आर्ति प्रबंधं – २२

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

<< पासुर २१

thirukkudanthai_aravamudhazhvar_divine_feet

उपक्षेप

पिछले पासुरम में मणवाळ मामुनि “एन्न भयं नमक्के”, कहते हैं , अर्थात उन्को अब कोई भय नहीं हैं। अब कहते हैं कि अपने आचार्य तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै के निर्हेतुक आशीर्वाद के कारण श्री रामानुज उन पर गर्व करेंगें। यह इस सँसार के सागर को पार कर श्रीमन नारायण के चरण कमलों तक अवश्य पहुँचायेगा।

पासुरम २२

तीदट्र ज्ञानम् तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै सीररुळै
येदत्तै माट्रूम एतिरासर तन अभिमानमेन्नुम
पोदत्तै एट्री पवमाम पुणरिदनै कडन्दु
कोदट्र माधवन  पादक्करैयै कुरुगुवने

शब्दार्थ

तीदट्र – दोष हीन
ज्ञान – जीवात्मा के स्वरूप की सम्पूर्ण ज्ञान
तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै – तिरुवाय्मोळि के संबंध से ये “तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै” जाने जाते हैं।  श्रीमन नारायण के कवि नम्माळ्वार के दिव्य रचना हैं
सीररुळै – वे मुझे (निर्हेतुक) कृपा से आशीर्वाद करते हैं
येदत्तै माट्रूम – जिस्से मोह तथा इच्छा जैसे दोष नष्ट हों
एतिरासर तम – उन्की  (तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै की )  आशीर्वाद, श्री रामानुज के कृपा पात्र बने रहने की सहाय करेगी
पोदत्तै येट्री – “विष्णु पोत” यानी विष्णु की जलयान के जैसे अटल जहाज़ (जलयान ) जो ही
पवमाम पुणरिदनै कडन्दु – सँसार के सागर को पार करने केलिए सहाय करता हैं
कुरुगुवने – निश्चित प्राप्त होता है
कोदट्र माधवन पादक्करयै – श्रिय:पति श्रीमन नारायण के चरण कमल। यह चरण कमल, “विण्णोर पिरानार मासिल मलरडिकीळ”, “तुयररु सुडरडि” चित्रित किया गया हैं , अर्थात “दोषों से विरुद्ध एवं सदा रोशणमय

सरल अनुवाद

इस पासुरम में मणवाळ मामुनि कहते हैं कि श्रीमन नारायण के चरण कमल प्राप्त होना निश्चित है क्योंकि “विष्णु पोत” की तरह एक जलयान की सहायता से वें साँसारिक बंधनों से विमुक्त होने वाले हैं। यह निश्चित हैं क्योंकि श्री रामानुज उस जहाज़ में चढ़ाएंगे। और श्री रामानुज के यह सहायता मणवाळ मामुनि के आचार्य निष्कलंक तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै के आशीर्वाद से ही साध्य है।

स्पष्टीकरण  

विवरणकार अब तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै के श्रेय प्रस्ताव करते हैं।  “तत ज्ञानं अज्ञानमतोन्यधुक्तम” और “विद्यान्यासिलपनैपुणम” वचनों के अनुसार , श्रीमन नारायण से असम्बंधित या विरुद्ध किसी प्रकार के कार्यो से आने वाली दोषों से विमुक्त हैं। “तामरैयाळ केळ्वनये नोक्कुम उणर्वु” (मुदल तिरुवन्दादि ६७ ) की तरह श्री महालक्ष्मि के पति श्रीमन नारायण के प्रति ही सदा उन्की ध्यान हैं, अन्य विषयों में किंचित भी नहीं। श्रीमन नारायण के प्रति उन्की भक्ति ऐसी हैं कि श्रीमन नारायण के भक्तों को अपने स्वामी समझते हैं।  श्रीमन नारायण से संबंधित ग्रंथों के अलावा अन्य विषयों पर वें ध्यान नहीं देते हैं। विशेष रूप में तिरुवाय्मोळि के गेहरी दिव्य अर्थों में मग्न होने के कारण “तिरुवाइमोळिप्पिळ्ळै” जाने जाते हैं।  तिरुवाय्मोळि के प्रति उन्के प्रेम के कारण, तिरुवाय्मोळि उन्की पहचान बन गयी।  ऐसे श्रेयसी आचार्य के शिष्य हैं श्री मणवाळ मामुनि। मणवाळ मामुनि कहते हैं कि , उन्के आचार्य के आशीर्वाद से श्री रामानुज के छाये में अवश्य आएँगे, जो प्रेम भाव प्रकट करेंगें। श्री रामानुज “कामादिदोषहरं” (यतिराज विम्शति १ ) विवरित किये जाते हैं।  “विष्णु पोतं” का अर्थ है , “इदंहि वैष्णवं पोतं सम्यकास्ते भवार्णवे” याने, “बिना कोई संकट ,श्रीमन नारायण के दिव्य चरण कमलों तक पहुँचाने वाला”. मणवाळ मामुनि कहते हैं कि श्री रामानुज के संबंध, सँसार के सागर (साँसारिक बंधन ) से विमुक्त करने वाला श्री वैष्णव जलयान हैं। (जितन्ते स्तोत्र ४ ) के “संसार सागरं घोरं अनंत क्लेस भाजनं”, वचनानुसार, यह सँसार सागर हमारे ग्रंथों में भयानक सागर के रूप में चित्रित किया गया है। मणवाळ मामुनि कहते हैं कि यह जलयान उन्को श्रीमन नारायण के चरण कमलों तक ले जाएगा।  भगवान के चरण कमलों के विषय में बताया गया है , “विण्णोर्पिरानार मलरडिकीळ (तिरुविरुत्तम ५४ ) याने नित्यसूरियों से पूजनीय और “तुयररु सुडरडि (तिरुवाय्मोळि १.१. १ ) याने अज्ञान और पीड़ा से निवारण करने वालें। “हेय प्रत्यनीकं”, के अनुसार वें संपूर्ण रूप से दोषों से विमुक्त हैं। ये दिव्य चरण कमल अत्यंत तेजस्वी हैं और भक्त की ,किसी के या किसी विषय के आवश्यकता के बिना रक्षण करतें हैं। श्रीमन नारायण के  ऐसे निष्कलंक चरण कमल ही मेरे लक्ष्य हैं।  वे कहते हैं लक्ष्य प्राप्ति निश्चित हैं।  “कोदट्र” का अर्थ है निष्कलंक और यह चरण कमलों केलिए सही है। पूर्ण वचन है “कोदट्र माधवन” अर्थात  “निष्कलंक या दोषहीन माधवन” . यहाँ उल्लेखित दोष, श्रीमन नारायण के “पिराट्टि”, श्री महालक्ष्मि के संग न होने पर।  इसी  विषय की तिरुवडि (हनुमान) प्रस्ताव करते हैं, “रामस्यलोकत्रय नायकस्य श्रीपादकूलं मनसाजकाम” में और नम्माळ्वार, बताते हैं , “माने नोक्कि मडवाळै मार्बिल कोणडाइ माधवा” जो “उन तेने मलरूम तिरुपादम विनयेन सेरमारु अरुळाइ (तिरुवाय्मोळि १.५.५ )” में पूर्ण होता है।  अतः, “तिरुविललाद कोदु अट्रवन” अर्थात पिराट्टि महालक्ष्मि के संग के बिना श्रीमन नारायण के दर्शन में ही यह उल्लेखित दोष आएगा।  अतः पिराट्टि के संग श्रीमन नारायण ही लक्ष्य हैं क्योंकि वे ही निष्कलंक हैं।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/09/arththi-prabandham-22/

संगृहीत- http://divyaprabandham.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *