आर्ति प्रबंधं ३१

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

पिछले पासुरं में मणवाळ मामुनि, एक से अधिक बार श्री रामानुज के मँगळं (श्रेय) गायें। हर एक को  इस आदत की तरस/आर्ति होनी चाहिए।  इस पासुरं में मणवाळ मामुनि , १) वेदों से भिन्न कई सिद्दांतों को रचने वालों और २) वेदो की अर्थ न समझनें वालों पर जीतने वाले  श्री रामानुज की  शौर्य की श्रेय गातें हैं।  जैसे पिछले पासुरं श्री रामानुज के दिव्य शरीर की मँगळं गाता हैं , यह उनके गुणों की करता हैं।  

पासुरं ३१

अरुसमय चेडियदनै अडियरुत्तान वाळिये

अडरंदुवरुम कुदिट्ठिगळै अरत्तुरंदान वाळिये

सेरु कलियै चिरिदुम अर तीरत्तु विट्टान वाळिये

तेन अरंगर सेल्वम मुट्रूम तिरुत्ति वैत्तान वाळिये

मरैयदनिल पोरुळ अनैत्तुम वाई मोळीन्दान वाळिये

मारनुरै सैद तमिळ मरै वळरत्तोन वाळिये

अऱमिगु नर पेरुम्बुदूर अवदरित्तान वाळिये

अळगारुम एतिरासर अडियिणेगळ वाळिये

शब्दार्थ

वाळिये  – नित्य जिए !

अडियरुत्तान – जिन्होंने नाश किये इन्के  जड़ों को

अरुसमय चेडियदनै – छे सिद्धांतों के वृक्षों के, जो वेदों के विरुद्ध थे

वाळिये – नित्य जिए

अरत्तुरंदान – जो भगाये

अडरंदुवरुम  – अत्यधिक सँख्या में आने वाले

कुदिट्ठिगळै – “नान मरैयुम निर्क कुरुम्बु सै नीसरूम मांडनर” वचनानुसार “कुदृष्टि” पहचाने जाने वाले ये वेदों की गलत अर्थ समझते हैं

वाळिये – नित्य जिए

तीरत्तु विट्टान – जिन्होंने नाश किये

सेरु कलियै – कलि नामक खतर्नाक दुष्ट शक्ति

अर – निकले, बिना

चिरिदुम – छोटे निशानी की

वाळिये – नित्य जिए

तिरुत्ति वैत्तान – जो प्रशासन किये

सेल्वम मुट्रूम – सारे ख़ज़ाने

तेन अरंगर – पेरिय पेरुमाळ (श्रीरंगम के शासक देव) के, जो सौंदर्य से भरपूर हैं  

वाळिये – नित्य जिए

वाई मोळीन्दान – ( श्री भाष्य नामक) अपने दिव्य व्याख्यानों से हमें आशीर्वाद करने वालें। जो संकेत देता है

पोरुळ अनैत्तुम – सारे शास्त्रों की

मरैयदनिल – वेदों से प्रचार किये जाने वाले

वाळिये – नित्य जिए

वळरतोन – प्रसिद्द कर फैलाये

तमिळ मरै – तमिळ वेदं

उरै सैद – प्रस्तूत हैं

मारन – नम्माळ्वार से

वाळिये – नित्य जियें

अवदरित्तान – जो प्रकाशित हुए

नर पेरुम्बुदूर – श्रीपेरुम्बूदूर नामक दिव्य क्षेत्र में

अऱमिगु – आगे प्रस्तुत तमिळ वेदं के अनुसार “सम्पूर्ण शरणागति” प्रचार करने के हेतु

वाळिये – नित्य जिए

अडियिणेगळ – एकमात्र आश्रय, जो कमल पद हैं

ऐतिरासर – श्री रामानुज के जो हैं

अळगारुम – सौंदर्य इत्यादि अनेक दिव्य गुणों से सम्पूर्ण हैं

सरल अनुवाद

इस पासुरम में मणवाळ मामुनिगळ कहतें हैं , “ श्री रामानुज जिन्होनें १) वेदों के सीमाओं के पार, उसके विरुद्ध खडे छे सिद्धांतों की नाश किये एंड वैदिक साम्प्रदाय को स्थापित किये २) वेदों के गलत अर्थ निकालने वालों को भयभीत किये ३) कलि के ऐसा नाश किये की उसकी निशानी भी भूमि में न रही ४) श्रीरंगम के असीमित निधि को पुन: निर्माण किये और मंदिर के अनुशासन को सुधार, विधि स्थापित किये ५) अपने सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ “श्री भाष्य” के द्वारा वेदों के सच्चे अर्थ दिलाये ६) रूचि रखने वालों के मध्य तिरुवाय्मोळि के सारार्थ प्रचार किये और ७) श्रेयसी श्रीपेरुमबूदूर में अवतार किये , उनकी जय हो। और जय हों उन्के दिव्य चरण कमलों की।

स्पष्टीकरण

मणवाळ मामुनि श्री रामानुज के गुण विशेषों की श्रेय गाते हैं।  इनमें प्रतम स्थान वें श्री रामानुज के वेदों के विरुद्ध खड़े छे सिद्धांतों के नाश को देते हैं।  “साख्योंलुख्याक्षपादक्षपणक कपिलपतंजलि मदाणुसारिण:” वचनानुसार वेदों के सीमा पार छे सिद्धांत थे।  श्री रामानुज ने उनको झड़ से मिटा दिया। इसके पश्चात “नान मरैयुम निर्क कुरुम्बु सेय नीसरूम माण्डनर (रामानुस नूट्रन्दादि ९९)” के अनुसार वेद मंत्रों के गलत अर्थ समझाने वालों को भगाएं। “अरुसमयम पोनदु पानरी इरनददु वेंकली”(रामानुस नूट्रन्दादि ४९) के अनुसार, आगे उल्लेखित लोग और उन्के विचारे  वृद्धि होने  की कारण, दुष्ट कलि की प्रभाव था ।  परंतु श्री रामानुज ने कलि के निशाने को भी इस लोक में नहीं छोड़ा। ऐसे कृपालु श्री रामानुज की श्रेय गाते हैं मणवाळ मामुनि।  और आगे, “श्रीमन श्रीरंग श्रियम अनुभद्रवाम अनुदिनं सम्वर्द्धय” में चित्रित किये गए श्रीरंगम की कोश की निर्माण, मंदिर के अनुशासन के विधियों के पुन: निर्माण अथवा कार्य करने वालें श्री रामानुज के जयकार करतें हैं। अर्थ समझाने वाले के पांडित्य पर निर्भर वेद नित्य भय में थे। पूर्ण प्रकार से  वेदों के गहरे अर्थ खुद न समझने वालों के व्याख्यान, टिप्पणी या भाष्य भी उचित न होगी। वेदों के गहरे अर्थों पर सम्पूर्ण आधिपत्य होने के कारण श्री रामानुज वेदों की इस भय को अपने “श्री भाष्यं” (वेद व्यास के ब्रह्म सूत्र पर एक व्याख्या) नामक ग्रंथ से निकाले। ऐसे महान श्री रामानुज की मणवाळ मामुनि यहाँ श्रेय गाते हैं। तिरुवाय्मोळि के तनियन में उपस्तित “ वलर्त इडत्ताइ इरामानुसन” वचन, श्री रामानुज के  “तिरुवाय्मोळि” नामक तमिळ वेदं को आश्रितों के मध्य प्रचार कर, बढ़ाने केलिए किये गए  मेहनत को चित्रित करती हैं।  शरणागति (श्रीमान नारायण के ओर सम्पूर्ण समर्पण) की सार, जो तिरुवाय्मोळि में प्रशंसा किया गया हैं, उस्के महत्त्व आम जनता तक फैलने की कारण केवल श्री रामानुज हैं, जो श्रीपेरुम्बूदूर में इसी कार्य निभाने के प्रति अवतार किये।  मानव जाती की हित में किये गए इस कार्य के प्रति मणवाळ मामुनि अपनी कृतज्ञता  प्रकट करते हैं।  अंत में “ सम्पूर्ण सुंदरता से भरपूर श्री रामानुज के दिव्य चरण कमल नित्य काल तक जिए”, से समाप्त करतें हैं।  यहाँ “अळगारुम”, “अडियिणेगळ” के संबंध में रखा जा सकता हैं, जिस्से यह अर्थ होगा कि स्वामी के दो पैर दो सुन्दर कमलों के तरह हैं।  और श्री रामानुज के चरणों के स्वाभाविक सुंदरता की भी यह उल्लेख होगी। “ इरामानुसन मिक्क पुण्यन” (रामानुस नूट्रन्दादि ९१), में जैसे चित्रित हैं वैसे “अऱमिगु नर पेरुम्बुदूर” की भी अर्थ यह हैं कि श्री रामानुज धार्मिक संस्कारों के भंडार हैं।   

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/12/arththi-prabandham-31/

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