तिरुवाय्मोळि नूट्रन्दाधि (नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या – पाशुरम २१ – ३०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमत् वरवरमुनये नमः श्रृंखला << ११ – २० इक्कीसवाँ पाशुर् – (मुडियार् तिरुमलैयिल्…) इस पाशुरम् में, मामुनिगळ् आऴ्वार् के पासुरम् का अनुसरण कर रहे हैं और तिरुमलै (तिरुमालिरुञ्जोलै) में रहने वाले अऴगर् एम्पेरुमान् के सुंदर रूप का पूरी तरह से आनंद ले रहे हैं और दयापूर्वक इसे समझा … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ३८ – ४०

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। । उपदेश रत्तिनमालै << पूर्व अनुच्छेद पासुरम् ३८ अड़तीसवाँ पासुरम्। मामुनिगळ् ने दयालुतापूर्वक ऎम्पॆरुमानार् को नम्पेरुमाळ् द्वारा दिये गये महान सम्मान को प्रकट किया ताकि हर कोई जान सके कि ऎम्पॆरुमानार् ने कितनी अच्छी तरह प्रपत्ति (ऎम्पॆरुमान् के प्रति समर्पण) मार्ग अपनाया था, और … Read more

स्तोत्र रत्नम – श्लोक 51 से 60 – सरल व्याख्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः पूरी श्रृंखला << 41 -50 श्लोक 51 – आळवन्दार् कहते हैं “दयालु और दया पात्र के बीच का यह संबंध, आपकी ही दया से स्थापित किया गया था प्रभो, ऐसे होने के नाते, आपको ही, परित्याग किये बिना, मेरी रक्षा करना चाहिए” | तदहं त्वदृते न … Read more

स्तोत्र रत्नम – श्लोक 41 से 50 – सरल व्याख्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः पूरी श्रृंखला << 31 – 40 श्लोक 41 – इस श्लोक में स्वामी आळवन्दार् एम्पेरुमान् और पेरिय तिरुवडी (गरुडाऴ्वार्) की समक्षता का आनंद ले रहें हैं; गरुडाऴ्वार् जो कई प्रकार के कैंङ्कर्य में लगे रहते हैं जैसे भगवान् का ध्वज इत्यादि और जो एक परिपक्व फल … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ३६ और ३७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ३४ और ३५  पासुरम् ३६ छत्तीसवां पासुरम्। वे अपने हृदय से कहते हैं कि हमारे आचार्यों के अलावा और कोई नहीं है जो आऴ्वारों और उनके अरुळिच्चॆयल् की श्रेष्ठता को पूर्णतः जानते हों।  तॆरुळुट्र आऴ्वार्गळ् सीर्मै अऱिवार् आर्अरुळिच्चॆयलै अऱिवार् आर् – अरुळ् पॆट्र नादमुनि … Read more

उपदेश रत्तिनमालै – सरल व्याख्या – पासुरम् ३४ और ३५ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः उपदेश रत्तिनमालै << पासुरम् ३१ – ३३ पासुरम् ३४  चौंतीसवां पासुरम्। मामुनिगळ् अब तक दयालुता पूर्वक उन नक्षत्रों और स्थलों के बारे में बताते रहे जहाँ आऴ्वार् अवतरित हुए। तीसरे पासुरम् में उन्होंने “ताऴ्वादुमिल् कुरवर् ताम् वाऴि- एऴ्पारुम्  उय्य अवर्गळ् उरैत्तवैगळ् ताम वाऴि” कहकर हमारे आचार्यों के … Read more

स्तोत्र रत्नम – श्लोक 31 से 40 – सरल व्याख्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः पूरी श्रृंखला << 21 -30 श्लोक 31 – इस श्लोक में श्री आळवन्दार् कहते हैं , ” आपके चरण कमलों को सिर्फ देखना ही पर्याप्त नहीं है , मेरे सिर पर आपके चरणों को रखके मेरे सिर को सुशोभित करना चाहिए ” जैसे तिरुवाइमोळि ९.२.२ में … Read more

तिरुवाय्मोळि नूट्रन्दाधि (नूत्तन्दादि) – सरल व्याख्या – पाशुरम ११ – २०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमत् वरवरमुनये नमः श्रुंखला << १ – १० ग्यारहवां पाशुर – (वायुम् तिरुमाल्….) इस पाशुर में, श्रीवरवरमुनी स्वामीजी आऴ्वार् के पाशुरों काअनुसरण कर रहे हैं, जिसमें सभी प्राणियों को स्वयं के तरह पीड़ित मानते हैं और दयापूर्वक समझा रहे हैं। वायुम् तिरुमाल् मऱैय निर्क आट्रामैपोय् विन्जि मिक्क पुलम्बुदलाय् … Read more

नाच्चियार् तिरुमोऴि – सरल व्याख्या – छठवां तिरुमोऴि – वारणम् आयिरम्

 श्रीः श्रीमतेशठकोपाय नमः श्रीमतेरामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः नाच्चियार् तिरुमोऴि <<मन्नु पेरुम् पुगऴ् आण्डाळ् ने कोयल से विनती की थी कि वह उसे भगवान से मिला दे। ऐसा न होने से वह बहुत व्यथित थी। दूसरी ओर, एम्पेरुमान् उसके प्रति अपना प्यार बढ़ाने और बाद में आने का प्रतीक्षा कर रहा था। भले ही उन्होंने आरंभ … Read more

नाच्चियार् तिरुमोऴि – सरल् व्याख्या पाँचवा तिरुमोऴि – मन्नु पेरुम् पुगऴ्

श्रीः श्रीमतेशठकोपाय नमः श्रीमतेरामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः नाच्चियार् तिरुमोऴि <<चौथा तिरुमोऴि आण्डाळ् कूडल् में संलग्न होने के बाद भी एम्पेरुमान् के साथ एकजुट नहीं हो पाई, तो वह उस कोयल पक्षी को देखती है जो पहले उसके साथ थी जब वह एम्पेरुमान् के साथ एकजुट हुई थी। वह कोयल‌ उसकी बातों का उत्तर दे सकता … Read more