आर्ति प्रबंधं – ५०

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

पिछले पासुरम में श्री रामानुज के दिव्य चरण कमलों में शरणागति करने केलिए तैयार हुए लोगों को, मामुनि इस पासुरम में और एक महत्वपूर्ण उपदेश देतें हैं: जब श्री रामानुज के दिव्य नाम को जप करने से सबसे सर्व श्रेष्ट निधि प्राप्त हो सकती हैं, तो यह जन तुच्च व्यवहारों में समय क्यों बिताते हैं ?

पासुरम ५०

अवत्ते अरुमंद कालत्तै पोक्कि अरिविनमैयाल

इप्पवत्ते उळलगिंर पावियरगाळ पलकालम निनृ

तवत्ते मुयलबवर तंगगटकुम एयदवोण्णाद

अन्द तिवत्ते उम्मै वैक्कुम सिंदियुम नीर ऐतिरासरेंरु

 

शब्दार्थ:

पावियरगाळ – हे ! पापियों !

अरिविन्मयाल – अज्ञान से

उळलगिंड्र – ( आप लोग) जी रहें हैं

इप्पवत्ते – इस साँसारिक दुनियाँ में

अवत्ते पोक्कि – व्यर्थ करते हैं

अरुमंद कालत्तै  – वह अमूल्य काल जब श्री रामानुज के दिव्य नाम आसानी से जप तथा  ध्यान किया जा सकता था।

अन्द तिवत्ते  – श्रुतियों से “परम व्योम:” के नाम से विवरित किये गए परमपद  

एयदवोण्णाद – ऐसा जगह जो प्राप्त नहीं होता

मुयलबवर तंगगटकुम – उनको भी जो अत्यंत प्रयत्न करतें हैं

तवत्ते – तपस से

नीर – आप लोग

पलकालम – हर समय

निड्रु  – एकाग्र धारणा के संग

ऐतिरासरेंरु सिंदियुम – श्री रामानुज या यतिराज पर अपने हृदय में विचार करें ( प्रयास कम और फल बड़ा हैं )

उमै- अगर आप नित्य संसारी यह करें तो

वैक्कुम – आप नित्यसूरियों के संगत पाएँगे

 

सरल अनुवाद

मामुनि संसारियों से कहतें हैं , “ अपने धारणा एवं कठिन तपस के कारण परमपद पहुँचने को अनेकों लोग प्रयत्न करतें हैं। लेकिन वें पहुँच नहीं पाते। और आप लोगों ने अपना सारा समय तुच्छ विषयों में व्यर्थ कर दिया हैं। पर परमपद पहुँचने का आसान रास्ता है। श्री रामानुज के दिव्य नाम को जप तथा ध्यान करने पर निश्चित परमपद प्राप्त होगा।

स्पष्टीकरण

इस दुनियाँ के लोगों को मामुनि पुकारतेँ हैं, “ हे इस सँसार के पापियोँ ! श्री रामानुज के दिव्य नाम को जप कर जिन सुनहरें फलों को बिता सकतें थे, उन्को आप लोगों ने व्यर्थ कर दिया। बीते उन फलों को सोच कर, उनका व्यर्थ होने कि एह्सास कर सकतें हैं। और इसके पश्चात भी, हल्के प्रयास से ही प्राप्त होने वाली एक अमूल्य विषय हैं।  और वह जगह हैं , श्रुतियों से “तत अक्षरे परमव्योम:” वचन से प्रशंसित,नित्यसूरियों का निवास स्थान और सब से उत्तम लक्ष्य परमपद हैं। अनेकों ऐसे लोग हैं जो यहाँ पहुँचने के लिए कठिन तपस करतें हैं। और इस तरह के घोर तपस के पश्चात भी वें अपने स्व प्रयत्न के बल पर परमपद पहुँच नहीं पाते हैं। किंतु यहाँ पहुँचने केलिए एक आसान मार्ग हैं और वह है श्री रामानुज के दिव्य नामों को जप कर उन्पर ध्यान करना। इसमें प्रयास छोटा और फल सर्व श्रेष्ट, साक्षात परमपद हैं।       

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार : http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2017/03/arththi-prabandham-50/

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