तिरुवाय्मोळि – सरल व्याख्या – २. १० – किळरोळि

श्री: श्रीमते शटकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नम:

कोयिल तिरुवाय्मोळि

<< १.२ – वीडुमिन

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आळ्वार एम्पेरुमान के ओर सारे प्रियतम कैंकर्य करना चाहे। एम्पेरुमान “तेर्क्कु तिरुमलै” (दक्षिण दिव्यदेश ) नाम से पहचाने जाने वाले तिरुमालिरुन्चोलै में आळ्वार को दर्शन देकर कहे, “मैं तुम्हारे लिए यहाँ आया हूँ, तुम यहीं मेरे प्रति सर्वत्र कैंकर्य समर्पण कर सकते हो।” इससे अत्यंत संतुष्ट होकर आळ्वार तिरुमालिरुन्चोलै दिव्यदेश को अनुभव करतें हैं।  

पहला पासुरम : आळ्वार गाते हैं, “अद्वितीय कांतिमान सर्वेश्वर के प्रिय यह दिव्यदेश/तिरुमलै ही हमें प्राप्य हैं।” 

किळरोळि इळमै केडुवदन मुन्नम 

वळरोळि मायोन मरुविय कोयिल 

वळरिळं पोळिल सूळ मालिरुनचोलै 

तळर्वीलरागिल सार्वदु सदिरे 

प्रचुर एवं पुष्ट वाटिकाओं से घेरे यह दिव्यदेश इसी कारण तिरुमालिरुन्चोलै कहलाया गया है।  यह अद्वितीय कांतिमान सर्वेश्वर का निवास है। सर्वेश्वर अद्भुत गुण संपन्न हैं ; भक्तजनों केलिए अपने नित्य-निवास श्रीवैकुण्ट से यहाँ उतरने से इन्कि कांति कम नहीं बल्कि अत्यधिक ही हुयी हैं।  ऐसे यह सर्वेश्वर इस तिरुमालिरुन्चोलै दिव्यदेश को अपना स्थिर निवास बनाए हैं। आळ्वार गाते हैं कि इस सर्वश्रेष्ठ दिव्यदेश जो उदीयमान ज्ञान एवं कांति के हेतु है तथा शोकनाशनी है, इस्को प्राप्त करना ही उचित है।  

दूसरा पासुरम: आळ्वार कहतें हैं, “जिस दिव्यदेश में अळगर के तिरुमलै है वही उद्देश्य है।”  

सदिरिळ मड़वार ताळछियै मदियादु 

अदिर्कुरल संगत्तु अळगर तम कोयिल 

मदि तवळ कुडूमि मालिरूनजोलै 

पदियदु एत्ती एळुँवदु पयने 

सुंदरता और अक्लमंदी से सम्मोहित करने वाले नारियों से विमुक्त रहना है और प्रसिद्द क्षेत्र तिरुमालिरुन्चोलै की प्रशंसा करके, उन्नति प्राप्त करना है। चँद्रमा को छूने वालें यह तिरुमालिरुन्चोलै पर्वत अळगर एम्पेरुमान के दिव्य निवास है. अत्यंत सौंदर्य संपन्न अळगर एम्पेरुमान के संघटन की घोषणा कर रही हैं श्री पांचजन्य। यह पासुरम आळ्वार अपने ह्रदय के प्रति गाते हैं।  

तीसरे पासुरम में आळ्वार कहतें हैं, “जिस दिव्य पर्वत में एम्पेरुमान निवास करतें हैं उसके समीप स्थित पर्वत उद्देश्य हैं।  

पयन अल्ल सैदु पयनिल्लै नेंजे 

पुयल मळै वँणर पुरिंदुरै कोयिल 

मयल मिगु पोळिल सूळ मालिरुन्चोलै 

अयल मलै अड़ैवदु अदु करुममे 

हे मन! बेकार कार्रवाईयों में कोई प्रयोजन नहीं हैं।  काले मेघ के समान स्वाभाविक अळगर एम्पेरुमान के मनपसंद निरंतर निवास स्थान यहीं है, और देखने वालों के मन भाने वाले सुन्दर वाटिका से घेरे दिव्य पर्वत के निकट उपस्थित पर्वत तक पहुँचना ही आवश्यक कार्रवाई है।  

चौथे पासुरम में कहतें हैं कि हमारी सुरक्षा करने वाले एम्बेरुमान के निवास स्थान जो बड़े वाटिकाओं से घेरे दिव्य पर्वत है, उसे पहुँचना ही आवश्यक कार्य है।  

करूमवन पासं कळित्तु उळनृय्यवे 

पेरुमलै एडुत्तान पीडुरै कोयिल 

वरुमळै तवळुं मालिरुन्चोलै 

तिरुमलै अदुवे अड़ैवदु तिरमे 

सुलझाने में कठिन कर्म जो साँसारिक बंधन हैं, उन्को सुलझ कर, आत्म उज्जीवन के निमित गोप गोपिकाओँ के दुःख निवारण करने केलिए जिसने ऊँचे गोवर्धन पर्वत को उठाया, उन्हीं को रक्षक के रूप में पाने के लिए तथा जीवात्माओं के कैंकर्य को स्वीकार करते हुए एम्पेरुमान उस स्थान पे निवास कर रहे हैं जहां गगन से स्पर्शित, वाटिकाओँ से भरे दिव्य पर्वत हैं और उसी जगह पहुंचना हर एक व्यक्ति के लिए अति आवश्यक है।  

पाँचवा पासुरम में आळ्वार कहतें हैं कि जिनके पास रक्षण में प्रयुक्त तिरुवाळी (चक्र)है उस एम्पेरुमान के निवास स्थल जो दिव्य पर्वत है, उसके परिक्रमा  में उपस्थित पर्वत को पहुँचना उचित मार्ग है।  

तिरमुडै वलत्ताल तीविनै पेरुक्कादु 

अरमुयल आळि पडै अवन कोविल 

मरुविल वण सुनै सूळ मालिरुन्चोलै 

पुर मलै सार पोवदु गिरिये 

अनेक दृढ़ कठोर पापों को बढ़ाने के बदले, भक्त जनों के संरक्षण में लगे रहने वाले तिरुवाळि (शंख) अस्त्र के स्वामी के जो निवास स्थान है, आश्रितो की बलाई करने वाले, निष्कलंक झरनों से घेरे दिव्य गिरि के प्रदक्षण पथ में उपस्थित इस पहाड़ के निकट जाना अच्छा मार्ग है।  

भगवान को पाने की हमारी कोशिश से काफी बेहतर है भगवान हमारे निकट आने की प्रयत्न | इस पांचवे पासुरम तक आळवार अपने मन को सलाह देते हैं इसके बाद के पासुरम से हमको उपदेश करते हैं |

छटवां पासुरम : भक्तों के प्रति अत्यंत प्रेमी भगवान के निवास स्थान जो दिव्य गिरि है, उस्के मार्ग को स्मरण करना सर्वश्रेष्ठ है।  

गिरियेन निनैमिन कीळ्मै सैय्यादे

उरियमर वेन्नै उंडवन कोयिल 

मरियोडु पिनैसेर मालिरुन्चोलै 

नेरिपड अदुवे निनैवदु नलमे 

साँसारिक विषयों में उलझने जैसे नीच काम को छोड़, इसको नेक मार्ग समझिए।  क्योंकि इस नवनीत चोर कृष्ण की मंदिर तथा गाय, बछड़ों और हिरणो की मिलन स्थान जो है, इस दिव्य गिरि के मार्ग में रहने की स्मरण ही हमारी प्रयोजन है।  

सातवाँ पासुरम। प्रळय काल रक्षक एम्पेरुमान के निवास स्थल जो दिव्यगिरि है, उसके प्रति किये जाने वाले अनुकूलन कार्य ही श्रेष्ट है।   

नलमेन निनैमिन नरगळुंदादे 

निलमुनम इडंदान नीडुरै कोयिल 

मलमरु मदिसेर मालिरुन्चोलै 

वलमुरै येइदि मरुवुदल वलमे 

सँसार नामक घोर नरक में न डूबे, बल्कि इसी को सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य समझिये। भूमा देवी के रक्षक श्री वराह स्वामी के निरंतर निवास स्थान [ जो प्रलय काल में भूमि को असुर से बचाया था ] , निष्कलंक चँद्रमा से अलंकृत दिव्यगिरि के प्रति स्वामि/सेवक के क्रम में अनुकूलन कैंकर्य करना ही श्रेष्ट प्रयोजन है।  

आठवा पासुरम : इसमें आळ्वार कहतें हैं कि भक्तवत्सल श्री कृष्ण रहने वाले इस दिव्यगिरि के प्रति निरंतर अनुकूल कैंकर्य करना ही हमारी स्वरूप है।  

वलम सैदु वैगल वलम कळियादे 

वलम सैय्युम आय मायवन कोयिल 

वलम सैय्युम वानोर मालिरुन्चोलै 

वलम सैदु नाळुम मरुवुदल वळक्के 

यह दिव्यगिरि भक्तों से बंधे, उन्हें अनुकूल करने वाले आश्चर्यभूत श्री कृष्ण के मंदिर है। परमपदवासी भी जिस दिव्यगिरि के प्रति अनुकूल कार्य करतें हैं, अन्य कार्यों में ध्यान व्यर्थ न कर, उसी दिव्यगिरि के प्रति दृढ़ निश्च्यता बढ़ाके प्रतिक्षण आनुकूल्य कार्य/कैंकर्य कर निरंतर झुड़े रहना ही न्याय है।  

नवा पासुरम: पूतना को वद करने वाले एम्पेरुमान के निवास दिव्यगिरि को पूजने की दृढ़ निश्चय ही विजय का कारण है।  

वळक्केन निनैमिन वलविनै मूळ्गादु 

अळक्कोडि अट्टान अमर पेरुम कोयिल 

मळकळिट्रिनम सेर मालिरुन्चोलै 

तोळ करूदुवदे तुणिवदु सूदे 

क्रूर पापों में न डूबे, इसी को आत्म स्वरूप के लिए उचित समझें। असुर महिला [ पूतना ] को वद करने वाले का विशाल मंदिर जहाँ हाथियों के बछड़े घेरते हुए दीखते हैं, उस दिव्यगिरि को पूजने कि दृढ़ निश्चय में रहना ही सँसार से जीतने का मार्ग है |

दसवाँ पासुरम। उपदेश के रूप में गाये गए इस पत्तु को समाप्त करते हुए आळ्वार कहतें हैं कि वेद के पोषण से परवरिश करने वाले एम्बेरुमान के निवास इस दिव्यगिरि तक पहुँचना ही उद्देश्य हैं।  

सूदु एंड्रु कलवुम सूदुम सैय्यादे 

वेदमुन विरित्तान विरुम्बिय कोयिल 

मादुरू मयिल सेर मालिरुन्चोलै 

पोदविळ् मलैये पुगुवदु पोरुले

सुलभ मार्ग समझकर चुराना, अपहरण करना जैसे नीच कार्य न करें, गीतोपदेश द्वारा वेदार्थ विवरित करने वाले एम्पेरुमान की जो प्रिय निवास है, नम्र मोर मिल झुलके रहने वाले, फूलों से भरे बागों से घेरे तिरुमलै को जा पहुँचना ही लक्ष्य है।  

ग्यारहवाँ पासुरम : इस पदिगम (दस पासुरों का संग्रह) का यह फलश्रुति है और आळ्वार, भगवत प्राप्ति को इस पदिगम का प्रयोजन बताते हैं।  

पोरुळ एन्रु इव्वुलगम पड़ैत्तवन पुगळ मेल 

मरुळिल वण कुरुगूर वण सडगोपन 

तेरुळ कोळ्ळ सोन्न ओराईरत्तुळ् इप्पत्तु 

अरुळ् उडैयवन ताळ अणैविक्कुम मुडित्ते 

आश्रितों के हित को प्रयोजन मानकर इस सँसार के सृष्टिकर्ता के दया, क्षमा, औदार्य जैसे कल्याण गुणों के विषय में , किँचित भी अज्ञान रहित, उत्तम क्षेत्र आल्वारतिरुनगरि के प्रधान, अत्यंत दयाळू नम्माळ्वार के द्वारा , जीवात्माओं को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति केलिए और सँसार से विमुक्त कृपाळु अळगर के दिव्य चरणकमलोँ तक पहुंचाने वाले है, अद्वितीय हज़ार पासुरमो में यह पदिगम। 

अडियेन प्रीती रामानुज दासि

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