तिरुवाय्मोऴि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पाशुरम् 91 – 100

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः‌‌ श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ८१ – ९० इक्यानवेवां पाशुरम् – (ताळडैन्दोर…) इस पाशुरम में, श्रीवरवरमुनि आऴ्वार् (श्री शठकोप स्वामी) के उस पाशुरों का पालन कर रहे हैं जिसमें आऴ्वार् को भगवान की संगति के साथ परमपद की ओर प्रस्थान करने की अंतिम तिथि दी गई … Read more

तिरुवाय्मोऴि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पासुरम्  81 – 90

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ७१-८० इक्यासीवाँ पाशुर – (कॊण्ड…) इस पाशुरम् में, मामुनिगळ् आऴ्वार् के पाशुर का पालन कर रहे हैं जिसमें आऴ्वार् हमें सोपाधिक बंधुओं (सांसारिक रिश्तेदारों) को छोड़ने और निरुपाधिक बंधुओं (भगवान जो प्राकृतिक रिश्तेदार हैं) को पकड़ने का निर्देश देते हैं और … Read more

तिरुवाय्मोऴि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पासुरम्  71 – 80

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ६१-७० इकहत्तरवाँ पाशुरम् – (देवन्…) इस पाशुरम् में, श्रीवरवरमुनी स्वामीजी आऴ्वार् के पाशुरों का अनुसरण कर रहे हैं, जिनमें वे भगवान के गुणों और वास्तविक प्रकृति पर अनावश्यक रूप से संदेह करते हैं और वे संदेह दूर हो जाते हैं, और दयापूर्वक … Read more

तिरुवाय्मोळि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पाशुरम  61 – 70

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः‌ श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ५१-६० इकसठवां पाशुरम्– (उण्णिल…) इस पाशुरम् में, श्रीवरवरमुनी स्वामीजी उग्र इंद्रियों से डरने वाले आऴ्वार् के पाशुरों का अनुसरण कर रहे हैं और इसे दयापूर्वक समझा रहे हैं। उण्णिला ऐवरुडन् इरुत्ति इव्वुलगिल्एण्णिला मायन् ऎनै नलिय ऎण्णुगिन्ऱान्ऎन्ऱु निनैन्दु ओलमिट्ट इन् पुगऴ् सेर् माऱन् … Read more

तिरुवाय्मोऴि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पाशुरम् 51 – 60

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः‌ श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ४१-५० इक्यावनवें पाशुरम् – (वैगल्….) इस पाशुरम् में, श्रीवरवरमुनी स्वामीजी आऴ्वार् के उन पाशुरों का अनुसरण कर रहे हैं जिनमें सर्वेश्वर के विरह में पीड़ित होकर वे दूत भेजते हैं और इसे दयापूर्वक समझा रहे हैं। वैगल् तिरुवण्वण्डूर् वैगुम् इरामनुक्कु ऎन्सॆय्गतनैप् … Read more

तिरुवाय्मोऴि नूत्तन्दादि – सरल व्याख्या – पाशुरम 41 – 50

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ३१-४० इकतालीसवा पासुरम् – (कैयारुम् चक्करत्तोन्…) इस पासुरम् में, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी आऴ्वार् संसारियों को सुधारने (भौतिकवादी लोग) के लिए सर्वेश्वर द्वारा आऴ्वार् की अहैतुक स्वीकृति को देखकर विस्मित हुए आऴ्वार् के पाशुरों का अनुसरण कर रहे हैं और दयापूर्वक इसे समझा … Read more

तिरुवाय्मोऴि नूट्रन्तादि – सरल व्याख्या – पाशुरम् 31 – 40

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << २१ – ३० इकतीसवां पासुरम् – (ऒरु नायगमाय्…) इस पाशुरम में, मामुनिगळ् आऴ्वार् के पाशुरम् का पालन कर रहे हैं, जिसमें सांसारिक संपत्ति आदि के दोषों को उजागर किया गया है, वे हीन और नश्वर प्रकृति के होने के कारण, और … Read more

तिरुवाय्मोळि नूट्रन्दाधि (नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या – पाशुरम २१ – ३०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमत् वरवरमुनये नमः श्रृंखला << ११ – २० इक्कीसवाँ पाशुर् – (मुडियार् तिरुमलैयिल्…) इस पाशुरम् में, मामुनिगळ् आऴ्वार् के पासुरम् का अनुसरण कर रहे हैं और तिरुमलै (तिरुमालिरुञ्जोलै) में रहने वाले अऴगर् एम्पेरुमान् के सुंदर रूप का पूरी तरह से आनंद ले रहे हैं और दयापूर्वक इसे समझा … Read more

तिरुवाय्मोळि नूट्रन्दाधि (नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या – पाशुरम ११ – २०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमत् वरवरमुनये नमः श्रुंखला << १ – १० ग्यारहवां पाशुर – (वायुम् तिरुमाल्….) इस पाशुर में, श्रीवरवरमुनी स्वामीजी आऴ्वार् के पाशुरों काअनुसरण कर रहे हैं, जिसमें सभी प्राणियों को स्वयं के तरह पीड़ित मानते हैं और दयापूर्वक समझा रहे हैं। वायुम् तिरुमाल् मऱैय निर्क आट्रामैपोय् विन्जि मिक्क पुलम्बुदलाय् … Read more

तिरुवाय्मोऴि नूट्रन्तादि (नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या– पाशुरम १ – १०

।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः।। श्रुंखला <<तनियन् पहला पाशुरम : (उयर्वे परन् पडि…) यहाँ, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी आळ्वार के दिव्य शब्दों का अर्थसमझा रहे हैं , अर्थात् तिरुवाय्मोळि का यह पहला दशक, जो एम्पेरुमान की सर्वोच्चता को प्रकट करता है और जोनिर्देश देता है कि “परमेश्वर के दिव्य चरणों का आश्रय … Read more