आर्ति प्रबंधं – ५९

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

<< पाशुर ५८

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उपक्षेप

मामुनि कहतें हैं, “ मेरे आचार्य तिरुवाईमोळिपिळ्ळै के कृपा से आपके चरण कमलों से मेरा संबंध का ज्ञान हुआ। हे रामानुज! आप कब मेरे यह साँसारिक बँधन को काटेँगे जिसके पश्चात (आत्मा के सुहृद) पेरिय पेरुमाळ गरुड़ में सवार पधारेँगे और अपना दिव्य मुख के दर्शन देँगे? कृपया बताईये के आप यह कब करेँगे?  

पासुरम ५९

एंदै तिरुवरंगर येरार गरुडन मेल

वंदु मुगम काट्टी वळि नड़त्त चिन्दै सैदु

इप्पोल्ला उडंबुतनै पोक्कुवदु एन्नाळकोलो?

सोल्लाय एतिरासा सूळ्ंदु

शब्दार्थ

एंदै  – ( इस शरीर से आत्मा के निकलते समय) मेरे माता और पिता

तिरुवरंगर – पेरिय पेरुमाळ , जो कोयिल (श्रीरंगम) में नित्य वास करतें हैं

मुगम काट्टी  – अपने सुंदर कस्तूरि तिलक , दिव्य मुस्कराहट के दर्शन देँगे

वंदु – मेरे पास आकर

येरार गरुडन मेल  – उन्के तेजस्वी वाहन गरुड़ में सवार

वळि नड़त्त  – “अर्चिरादि मार्ग” नामक श्रेयसी मार्ग में ले चलेंगे

एतिरासा  – हे ! एम्पेरुमानार

सोल्लाय  – कृपया मुझे बताइये

इप्पोल्ला उडंबुतनै पोक्कुवदु एन्नाळकोलो?  – इस नीच शरीर का नाश कब होगा और यह आत्मा कब आपका बनेगा?

चिन्दै सैदु  – कृपया विचार कीजिये

सूळ्ंदु  – और मेरे शांति और ख़ुशी केलिए  कृपया मुझे निश्चित रूप में बताइये

सरल अनुवाद

श्री रामानुज के प्रति नित्य कैंकर्य के तृष्णा में मामुनिगळ पूँछते हैं कि, उन्के(श्री रामानुज के) नित्य कैंकर्य के नियमित होने केलिए कब इस शरीर से उन्को मुक्ति मिलेगा। अंतिम स्थिति की वर्णन करतें हुए मामुनि कहतें है कि श्रीरंगम के पेरिय पेरुमाळ अपने तेजस्वि वाहन गरुड़ में पधारेँगे और अर्चिरादि मार्ग के द्वारा परमपद ले जायेँगे।  

 

स्पष्टीकरण

श्री रामानुज के प्रति कैंकर्य करने कि अधिकतर तृष्णा के कारण ,मामुनिगळ पूँछते हैं, “मुक्ति केलिए इस शरीर का छूटना आवश्यक है, यह शरीर कब छूटेगा? कोयिल नामक श्रीरंगम में शयन मेरे माता और पिता पेरिय पेरुमाळ को अंतिम स्थिति में देखूँगा। “अम चिरै पुळ पागन” (तिरुनेडुंतांडगम ६) से वर्णन किये गए सुंदर गरुड़ में सवार, पेरिय पेरुमाळ पधारेँगे। चँद्रमा जैसे दिव्य मुख, (पेरिय तिरुमोळि ४.४.५ ) “नल कदिर मुत्त वेंणगै चेयवाय” से चित्रित सुंदर मुस्कुराहट तथा कस्तूरी तिलक जैसे मेरे मनमोहक विषयों के दर्शन देंगे। पेरिय पेरुमाळ को तिरुमंगैयाळवार,अपने पेरिय तिरुमोळि के ३. ७. ६ वे पासुरम में “अरंगत्तुरैयुम इनतुणैवनान ताम” से श्रीरंगम के प्रिय सखा कहतें हैं और आगे प्रस्ताव करतें हैं कि वे (वराह चरम श्लोक)”नयामि परमां गतिं” के अनुसार अर्चिरादि मार्ग के द्वारा परमपद ले जायेँगे। हे स्वामि एम्पेरुमानार! नम्माळ्वार नें (तिरुवाय्मोळि ५.८.७) से “उन चरणम तंदु एन सनमम कलयाये” गाया था। अपने चरण कमलों में आश्रय देकर मेरे जन्म मरण का यह निरंतर चक्कर से कब छुटकारा देँगे? इस शरीर को हटाकर मेरे आत्मा को कब अपनाएँगे?   श्री रामायणं में “पूर्णे चतुर्दसे वर्षे” वचन से श्री राम को अयोध्या वापस लौटने का १४ साल का समय दिया गया था। यह समय का निश्चित उल्लेख ही भरत केलिए आश्वासन था, कि श्री राम निश्चय १४ वर्षों में लौटेंगे। “आरुरोहरतम हृष्ट:” के अनुसार भरत को वही किंचित ख़ुशी देने वाली विषय थी। परन्तु मुझे ऐसे कोई भी विषय आश्वासन नहीं देती हैं। अत: कृपया मुझे प्रसन्न करने वाली उत्तर दें। तिरुवाय्मोळि १०.१०.११ के “अवावर सूळ्” और पेरिय तिरुवन्दादि १६ वे पासुरम के “सोल्लु नीयाम अरिय चूळ्ंदु” के जैसे ही इस पासुरम के “सूळ्ंदु” का अर्थ है।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार : http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2017/03/arththi-prabandham-59/

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