Daily Archives: March 26, 2016

यतिराज विंशति – तनियन (ध्यान श्लोक)

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श्रीः
श्रीमते शटकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद् वरवरमुनय् नमः

यतिराज विंशति                                                                                         श्लोक १

 yathirajarइस प्रकार श्री देवराज स्वामीजी ने पूर्व दिनचर्या में अपने आचार्य श्री वरवरमुनि स्वामीजी के दिनचर्या में अभिगमनम्, उपादानम्, एज्ज्याई का अनुभव किया।

अब वें श्री वरवरमुनि स्वामीजी की चौथी दिनचर्या स्वाध्याय का अनुभव करते हैं। अनेक स्वाध्यायोंमेसे एक प्रकार है जिसमें पूर्वाचार्योंके ग्रंथोंके आधारपर शिष्योंकों कालक्षेप दिया जाता है। इसका उल्लेख उत्तर दिनचर्या श्लोक क्रमांक १ में किया गया है, “वाक्यालंकृति वाक्यनं व्याक्यादरम्”। परंतु यतिराज विंशति (जो श्री रामानुजाचार्य के प्रति के समर्पण भाव को दर्शाता है) के संबंधमें सोचते हुये श्री देवराज स्वामीजी यह स्तोत्र दोहराते हैं।

श्री शठकोप स्वामीजी “प्रपन्नजनकुटस्थ” कहलाते हैं, जिसका अर्थ है श्री शठकोप स्वामीजी प्रपत्ति के अवलंब में मूल पुरुष हैं, जो यह प्रतिपादन कराते हैं की मोक्ष का भगवान ही एकमात्र उपाय हैं। श्री वरवरमुनी स्वामीजी, जो सबके आराध्य हैं, उन्हे श्री शठकोप स्वामीजीसे प्रारम्भ कर अपने आचार्य श्री शैलेश स्वामीजी तक के गुरूपरंपरा का ज्ञानपूर्वक उपदेश प्राप्त हुवा।

तीन रहस्य जैसे मूलमंत्र, द्वयमंत्र, और चरममंत्र का मूल आशय है की भगवद रामानुज ही उपाय और उपेय हैं। इस प्रकार के अविरत भक्ति से श्री वरवरमुनी स्वामीजी ने लोगोंकों जन्म मरण के चक्र से छुड़ानेकी प्रबल इच्छा से यतिराज विंशति नामक स्तोत्र की रचना की। स्तोत्र लिखते समय कोई रुकावट ना आए इसलिए उन्होने श्री यतिराज के प्रति प्रथम २ श्लोक निवेदन किए।

यह रचना रहस्यत्रय के सार को प्रगट करती है। व्याख्यानकर्ता श्री अन्नाप्पंगार स्वामीजी के अनुसार हम देख सकते हैं की यतिराज विंशति स्तोत्र में २० शब्द हैं – ३ शब्द मूलमंत्र के लिए, ६ शब्द द्वयमंत्र के लिए, और ११ शब्द चरमश्लोक के लिए। विंशति का अर्थ है २०।

तनियन्

य: स्तुतिं यतिपति प्रसादनीं व्याजहार यतिराज विंशतिम्।
तं प्रपन्नजन चातकांबुजं नौमी सौम्य वरयोगी पुंगवम्॥

य:  – जो भी, यतिपति प्रसादनीं  – यतिराज से कृपा की प्रार्थना करता है, यतिराज विंशतिम्  – यतिराज के बारेमें रचित २० श्लोक,  स्तुतिं – स्तुति, व्याजहाररचना की, प्रपन्नजन चातकांबुजं  – चातक के समान प्रपन्न जन, तं वरयोगी पुंगवम्  – वरवरमुनी स्वामीजी, नौमी  – आराधना करते हैं

इस तनियन की रचना श्री देवराज स्वामीजी ने की है। “यतिपति प्रसादनीं” का अर्थ है, जो भी इस स्तोत्र का अनुसंधान करेगा उसे श्री रामानुज स्वामीजी की कृपा प्राप्त होगी। “प्रपन्नजन चातकांबुजं” का अर्थ है श्री रामानुज स्वामीजी उस घन की तरह हैं जो चातक पक्षी के लिए जल वर्षा करते हैं। श्री रामानुज स्वामीजी शरणागतोंकी सहायता करते हैं। “वरयोगी पुंगवम्” श्री वरवरमुनी स्वामीजी को दर्शाता है।

devaraja swami

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यतिराज विंशति

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श्रीमते शठकोपाय नम:
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श्रीमद् वरवरमुनये नम:

ramanujar-alwaiश्री रामानुजाचार्य – भविष्यदाचार्य पवित्र स्थान – आळ्वार् तिरुनगरि

mamunigal-srirangam

श्री वरवरमुनि स्वामिजि – श्री रंगम

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परिचय

मन्नुयिर्गाळिङे मणवाळ मामुनिवन्
पोन्नडियाम् चेण्गमलप् पोदुगलै – उन्नि
चिरत्ताले तीण्डिल् अमानुवनुम् नम्मै
करत्ताले तीण्डल् कडन्.

बहुत् सारे महाचार्यों के अवतार से पवित्र हुए इस् भूमि में पूर्वाचार्यों के नाम से आज तक बुलाये गए धर्मसत्ता, श्री वरवरमुनि स्वामीजी से पूर्ण होता है | उन्के बाद् भी कई महाचार्यों का अवतार् हुआ | लेकिन स्वयं श्री रंगनाथजी एक शिष्य का स्थिति लेकर वरवरमुनि से ईदू का व्याख्यान सुन लिए | इसी  कारण से, महानों मानते हैं  कि  पूर्वाचार्य गुरु परम्परा श्री वरवरमुनि  से  पूर्ण  हो  जाता है |

आलवार तिरुनगरी में तिरु नावीरुडय दासर नामक एक महाचार्या के पुत्र होकर श्री वरवरमुनि अवतार किये | उनका नाम था अलगिय मणवाल पेरुमाळ नायनार |  उनका जनम साधारण वर्ष, आश्वयुज मास, मूल नक्षत्र में हुआ | उनका आचार्य  तिरुवाय्मोऴि पिळ्ळै थे |

एक दिन तिरुवाय्मोऴि पिळ्ळै श्री रामानुजाचार्य के गुणानुभव करते रहे | उन्होंने “मारन (श्री शठगोपजी) के चरण दण्डवत करके सुगति प्राप्त किये रामानुजन” जैसे बहुत सारे श्लोकों ध्यान किये और श्री शठगोपजी से रामानुजाचार्य के अनुराग को अनुभव किये | इससे उत्प्रेरित होकर श्री रामानुजाचार्य को आलवार तिरुनगरी में एक अलग मंदिर बनाने के लिए अपने शिष्योंको नियमित किये |

श्री वरवरमुनि जी भी उस रामानुजाचार्य के चरणों में बहुत सारे सेवा करते रहे | अपने आचार्य के नियमन से उस रामानुजाचार्य के चरणों में यतिराज विंशति नामक स्तोत्र समर्पित किये | कोइल अण्णन् स्वामीजी अपने वरवरमुनि शतकम में इस यतिराज विंशति का माधुर्यम् जैसे बहुत सारे गुणों को प्रकाशित किये |

भूमिका – पेरुमाळ कोइल श्री उभय वेदांत प्र.भ. अण्णण्गराचार्य स्वामी (श्री रामानुज पत्रिका – ३-११-१९७० – http://acharya.org/d.html )

मूल तमिल व्याख्यान: श्री उ. वे. T. A. कृष्णाचार्य स्वामी, तिरुपति

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