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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् २५ -२६

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। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर २३ – २४

पासुरम् २५
पच्चीसवां पासुरम्। मामुनिगळ् मधुरकवि की महिमा को दो पासुरों में प्रकट करते हैं। इस पासुर में वे अपने हृदय से कहते हैं कि, चित्तिरै (चैत्र) महीने के चित्तिरै (चित्रा) नक्षत्र‌के दिन, जब मधुरकवि आऴ्वार् का अवतार दिन है, अन्य आऴ्वारों के अवतार दिनों के ऊपर इसकी महानता का विश्लेषण करे।

एरार् मधुरकवि इव्वुलगिल् वन्दु उदित्त नाळ्
सीरारुम् चित्तिरैयिल् चित्तिरै नाळ् – पार् उलगिल्
मटृळ्ळ आऴ्वार्गळ् वन्दु उदित्त नाळ्गळिलुम्
उट्रादु एमक्कु एन्ऱु नेञ्जे ओर्

हे हृदय! चित्तिरै मास में चित्तिरै नक्षत्र उपयुक्त महानता का दिन है, जब उपयुक्त महानता के मधुरकवि आऴ्वार् ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया था। विश्लेषण करना कि यह दिन अन्य आऴ्वारों के अवतार दिनों की तुलना में हमारे स्वरूप (स्वभाव) के लिए उपयुक्त दिन है।

हमारे पूर्वाचार्यों में से एक, पिळ्ळै लोकाचार्य ने अपने शास्त्र, श्रीवचन भूषणम् में मधुरकवि आऴ्वार् की अनूठी महानता को सुंदरता से समझाया है। अन्य आऴ्वार् जब पीड़ित होते कि कब एम्पेरुमान् से संयुक्त होंगे, उस समय वेदना में पासुरों की रचना करते, और जब मन की क्षमता के माध्यम से एम्पेरुमान् का अनुभव करते, तब उन्होंने प्रसन्नचित्त अवस्था में पासुरों की रचना की‌। हालाँकि, मधुरकवि आऴ्वार् ने अपने आचार्य नम्माऴ्वार् को अपना सर्वस्व मानते थे और उनके कैंङ्कर्य में संलग्न रहते थे। इसलिए, वे इस संसार में सदैव आनंदित अवस्था में रहते थे, उसके बारे में चर्चा करते थे और अन्यों को भी समझाते थे। यह महानता और किसी में नहीं है। सीरारुम् चित्तिरैयिल् चित्तिरै नाळ् वाक्यांश में सीर्मै (उत्कृष्टता या महानता) यह शब्द चित्तिरै मास और चित्तिरै नक्षत्र दोनों के लिए योग्य है। हमारा स्वरूप यह है कि आचार्य की कृपा की आशा में रहना। आऴ्वार् की यह स्थिति इसके अनुरूप है।

पासुरम् २६
छब्बीसवां पासुरम्। मामुनिगळ् एक उदाहरण सहित समझाते हैं कि कैसे आचार्यों ने, जिन्होंने आऴ्वारों के अरुळिच्चेयल् (दिव्य रचना) का अर्थ निर्धारित और प्रकट किया, मधुरकवि आऴ्वार् के प्रबंधम् की महानता का विश्लेषण किया और उसे अरुळिच्चेयल् में संग्रह किया।

वाय्त्त तिरुमंदिरत्तिन् मद्दिममाम् पदम् पोल्
सीर्त्त मधुरकवि सेय्कलैयै – आर्त्त पुगऴ्
आरियर्गळ् ताङ्गळ् अरुळिच्चेयल् नडुवे
सेर्वित्तार् ताऱ्परियम् तेर्न्दु

तिरुमंत्रम् (दिव्य मंत्र) जो आठ अक्षरों से बना है, शब्दों और अर्थों से परिपूर्ण है ऐसे माना जाता है। इसका मध्य पद “नमः” की महानता की समता प्रख्यात मधुरकवि आऴ्वार् द्वारा रचित कण्णिणुन् सिऱुत्ताम्बु की‌ अद्भुत रचना ही कर सकती है। इस प्रबंध के अर्थ का महान मूल्य जानने वाले आचार्यों ने इसे अन्य आऴ्वारों के अरुळिच्चेयल् के साथ समाविष्ट करने और इतर प्रबंधम् के साथ सदैव इसका गायन करने की‌ व्यवस्था की।
“नमः” शब्द भागवत शेषत्व – एम्पेरुमान् के भक्तों का कैंङ्कर्य को इंगित करता है। मधुरकवि आऴ्वार् ने नम्माऴ्वार् को स्वयं भगवान माना जैसे कि उन्होंने कहा देवु मट्रऱियेन् – मैं अन्य भगवान को न जानता, उनके प्रबंध में‌ उनकी गहरी आस्था को प्रकट करता है। यह जानकर, आचार्यों ने इतर अरुळिच्चेयल् के साथ इस प्रबंधम् का समावेश करके इसे सम्मानित किया।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर २३ – २४

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उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर २१ – २२

पासुरम् २३

तेईसवां पासुरम्। वे अपने हृदय को बताते हैं कि तिरुवाडिप्पूरम् (आडि महीने का दिव्य नक्षत्र पूरम्) की क्या महानता है, जो आण्डाळ् के अवतार का दिन है और इसलिए अतुल्य है। 

पेरियाऴ्वार् पेण् पिळ्ळैयाय् आण्डाळ् पिऱन्द
तिरुवाडिप्पूरत्तिन् सीर्मै – ओरु नाळैक्कु
उण्डो मनमे उणर्न्दु पार् आण्डाळुक्कु
उण्डङ्गिल् ओप्पु इदऱ्कुम् उण्डु

ऐ हृदय! विश्लेषण करो और देखो कि ऐसा कोई दिन है जो तिरुवाडि पूरम् से मेल खाता हो, वह दिन जब आण्डाळ् ने पेरियाऴ्वार् की दिव्य पुत्री के रूप में अवतार लिया। इस दिन के लिए प्रतिद्वंद्वी तभी होगा जब आण्डाळ् नाच्चियार् के लिए प्रतिद्वंद्वी हो! 

आण्डाळ् नाच्चियार् भूमि पिराट्टि की अवतार हैं। इस संसार के लोगों पर दया करते हुए उन्होंने एम्पेरुमान् के आनंद को त्यागकर इस संसार में अवतार लिया। दूसरी ओर, अन्य आऴ्वार् इस धरती पर सदैव रहे हैं। एम्पेरुमान् के निर्हेतुक कृपा के कारण, उन्होंने निर्दोष ज्ञान और भक्ति प्राप्त किया, और एम्पेरुमान् का पूरा आनंद लिया। किसी को भी आण्डाळ् का समक्ष स्वीकारा नहीं जा सकता, लोकहित के लिए अपने प्रतिष्ठित पद का त्याग किया। जब अतुल्यनीय आऴ्वार् आण्डाळ् के सादृश्य नहीं हैं, तो और कौन उनकी सादृश्य हो? इसलिए यह कहा जा सकता है कि आडि महीने के पूरम् नक्षत्र का कोई और संयोजन नहीं है। 

पासुरम् २४

चौबीसवां पासुरम्। वे कृपापूर्वक अपने हृदय से आण्डाळ् का उत्सव मनाने के लिए कहते हैं, जो अन्य आऴ्वारों से महान है। 

अञ्जु कुडिक्कोरु संददियाय् आऴ्वार्गळ्
तम् सेयलै विञ्जि निऱ्कुम् तन्मैयळाय् – पिञ्जाय्
पऴुत्ताळै आण्डाळै पत्तियुडन् नाळुम्
वऴुत्ताय् मनमे मगिऴ्न्दु

आऴ्वार् वंश की एकमात्र उत्तराधिकारी के रूप में आण्डाळ् का अवतार हुआ। “अञ्जु” शब्द का अर्थ पाँच अंक और‌ भयभीत होने की अवस्था,‌ दोनों हैं। जिस प्रकार परीक्षित पंच पांडवों (पाँच पांडवों) के एकमात्र उत्तराधिकारी थे, उसी प्रकार आण्डाळ् दस आऴ्वारों के वंश की एकमात्र उत्तराधिकारी है – यह एक अर्थ है। दूसरा अर्थ यह है – जो निरंतर डरते रहते हैं कि एम्पेरुमान् का क्या अहित होगा उन आऴ्वारों की वह एकमात्र उत्तराधिकारी है। पेरियाऴ्वार् ने पूरी तरह मंगळाशासन् (एम्पेरुमान् के हित की कामना) किया। अन्य आऴ्वारों “परम भक्ति अवस्था” ( एम्पेरुमान् के संयुक्त होने पर ही जीवित रहना) में थे। आण्डाळ् ने पेरियाऴ्वार् के जैसे एम्पेरुमान् का मंगळाशासन् भी किया और अन्य आऴ्वारों के जैसे अपनी भक्ति में प्रतिष्ठित रहीं। “पिंञ्जाय् पऴुत्ताळय्” का अर्थ – साधारण रूप में एक पौधे में फूल आता है, उसके बाद कच्चा फल और अंत में पक्का फल। आण्डाळ् तुलसी के पौधे के जैसे थी, जो मिट्टी में उगते ही सुगंध देती है, इस प्रकार वह प्रारंभ में ही पक्का हुआ फल थी। दूसरे शब्दों में, बहुत कम आयु में ही उनको एम्पेरुमान् के प्रति अत्यधिक भक्ति थी। वह पाँच वर्ष की आयु की थी जब उसने “तिरुप्पावै” की रचना की। “नाच्चियार् तिरुमोऴि” की रचना करते हुए  वह एम्पेरुमान् को प्राप्त करने में कुम्हला गई और द्रवित हो उठी। ऐसी आण्डाळ् का सदैव उत्सव मनाओ। 

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर २१ – २२

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उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुरम् १९-२०

पासुरम् २१

इक्कीसवां पासुर। आऴ्वारों की संख्या दस है। इनकी संख्या बारह भी मानी जाती है। यदि कोई उन आऴ्वारों को देखें जो केवल एम्पेरुमान् में संलग्न थे, तो उनकी संख्या दस है। हमने उपयुक्त पासुरों में देखा कि मामुनिगळ् स्वामी जी ने कृपापूर्वक उनके अवतार के नक्षत्र और महीनों को दर्शाया है। आण्डाळ् और मधुरकवि आऴ्वार् उनमें से हैं जो आचार्य के प्रति स्नेह में स्थित थे। आण्डाळ् “विट्टुचित्तर् तङ्गळ् देवर्” के रूप में एम्पेरुमान् का आनंद लेती है, अर्थात वह भगवान जो उसके पिताश्री विष्णुचित्त के स्वामी हैं। मधुरकवि आऴ्वार् ने भी कहा, “देवु मटृ अऱियेन्”, अर्थात, वे नम्माऴ्वार के अलावा अन्य किसी स्वामी को नहीं जानते हैं। अगर इन दोनों को समाविष्ट किया जाए,‌ तो आऴ्वार् की गिनती बारह हो जाती है। इन दोनों के साथ, मामुनिगळ् हमारे गुरुपरंपरै (आचार्यों का पारंपरिक क्रम) के एक सबसे महत्वपूर्ण आचार्य को समाविष्ट करते हैं, यतिराजर्, जिन्हें एम्पेरुमानार् भी कहा जाता है, जिन्हें माऱन् अडि पणिन्दु उय्न्दवन् की उपाधि दी गई है, जिन्होंने नम्माऴ्वार् के दिव्य चरणों को प्राप्त कर उत्थान पा लिया, और मामुनिगळ् उनका भी इस पासुर में आनंद लेते हैं। एम्पेरुमानार् को नम्माऴ्वार् के दिव्य चरण, “श्री रामानुजम्” ऐसे भी मानाया जाता है। इन तीनों (आण्डाळ्, मधुरकवि आऴ्वार् और एम्पेरुमानार्) के बीच एक और संबंध है – आण्डाळ् को श्री भूमिदेवी के अवतार के रूप में मनाया जाता है, मधुरकवि आऴ्वार् को पेरिय तिरुवडि (गरुड़) के अवतार के रूप में मनाया जाता है और एम्पेरुमानार् को आदिशेष के अवतार के रूप में मनाया जाता है। मामुनिगळ् कृपापूर्वक उन दिनों को बताते हैं जब ये तीन अवतरित हुए।

आऴ्वार् तिरुमगळार् आण्डाळ् मधुरकवि
आऴ्वार् एतिरासराम् इवर्गळ् – वाऴ्वाग
वन्दु उदित्त मादङ्गळ् नाळ्गळ् तम्मिन् वासियैयुम्
इन्द उलगोर्क्कु उरैप्पोम् याम्

इस दुनिया में रहने वालों की समृद्धि के लिए अवतरित हुए आण्डाळ् (पेरियाऴ्वार् की पुत्री), मधुरकवि आऴ्वार् और यतियों (संन्यासियों) के स्वामी, श्री रामानुज के अवतरित दिव्य नक्षत्र और महीनों की महानता को हम इस दुनिया में प्रकट करेंगे।

पासुरम् २२

बाईसवां पासुरम्। मामुनिगळ् यह कहते हुए आनंदित होते हैं कि इस संसार में आण्डाळ् का दिव्य अवतार केवल उनके लिए हुआ था और कृपापूर्वक इसका वर्णन करते हैं।

इन्ऱो तिरुवाडिप् पूरम् एमक्काग
अन्ऱो इङ्गु आण्डाळ् अवदरित्ताळ् – कुन्ऱाद
वाऴ्वान वैगुंद वान् बोगम् तन्नै इगऴ्न्दु
आऴ्वार् तिरुमगळार् आय्

क्या आज आडि (आषाढ़) मास का पूरम् (पूर्व फाल्गुन) नक्षत्र है? श्री वैकुंठ के असीमित, आनंदमय भोगों को छोड़कर, उन्होंने मुझे उत्थान करने के लिए, “आण्डाळ् नाच्चियार्”, पेरियाऴ्वार् की दिव्य सुपुत्री के रूप में अवतार लिया। यह उसी प्रकार है जैसे कोई माता कुएँ में गिरी अपनी संतान को बचाने के लिए स्वयं कुएँ में कूद जाती है। श्री वराह पेरुमाळ् के भूमिपिराट्टि से कहे गए शब्द, “सभी जीवात्माएँ (चित्त पदार्थ) मेरी स्तुति गाकर, मेरा स्मरण कर और शुद्ध पुष्पों से मेरी अर्चना कर मुझे आसानी से प्राप्त कर सकते हैं”, इसका पालन करते हुए और इसे दर्शाने हेतु, वह इस धरा पर अवतरित हुई। यह कितना आश्चर्यजनक है! कैसी करुणा है!

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर १९ – २०

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उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर १६ – १८

पासुर १९

उन्नीसवां पासुर। मामुनिगळ् सभी आऴ्वारों के अरुळिच्चेयल् ( सभी दिव्य स्तोत्रों का संग्रह) में से तिरुप्पाल्लाण्डु की महानता को उदाहरण सहित समझाते हैं।

कोदिलवाम् आऴ्वार्गळ् कूऱु कलैक्कल्लाम्
आदि तिरुप्पाल्लाण्डु आनदवुम् – वेदत्तुक्कु
ओम् एन्नुम् अदु पोल् उळ्ळदुक्कु एल्लाम् सुरुक्काय्त्
तान् मंङ्गळम् आदलाल्

एम्पेरुमान् को अन्य मार्गों से प्राप्त करने के लिए प्रयास करने का दोष और साथ ही एम्पेरुमान् को शीघ्रता से प्राप्त करने का पूर्ण आग्रह न करने का दोष, आऴ्वारों में नहीं था। इन आऴ्वारों द्वारा करुणापूर्वक विरचित दिव्यप्रबंधों में एम्पेरुमान् के संबंधित विषयों के अलावा अन्य विषयों के बारे में बोलने का दोष नहीं था। इन दिव्यप्रबंधों में, एम्पेरुमान् के हित में केवल मङ्गलाशासन में ही स्थित होने के कारण, तिरुप्पाल्लाण्डु आऴ्वारों के दिव्यप्रबंधों में प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ, जैसे, प्रणव (ओंकार) वेदों का तत्व है। 

पासुर २० 

बीसवां पासुर। वे आगे पेरियाऴ्वार् और उनके द्वारा विरचित दिव्यप्रबंध, तिरुप्पाल्लाण्डु की अद्वितीयता का वर्णन करते हैं।

उण्डो तिरुप्पाल्लाण्डुक्कु ओप्पदोर् कलैदान्
उण्डो पेरियाऴ्वार्क्कु ओप्पओरउवर् – तण् तमिऴ् नूल्
सेय्द अरुळुम् आऴ्वागऴ् तम्मिल् अवर् सेय् कलैयिल्
पैदल् नेञ्जे नई उणर्न्दु पार्

ऐ बचकाने हृदय! उन आऴ्वारों का अच्छी तरह से विश्लेषण कर, जिन्होंने एम्पेरुमान् की निर्हेतुक कृपा से उनके दिव्यप्रबंधों की रचना की‌। क्या तिरुप्पाल्लाण्डु से मेल खाने वाली कोई दिव्य रचना है? नहीं। तिरुप्पाल्लाण्डु पूरी तरह से एम्पेरुमान् की दीर्घायु होने की कामना पर केंद्रित है। अन्य आऴ्वारों के दिव्यप्रबंध एम्पेरुमान् की दिव्यता का अनुभव करने में केंद्रित हैं। क्या कोई आऴ्वार् हैं जो पेरियाऴ्वार् से मेल खाते हैं? नहीं। पेरियाऴ्वार अपने आप को एम्पेरुमान् की सुंदरता आदि की प्रशंसा के गुणगान गाकर बनाए रखते हैं जबकि अन्य आऴ्वार् पूरी तरह से एम्पेरुमान् के दिव्य गुणों में संलग्न हैं।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर १६ – १८

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उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर १४ और १५

पासुर १६

सोलहवां पासुर। इस पासुर के साथ शुरू करते हुए अगले पाँच पासुरों में मामुणिगळ्, पेरियाऴ्वार् की श्रेष्ठता का वर्णन करते हैं जो अन्य आऴ्वारों से अधिक महान हैं। 

इन्ऱैप् पेरुमै अऱिन्दिलैयो एऴै नेञ्जे
इन्ऱैक्कु एन् एट्रम् एनिल् उरैक्केन् – नन्ऱि पुनै
पल्लाण्डु पाडिय नम् भट्टर्पिरान्
वन्दु उदित्त नल् आनियिल् सोदि नाळ्

ऐ मेरे हृदय, जो अन्य आऴ्वारों के दिव्य नक्षत्र में भोगलिप्सा है! क्या तुम जानते हो आनि (ज्येष्ठ) महीने के स्वाति नक्षत्र की क्या महानता है? मेरी बात सुनो। यह वह दिन है जब विख्यात मङ्गलाशासन के अंतर्निहित अर्थ वाला तिरुप्पाल्लाण्डु के रचनाकार भट्टर् पिरान् (पेरियाऴ्वार/विष्णुचित्त जी) का अवतार हुआ। इसलिए यह दिन महान है। 

पासुर १७

सत्रहवां पासुर। मामुणिगळ् अपने हृदय से कहते हैं कि इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जो, ‘आनि स्वाति’ (वह दिन जब पेरियाऴ्वार् का अवतार हुआ) सुनते ही पिघल जाने वाले उन बुद्धिमान लोगों से मेल खा सके।

मानिलत्तिल् मुन् नम् पेरियाऴ्वार् वन्दु उदित्त
आनि तन्निल् सोदि एन्ऱाल् आदरिक्कुम् – ज्ञानियर्क्कु
ओप्पार् इल्लै इव्वुलगु तन्निल् एन्ऱु नेञ्जे
एप्पोदुम् सिन्दित्तिरु

ऐ मेरे हृदय! सदैव यह सोचते रहना कि इस दुनिया में ऐसे कोई महान जीव नहीं है जो आनि महीने में स्वाति नक्षत्र सुनकर ही पिघलने वाले ह्रदय के समान हों। यह वह दिन है जब पेरियाऴ्वार् ने इस विशाल जगत में अवतार लिया। 

पासुर १८ 

अठारहवां पासुर। मामुनिगळ् दयालु रूप से कहते हैं कि एम्पेरुमान् का मङ्गलाशासन करने की पद्धति में इस आऴ्वार् और अन्य आऴ्वारों में भेद होने के कारण ये आऴ्वार्, पेरियाऴ्वार् (महान आऴ्वार्) के दिव्य नाम से जाने जाते हैं।

मंङ्गळासासनत्तिल् मटृळ्ळ आऴ्वार्गळ्
तंङ्गळ् आर्वत्तु अळवु तान् अन्ऱि- पोंङ्गुम्
परिवाले विल्लिपुत्तूर् भट्टर्पिरान् पेट्रान्
पेरियाऴ्वार् एन्नुम् पेयर्

क्योंकि एम्पेरुमान् का मङ्गलाशासन करने में इन्हें इतर आऴ्वारों से ज्यादा उत्सुकता थी, और इन्हें एम्पेरुमान् के प्रति अत्यधिक ममता थी, इसलिए श्रीविल्लिपुत्तूर् (श्रीधन्विनव्यपूर) में अवतरित, श्रीविष्णुचित्त जी को ‘पेरियाऴ्वार्’ की उपाधि प्राप्त हुआ और वे इसी नाम से बुलाए गए। मङ्गलाशासन किसी को शुभकामना देने की कृति को कहते हैं। बड़े छोटों के लिए मङ्गलाशासन करना स्वाभाविक है। यहाँ यह प्रश्न उठता है: क्या छोटे बड़ों का मङ्गलाशासन कर सकते हैं? हमारे पूर्वाचार्यों में से एक, पिळ्ळै लोकाचार्यर् ( लोकाचार्य जी) ने अपने ग्रंथ श्रीवचनभूषणम् में इस विषय पर स्पष्टता से समझाया है। एम्पेरुमान् बाकी सभी से बड़े हैं। आत्मा एक सूक्ष्म सत्व है। तो वे एक प्रश्न उपस्थित करते हैं कि क्या आत्माएँ एम्पेरुमान् का मङ्गलाशासन कर सकते हैं, और उसका उत्तर देते हुए कहते हैं, “एम्पेरुमान् का मङ्गलाशासन करना हमारा मूलतः स्वभाव है।” परंतु, ममता की दृष्टिकोण से, सदा एम्पेरुमान् पर कोई कठिनाई आने की चिंता में पड़े रहना, एक ऐसे भक्त का प्रतिबिंब है जिसमें एम्पेरुमान् के प्रति सच्चा प्रेम है। पेरियाऴ्वार् ने हमें इस तात्पर्य को अच्छे रूप से समझाया है।  इस एकमेव कारण से वे आऴ्वारों में अद्वितीय थे और उन्होंने पेरियाऴ्वार् का दिव्य नाम धारण किया।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर १४ और १५

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उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर १२ और १३

पासुर १४ 

चौदहवां पासुर। मामुनिगळ् वैकासी (वैशाख) मास के विसागम् (विशाखा) नक्षत्र के महान दिन का जश्न मनाते हैं, जिस दिन नम्माऴ्वार्, जिन्होंने सरल तमिऴ् में वेद के अर्थों का वर्णन किया और जिनके पास अन्य आऴ्वार् उनके अंग स्वरूप हैं, अवतरित हुए।

एरार् वैगासि विसागत्तिन् एट्रत्तैप्
पारोर् अऱियप् पगर्गिन्ऱेन् – सीरारुम्
वेदम् तमिऴ् सेय्द मेय्यन् एऴिल् कुरुगै
नादन् अवदरित्त नाळ्‌

विश्व के लोगों के लिए प्रसिद्ध वैगासी विसागम् की महानता का वर्णन करेंगे। यह वह दिन है जब एक सत्यवादी और सुंदर तमिऴ् में वेद के उपयुक्त अर्थों की रचना करनेवाले नम्माऴ्वार् अवतरित हुए। सत्यवादी होने का अर्थ है कि किसी इकाई के बारे में वह जैसा है वैसा ही सत्य और‌ ईमानदारी से कहना। वेद इस बात के लिए प्रसिद्ध है कि उसके पास अपौरुषेयम् (किसी व्यक्ति के द्वारा न लिखा गया) है, स्वयं प्रमाणत्वम् ( किसी के द्वारा प्रमाणित होने पर निर्भर न होकर, अपने आप को कायम बनाए रख सकना) है। वेदों के लिए एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि वह केवल श्रीमन्नारायण के स्वरूपम् (मूल प्रकृति), रूपम् (दिव्य रूप) और गुण (संदिग्ध गुण) के बारे में बोलते हैं। उनके द्वारा तमिऴ् में अर्थ का संकलन करना इस बात को संदर्भ करता है कि उन्होंने वेदों और वेदान्तों (उपनिषद) के आंतरिक अर्थों को दयापूर्वक अपने चार रचनाएँ तिरुविरुत्तम् (ऋग्वेद), तिरुवासिरियम् (यजुर्वेद), पेरिय तिरुवन्दादि (अथर्ववेद) और तिरुवाय्मोऴि (सामवेद) में स्पष्ट किया ताकि हम सभी अच्छी तरह से समझ सकें।

पासुर १५

पंद्रहवां पासुर। मामुनिगळ् आऴ्वार् (नम्माऴ्वार्) की महानता का आनंद लेते हैं, जिस दिन वे अवतरित हुए, उनके जन्मस्थान, उनका कार्य, तिरुवाय्मोऴि की व्याख्या करते हैं।

उण्डो वैगासि विसागत्तुक्कु ओप्पु ओरु नाळ्
उण्डो सडगोपर्क्कु ओप्पु ओरुवर् – उण्डो
तिरुवाय्मोऴिक्कु ओप्पु तेन् कुरुगैक्कु उण्डो
ओरु पार् तनिल् ओक्कुम् ऊर्

क्या कोई और दिन इस दिव्य वैगासि विसागम् दिवस की महानता में बराबर हो सकता है, जब नम्माऴ्वार् ने अवतार लिया, जिन्होंने सर्वेश्वर (सभी के स्वामी) श्रीमन्नारायण की और उनकी ऐश्वर्य की ऐसी प्रशंसा की कि वे प्रतिष्ठा प्राप्त किए? [नहीं]। क्या ऐसा कोई है जो शठकोपर् की- जिन्हें नम्माऴ्वार् भी कहा जाता है- महानता से मेल खाता हो? [सर्वेश्वर‌ से लेकर‌ नित्यसूरियाँ, मुक्तात्माएँ और दुनिया के सभी लोग कोई भी नम्माऴ्वार के बराबर नहीं कर सकते]। क्या ऐसा एक भी प्रबंध है जो वेद के साथ का विस्तार से वर्णन करता है? [नहीं]। क्या ऐसा कोई स्थान है तिरुक्कुरुगूर् (कुरुकापुरि) जैसे, जिसने हमें दयापूर्वक नम्माऴ्वार् को प्रदान किया? [यह वह स्थान है जो आदिनाथ पेरुमाळ् और नम्माऴ्वार् दोनों को समान प्रसिद्धि प्रदान करता है। यह वह दिव्य निवास है जहाँ एम्पेरुमान् की सर्वोच्चता, अर्चावतारम् (अर्चारूप) में उत्पन्न हुआ है। यह वह स्थान है‌ जहाँ अपने अवतार से चार हजार साल पहले, एम्पेरुमानार् (स्वामी रामानुज) का दिव्य विग्रह (अर्चा), नम्माऴ्वार् की दया के कारण, प्रकट हुआ। यह एक दिव्य निवास है जहाँ एम्पेरुमानार् का पुनरावतार, स्वामी मणवाळ मामुनिगऴ् का अवतार हुआ।] क्योंकि यह स्थल एम्पेरुमान्, आऴ्वार् और आचार्यों की महानता में वृद्धि करता है, यह तीन गुना उत्साह के साथ मनाया जाता है।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर १२ और १३

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। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर १० और ११

पासुर १२

बारहवा पासुर। इसके बाद वे दयालु रूप से समझाते हैं ताकि दुनिया के सभी लोग उन तिरुमऴिसै आळ्वार् की महानता के बारे में जान जाएँ, जिन्होंने तै (पौष) के महीने में मघम् (मघा) नक्षत्र में जन्म लिया।

तैयिल् मघम् इन्ऱु तारणियीर् एट्रम् इंदत्
तैयिल् मघत्तुक्कुच् चाटृगिन्ऱेन् – तुय्य यदि
पेट्र मऴिसैप्पिरान् पिऱन्द नाळ् एन्ऱु
नट्रवर्गळ् कोण्डाडुम् नाळ्

ऐ दुनिया के लोग! तै महीने के मघम् नक्षत्र बहुत सम्मानित है। मेरी बात सुनो, अब मैं समझाता हूँ कि इसकी महानता क्या है। क्योंकि यह वह दिन था, जिस दिन पवित्र ज्ञान प्राप्त तिरुमऴिसै पिरान् अवतरित हुए। यह उन‌ लोगों द्वारा मनाया जाता है जो महान तपस्या करते हैं। 

ज्ञान की शुद्धता यह है कि, इन आऴ्वारों को दयापूर्वक दोषरहित ज्ञान और भक्ति (समर्पण) प्राप्त हुए हैं, और वे अन्य देवताओं के संलग्न नहीं हैं। इस आऴ्वार् का तिरुकुडंदै आरावमुदन् एम्पेरुमान् के साथ अंतर्मुखी संबंध बनाने के कारण, इन्हें तिरुमऴिसै पिरान् (पिरान् शब्द आम तौर पर एम्पेरुमान् को संदर्भित करता है) कहा जाता है‌ और आरावमुदन् को आरावमुद आऴ्वार। ‘महान तपस्या के लोग’ उन्हें संदर्भित करता है जिनके पास आत्मसमर्पण की तपस्या और आचार्य की ओर दृढ़ निष्ठा की तपस्या होती है, जैसे कणिकण्णन्, पेरुंबुलियूर् अडिगळ्, ऐम्पेरुमानार् आदि।

पासुर १३

तेरहवां पासुर। अब वे दुनिया के लोगों को कुलशेखर आऴ्वार् के बारे में बताते हैं, जिन्होंने माघ महीने में पुनर्वसु नक्षत्र में अवतार लिया।

मासिप्पुनर्पूसम् काण्मिन् इन्ऱु मण्णुलगीर्
तेसु इत्तिवसत्तुक्कु एदेन्निल् – पेसुगिन्ऱेन्
कोल्लि नगर्क्कोन् कुलसेकरन् पिऱप्पाल्
नल्लवर्गळ् कोण्डाडुम् नाळ्

ऐ दुनिया के लोगों! माघ (मासि) महीने के पुनर्वसु (पुनर्पूसम्) नक्षत्र की महीमा बताता हूँ, सुनो। क्योंकि इस दिन चेर देश के कोल्लि नगर के नेता, कुलशेखर पेरुमाळ् का अवतार हुआ, यह दिन अच्छे लोगों द्वारा मनाया जाता है। क्योंकि उन्हें पेरुमाळ् (भगवान) श्रीराम के प्रति गहरी भक्ति थी, उन्हें कुलशेखर पेरुमाळ् कहा जाता है। अच्छे लोग वे हैं जो वैष्णव मार्ग पर चलते हैं, जो परम रूप से अच्छे हैं, जिनके पास भरपूर ज्ञान और भक्ति है, सांसारिक कार्यों के प्रति अ है, और जिनके पास हमारे आचार्यों के जैसे परिपूर्ण कल्याण गुण हैं।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर १० और ११

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उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर ७ – ९

पासुर १० 

क्योंकि रोहिणी नक्षत्र कार्तिक नक्षत्र के बाद आता है, इसलिए मामुनिगळ् संसार के लोगों को तिरुपाण् आऴ्वार् की महानता का निर्देश देते हैं, जो कार्तिक महीने के रोहिणी नक्षत्र में अवतीर्ण हुए। रोहिणी एक नक्षत्र है जिसमें एम्पेरुमान् कान्हा के रूप में अवतरित हुए। यह वह नक्षत्र है जिसमें आऴ्वारों के बीच तिरुपाण् आऴ्वार् का अवतरण हुआ, और आचार्यों के मध्य तिरुक्कोष्टियूर् नम्बि का अवतरण हुआ। इसलिए इस नक्षत्र को तीन महानताओं के रूप में मनाया जाता है। 

कार्तिगैयिल् रोगिणिनाळ् काण्मिन् इन्ऱु कासिनियीर्
वाय्त्त पुगऴ् पाणर् वन्दुदिप्पाल् – आत्तियर्गळ्
अन्बुडने तान् अमलनादिपिरान् कट्रदऱ्पिन्
नङ्गुडने कोण्डाडुम् नाळ् ॥ १०॥

ऐ संसार के लोग! देखिए, आज कार्तिक महीने में रोहिणी का शुभदिन है। यह वह दिन है जब तिरुपाण् आऴ्वार् ने अपनी महानता प्रकट की थी, अतः जो लोग वेदों का सम्मान करते हैं, उन्होंने तिरुपाण् आऴ्वार् द्वारा रचित प्रबंध अमलनादिपिरान् को सीखने के बाद यह महसूस किया कि वेद का सार सदा पश्यन्ती (अर्थात भगवान श्रीमन्नारायण को ही सदैव देखते रहना) इस बात को बहुत ही सुंदर ढंग से ये दस पासुर समझाते हैं। ऐसे लोग इस दिन को बहुत मनाते हैं। 

पासुर ११

ग्यारहवां पासुर। तमिऴ् के मार्गऴि (मार्गशीर्ष) महीने में केट्टै (ज्येष्ठ) नक्षत्र में तोण्डरडिप्पोडि आऴ्वार् ने अवतार लिया। वेदों के तात्पर्यों को जानने वाले तोण्डरडिपोडियाऴ्वार् की महानता को वेद के अर्थों में निपुण लोग जश्न से मनाने की बात, जग के लोगों को मामुणिगळ् बता रहे हैं। इस महीने की विशेषता यह है कि एम्पेरुमान् ने श्री गीता में कहा है कि वे बारह महीनों में मार्गऴि का महीना हैं। इसी महीने में आँडाळ् ने तिरुप्पावई को दयापूर्वक गाया था। मार्गऴि में केट्टै नक्षत्र की एक और प्रर्तिष्ठा है। यह वह नक्षत्र है जिसके तहत जगद्गुरु (पूरी दुनिया के शिक्षक) ऐम्पेरुमानार् के आचार्य पेरिय नम्बि का अवतार हुआ।

मन्निय सीर् मार्गऴियिल् केट्टै इन्ऱु मानिलत्तीर्
एन्निदन्नुक्कु एट्रम् एनिल् उरैक्केन् – तुन्नु पुगळ्
मामऱैयोन् तोण्डरडिप्पोडि आऴ्वार् पिऱप्पाल्
नान्मऱैयोर् कोण्डाडुम् नाळ्॥ ११॥

ऐ दुनिया के लोगों! वैष्णव महीना माने जाने वाले मार्गऴि महीने में केट्टै नक्षत्र की महानता आपको बताता हूँ। तोण्डरडिप्पोडि आऴ्वार्, जो जानते थे कि वेद का मूल अर्थ कैंङ्कर्यम् (सेवा) है और उस कैंङ्कर्य में स्वयं को संलग्न कर‌के स्वयं को एम्पेरुमान् के अनुयायियों की सेवा में भी लगाया, उनके जन्म एम्पेरुमानार जैसे वेदों के विशेषज्ञों द्वारा आज का दिन मनाया जाता है।

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर ७ – ९

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उपदेश रत्तिनमालै

<<पासुर ४ – ६

पासुर ७

सातवाँ पासुर समझाता है कि कैसे उनके ईश्वरीय नाम दुनिया में दृढ़ता से स्थापित किये गए, क्योंकि उन्होंने दुनिया को महानतम लाभ प्रदान किया। 

मटृळ्ळ आऴ्वार्गळुक्कु मुन्ने वन्दुदित्तु 
नट्रमिऴाल् नूल् सेय्दु नाट्टै उय्त्त – पेट्रिमैयोर्
एन्ऱु मुदलाऴ्वार्गळ् एन्नुम् पेयर् इवर्क्कु 
निन्ऱदुलगत्ते निगऴ्न्दु॥ ७॥ 

क्योंकि इन तीन आऴ्वारों ने अन्य आऴ्वारों के आगे अवतार लिया, और तमिऴ् में प्रबंध की रचना करके दुनिया का उचित मार्गदर्शन किया, इसलिए मुदल् आऴ्वार् शब्द उनके लिए दृढ़ता से स्थापित हो गया। 

पासुर ८

क्योंकि उन्होंने कहा था कि अवतार क्रम का पालन करेंगे, उन्होंने ऐप्पसी महीने के बाद आनेवाले कार्तिगै महीने में दयापूर्वक तिरुमङ्गै आऴ्वार् के अवतार की चर्चा कर रहे हैं। दो पासुरों में तिरुमङ्गै आऴ्वार् की महानता की व्याख्या करते हैं। 

सबसे पहले उन्होंने अपने हृदय को उस दिन की महानता के बारे में बताया जिस दिन तिरुमङ्गै आऴ्वार् का अवतार हुआ था। 

पेदै नेञ्जे इन्ऱै पेरुमैयरिन्दिलैयो 
एदु पेरुमै न्ऱैक्कु एन्नेन्निल् – ओदुगिन्ऱेन्
वाय्त्त पुगऴ् मंङ्गैयर्कोन् मानिलत्तिल् वन्दुदित्त
कार्तिगैयिल् कार्तिगै नाळ् काण्॥ ८॥ 

ऐ अल्पमति हृदय! क्या तुम उस दिन की महानता जानते हो? मैं तुम्हे बताऊँगा, मेरी बात सुनो। आज कार्तिगै (कार्तिक) के महीने में कृत्तिका का दिन है। इसी दिन तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने इस विशाल विश्व में अवतार लिया। 

पासुर ९

उन्होंने नम्माऴ्वार् और तिरुमङ्गै आऴ्वार् के मध्य अद्भुत संबंध की व्याख्या की। वह अपने हृदय को उन लोगों के दैवीय् चरणों की प्रशंसा करने का निर्देश देते हैं जो इस दिन को मनाते हैं। 

माऱन् पणित्त तमिऴ् मऱैक्कु मंङ्गैयर्कोन् 
आऱंङ्गम् कूऱ अवतरित्त – वीऱूडैय
कार्तिगैयिल् कार्तिगैनाळ् इन्ऱेन्ऱु कादलिप्पार्
वायत्त मलर्ताळ्गळ् नेञ्जे वाऴ्त्तु ॥ ९॥ 

ऐ हृदय। नम्माऴ्वार् ने चार प्रबंधों की रचना की जो चार वेदों के बराबर हैं। जिस प्रकार उन चार वेदों के छह भाग हैं, उसी प्रकार कार्तिगै के महीने में कार्तिकेय नक्षत्र के इस महान दिन पर तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने केवल छह प्रबंधों की रचना की जो नम्माऴ्वार् के प्रबंध के छह भाग हैं। जो जीव इस दिन को बहुत पसंद करते हैं, उनके दिव्य चरण कमलों की प्रशंसा करें। 

अडियेन् दीपिका रामानुज दासी

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उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुर ४ – ६

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उपदेश रत्तिनमालै

<< पासुर १ – ३

पासुर ४

चौथे पासुर में मामुनिगळ् ,आऴ्वार् जिस क्रम में अवतरित हुए, उस क्रम को बताया है |

पोय्गैयार् भूतत्तार् पेयार् पुगऴ् मऴिसै
अय्यन् अरुळ् माऱन् सेरलर् कोन् – तुय्य भट्ट
नादन् अन्बर् ताळ् दूळि नऱ्पाणन् नऱ्कलियन्
ईदु इवर् तोट्रदु अडैवाम् इङ्गु॥॥ ४॥ 

आळ्वारों के अवतरण का क्रम बताया गया पोय्गै आऴ्वार्, भूतत् आऴ्वार्, पेय् आऴ्वार्, तिरुमऴिसै आळ्वार्  जो चिरस्थायी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। नम्माऴ्वार् जो अनुग्रह से परिपूर्ण हैं ,कुलशेखरप्  पेरुमाळ् जो चेर राजाओं के राजा हैं,  पेरियाऴ्वार्  जिनके पास शुद्ध हृदय है, तोण्डरडिप्पोडि आऴ्वार् , तिरुप्पाण् आऴ्वार् और तिरुमंङ्गै आऴ्वार् जो पूरी तरह से पवित्र हैं । 

पासुर ५

पांचवे पासुर में उन महीनों और नक्षत्रों को करुणा पूर्वक सूचीबद्ध किया जाएगा , जिनमें आऴ्वार् का अवतरण हुआ था। 

अन्दमिऴाल् नऱ्कलैगळ् आय्न्दुरैत्त आऴ्वार्गळ्
इन्द उलगिल् इरुळ् नीङ्ग – वन्दु उदित्त
मादङ्गळ् नाळ्गळ् तम्मै मण्णुलगोर् ताम् अऱिय
ईदु एन्ऱु सोल्लुवोम् याम् ॥ ५॥ 

आऴ्वारों ने वेद (पवित्र ग्रंथों) के गूढ़ अर्थों का विशलेषण कर, उच्चतर अर्थों का निर्देश दिया, जिससे अज्ञान का अंधकार इस पृथ्वी से हट गया।आगे उन महीनों और दिनों को सूचित किया जाएगा, जिनमें आऴ्वारों का अवतरण हुआ था, ताकि समस्त संसार उन्हें जान सके। 

पासुर ६ 

छठे पासुर में पहले तीन आऴ्वारों के अवतार की महानता का वर्णन किया है, जिन्हें सामूहिक रुप से मुदलाऴ्वार् (पहले आऴ्वार्) कहा जाता हैं। 

ऐप्पसियिल् ओणम् अविट्टम् सदयम् इवै
ओप्पिलवा नाळ्गळ् उलगत्तीर् – एप्पुवियुम्
पेसु पुगऴ् पोय्गैयार् भूतत्तार् पेयाऴ्वार्
तेसुडने तोन्ऱु सिऱप्पाल् ॥ ६॥ 

ऐ दुनिया के लोगों! जान लो। ऐप्पसी (आश्विन) महीने के तिरुवोणम् (श्रवण), अविट्टम् (धनिष्ठा), सधयम् (शतभिषा) नक्षत्रों के दिन अद्वितीय हैं। यह क्रमशः– वैभवशाली पोय्गै आऴ्वार्, भूतत्ताऴ्वार्, पेयाऴ्वार् के अवतार के कारण है। इन तीन आऴ्वारों को सभी के द्वारा मनाया जाता है।

अडियेन् दीपिका रामान्ज दासि

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