सप्त गाथा (सप्त कादै)

श्री: श्रीमते शठकोप नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवर मुनये नम:

आर् वचनबूडनत्तिन् आऴ् पोरुळ् एल्लाम् अऱिवाऱ्*
आरदु सोल् नेरिल् अनुट्टिप्पार् – ओर् ओरुवर्
उण्डागिल्* अत्तनै काण् उळ्ळमे* एल्लार्क्कुम्
अण्डाददन्ऱो अदु।।

-उपदेश रत्नमाला ५५

जिस प्रकार मणवाळ मामुनिगळ् (श्रीवरवर मुनि स्वामीजी) ने उपदेश रत्नमाला में वर्णन किया है, हमारे श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ पिळ्ळै लोकाचार्य द्वारा रचित श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र को बहुत कम लोग अच्छी तरह से जानते हैं और अभ्यास करते हैं। विळान्जोलैप्पिळ्ळै, जो पिळ्ळै लोकाचार्य के वास्तविक आचार्यर्निष्ठ शिष्य हैं जिनको श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र के सार को पूरी तरह से आत्मसात किया, उनकी विशेष कृपा से, केवल सात पासुरों में इसके अर्थ को सुन्दरता से प्रस्तुत किया जो सरलता से समझने योग्य है।

करुणापूर्ण पिळ्ळै लोकम् जीयर ने इस सप्त गाथा के रुप में एक उत्कृष्ट भाष्य की रचना की। उन्होंने कई प्रमाण (प्रमाणिक सन्दर्भ) सहित अर्थ की व्याख्या की है।

हम इस उत्तम प्रसंग का हिन्दी में अनुवाद कर रहे हैं ताकि लोग सरलता से समझते हुए लाभ प्राप्त कर सकें। हम इस संक्षिप्त पूर्व परिचय को बड़ों/विद्वानों से त्रुटियों को अनदेखा करने और अच्छे भाव को स्वीकार करने की प्रार्थना के साथ विराम देते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुज दासी

आधार: http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2022/12/saptha-kadhai/

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