् अवदरित्त नाळ्गळिलुम्
वाऴ्वान नाळ् नमक्कु मण्णुलगीर् – एऴ् पारुम्
उय्य एदिरासर् उदित्तु अरुळुम् चित्तिरैयिल्
सेय्य तिरुवादिरै

ऐ संसार के लोगों! चित्तिरै मास के तिरुवादिरै नक्षत्र‌ हमारे लिए आऴ्वारों के अवतरण दिवसों से अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इस दिन रामानुजाचार्य का अवतरण संसार के समस्त लोगों के उद्धार हेतु हुआ।

आऴ्वारों को एम्पेरुमान् ने दोषरहित ज्ञान और भक्ति प्रदान किया था। उन्होंने संसार के लोगों की समृद्धि के लिए दयापूर्वक पासुरों (दिव्य रचनाएँ) की रचना की‌। उनकी रचनाओं के आधार पर एम्पेरुमानार् ने समस्त मानव समाज के हित के लिए सम्प्रदाय (प्रतिष्ठित रीति) का संचालन किया। अमुदनार् (रामानुज के शिष्यों में से एक) ने अपनी दिव्य रचना इरामानुस नूट्रन्तादि में लिखा है स्वामी रामानुज के अवतरण से सभी लोगों को ज्ञान प्राप्त हुआ और वे श्रीमन्नारायण के भक्त बन गए। इसकी व्याख्या लिखते हुए, मामुनिगळ् ने इसी मत का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि, रामानुजाचार्य के अवतरण काल‌ में जो भी लोग उपस्थित थे वे इस महान अस्तित्व जो आदिशेष के पुनरवतार हैं, उनसे उसी समय लाभान्वित हुए,‌ और दयापूर्वक श्रीभाष्यम जैसे ग्रंथों (साहित्यिक रचनाएँ) की रचना कर, रामानुजाचार्य ने लोगों के ज्ञान का पालन पोषण किया और‌ उनका उचित मार्गदर्शन किया।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

आधार: http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2020/06/upadhesa-raththina-malai-27-28-simple/

संगृहीत- http://divyaprabandham.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment