आर्ति प्रबंधं – ५४

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

<< पाशुर ५३

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उपक्षेप

पिछले  पासुरम में मामुनि श्री रामानुज से खुद सुधार कर इस सँसार से विमुक्त करने की प्रार्थना को ज़ारी रखें। मामुनि जानते हैं की श्री रामानुज उनकी प्रार्थना को पूरा करेँगे, किंतु “ ओरु पगल आयिरम ऊळियाय” (तिरुवाय्मोळि १०.३.१) के अनुसार, मामुनि को हर पल एक युग के समान है। अत: वे श्री रामानुज से प्रार्थना करतें हैं, “आप मेरे सर्व प्रकार  बंधु होने के कारण, कृपया मुझे शरीर से संबंधित सारें पीड़ाओं को और न बुगतने दें। न जानें आप मुझे यहाँ से कब मुक्ति दिलाकर, नित्यानंद का निवास परमपद ले जाएँगे।

 

पासुरम ५४

 

इन्नम एत्तनै नाळ इव्वुडमबुडन

इरुंदु नोवु पडक्कडवेन अैयो

एन्नै इदिनिनड्रुम विडुवित्तु नीर

एन्ड्रु तान तिरुनाट्टीनुळ येट्रूवीर

अन्नैयुम अत्तनुम अल्लाद सुट्रमुम आगि

एन्नै अळित्तरुळ नादने

एन इदत्तै इरापगल इन्ड्रिये

एगमेण्णुम एतिरासा वळ्ळले!

 

शब्दार्थ

नादने – हे मेरे स्वामि

अळित्तरुळ – ( आप) आशीर्वाद  करतें हैं

एन्नै –  मुझें

आगि – होकर मेरे

अन्नैयुम –  प्रेम बरसने वाली माता

अत्तनुम  – हित करने वाले पिता

अल्लाद सुट्रमुम  – सारें बंधुओं के रूप में होते हुए

एतिरासा वळ्ळले! – यतियों के महानुभाव नेता जो एम्पेरुमानार जाने जातें हैं

इरापगल इन्ड्रिये एगमेण्णुम –  जो दिन और रात पूरे ध्यान के सात सोचतें हैं

एन  – मेरे

इदत्तै  – आशाओं को ( उन्हीं को जो मेरेलिए अच्छे हैं)

(आपके दिव्य चरण कमलों में गिरने के बाद भी )

एत्तनै नाळ  – कितने

इन्नम – देर

नोवु पडक्कडवेन  – मुझें कष्ट झेलना है

इव्वुडमबुडन इरुंदु  – इस शरीर के सात

अैयो – हो !

विडुवित्तु  – कृपया मुक्ति दीजिये

एन्नै – मुझे

इदिनिनड्रुम –  इस शरीर से जो बाधा बनकर  रहता है

एन्ड्रु तान  – कब

नीर – आप

येट्रूवीर  – छड़ायेंगे

तिरुनाट्टीनुळ – परमपदम् ?

 

सरल अनुवाद

इस पासुरम में मामुनि कहतें हैं कि एम्पेरुमानार उन्के माता, पिता और सारे बंधु हैं और हमेशा मामुनि के भलाई कि ही सोचतें हैं। इसलिए मामुनि विनति करतें हैं कि वे कब इस बंधन से छुटकारा पाकर नित्यानंद की जगह परमपद पहुँचेंगे ? और कितने समय तक इस शरीर में इस सँसार में संकट झेलना हैं ?

स्पष्टीकरण

मधुरकवि आळवार के (कँणिनुन सिरुत्ताम्बु ४ ) “अन्नैयाय अत्तनाइ एन्नै आँडिडुम तनमैयान” के भाव को प्रतिबिंब करतें हुए मामुनि कहतें हैं , “हे एम्पेरुमानार! आप ही असीमित प्रेम देने वाली माता हैं और आप ही मेरे लिए  हित के ही आशा करने वाले मेरे पिता भी हैं। सन्मार्ग में पधारने वाले आत्म बंधु भी आप ही हैं। यतियों के नेता हैं आप। (तिरुवाय्मोळि ९.३.७) के “एन मनमेगमेन्नुम इरापगलिनरिये” के प्रकार अविभज्य ध्यान से दिन और रात मेरे हित के विचार में ही आप लगें हैं। (तिरुवाय्मोळि ५. ८.१०)” उनक्काटपट्टुम अडियेन इन्नुम उळलवेनों ?” के अनुसार आपके दिव्य चरण कमलों में शरणागति करने के बाद भी, इस शारीरिक संबंध से और कितने समय तक इस तुच्छ सँसार में रहना है स्वामी? अहो! इस शरीर नामक बाधा से मुक्त कर, नित्यानंद स्थल जो परमपद है , कब मुझे वहाँ भेझेंगे? वह दिन अद्वितीय दिन होगा।  “वळळल” वें कहलातें है जिन्के भले कर्मों के किसी भी प्रकार प्रतिदान न किया जा सकता।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार : http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2017/03/arththi-prabandham-54/

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