यतिराज विंशति – श्लोक – १७
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक १६ … Read more
Divya Prabandham
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक १६ … Read more
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक १५ … Read more
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक १४ … Read more
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक १३ … Read more
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक १२ … Read more
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक ११ … Read more
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक १० … Read more
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक ९ … Read more
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनय् नमः यतिराज विंशति श्लोक ८ … Read more
श्री: श्रीमते शठकोपाये नम: श्रीमते रामानुजाये नम: श्रीमदवरवरमुनये नम: अष्ट श्लोकी << श्लोक 5 – 6 – द्वयमंत्र अंतिम 2 श्लोक, चरम श्लोक का वर्णन करते है, जो भगवान द्वारा कहा गया है । श्लोक 7 मत्प्राप्यर्थतया मयोक्तमखिलम संत्यज्य धर्मं पुन : मामेकं मदवाप्तये शरनमित्यार्तोवसायम कुरु । त्वामेवम व्यवसाययुक्तमखिलज्ञानादिपूर्णोह्यहं मत्प्राप्तिप्रतिबन्धकैर्विरहितम कुर्यां शुचं मा कृतः ।। अर्थ … Read more