आर्ति प्रबंधं – १८

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

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उपक्षेप

श्री रामानुज ने आश्वासन दिया था कि मणवाळ मामुनि के परमपद प्राप्ति के इच्छा वे पूर्ती करेंगें।  किन्तु (तिरुवाय्मोळि ९.९.६ ) के “अवन अरुळ पेरुम अळवाविनिल्लादु” के जैसे मामुनि उचित काल तक प्रतीक्षा करने केलिए तैयार नहीं हैं। तिरुवाय्मोळि ५.३ में चित्रित नम्माळ्वार के पीड़ा के समान मणवाळ मामुनि अनुभव कर रहें हैं। वे बताते हैं कि साँसारिक बंधन से उत्पन्न अज्ञान के  नित्य-अंधकार में वे फॅसे हैं और इस अंधकार को नाश करने वालें सूर्य श्री रामानुज से प्रार्थना करते हैं कि यह सूर्य उन पर कब प्रकाशित होगा ?   

पासुरम १८

एन्रु विडिवदु एनक्कु एन्दै एतिरासा !
ओन्रुम अरिगिन्रिलेन उरैयाइ
कुन्रामल इप्पडिए इंद उइरुक्कु एन्रुम इरुळे विळैक्कुम
इप्पवमाम नीणड इरवु

शब्दार्थ

एन्दै – हे मेरे प्रिय पिता !
एतिरासा – यतिराजा ( सन्यासियों के नेता )
इंद उयिर्क्कु – यह आत्मा मगन है
इप्पवमाम – यह साँसारिक लोक में
इरुळे विळैक्कुम – अज्ञान और अंधकार का कारण है
इप्पडिए – आत्मा इस स्थिति में हैं
एन्रुम – हमेशा
कुनरामल – ज्योति के संकेत के  बिन
नीणड इरवु – बिना प्रभात के लंबी रात के समान
उरैयाइ – हे रामानुज ! कृपया बताइये
एन्रु – कब
विडिवदु एनक्कु – मेरे लिए प्रभात होगा ?
ओन्रुम अरिगिन्रिलेन – इस विषय के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीँ हैं

सरल अनुवाद

इस पासुरम में श्री रामानुज से मणवाळ मामुनि कहते हैं कि, कब सुरंग के अंत में प्रकाश दिखेगा, इसका इनके पास कोई जानकारी नहीं हैं। आत्मा अँधेरे से घेरा गया हैं।  साँसारिक लोक की दुष्ट स्वरूप के अंधकार से पीड़ित अज्ञानी आत्मा को विमुक्त करने वाला कोई भी रोशनी नहीं दिख रहा हैं। अपने मायूसी को प्रकट कर मणवाळ मामुनि अपने पिता श्री रामानुज से प्रार्थना करते हैं कि कब उनका प्रभात होगा।

स्पष्टीकरण

मणवाळ मामुनिगळ कहतें  हैं, “हे मेरे प्रिय पिता श्री रामानुज ! सन्यासियों के नेता ! मेरी आत्मा उन्नति की कोई चिन्ह नहीं दिखा रही हैं।  लगता है की वह नित्य अंधकार से घेरि गयी है।  अज्ञान स्वरूपी इस प्रकाश हीन लोक की संगठन ही इस अंधकार का कारण है।इस दुष्ट लोक की संबंध ही मेरी आत्मा की अनादि काल की पीड़ा का कारण है। सँसार का लंभा रात्री  (स्तोत्र रत्न ४९ श्लोक) में “अविवेक गनांथ धिङ्ग्मुखे” से विवरित किया गया है। “सँसार “ नामक इस घने रात्री मैं खो गया हूँ और समीप काल में कोई रोशनी नहीं दिख रही है।  सही दिशा कि मुझे ज्ञान नहीं है और (स्तोत्र रत्न ४९ ) “पद स्कलितम” वचनानुसार मैं बटक रहा हूँ।  आपकी प्रभा प्राप्त होने की सौभाग्य मुझे कब मिलेगी ? मैं इतना अज्ञानी हूँ कि यह कब और कैसे मुझे प्राप्त  होगो, यह मुझे पता नहीं है।  हे श्री रामानुज आप, (यतिराज सप्तति २८ ) के “निखिल कुमति माया सरवरी बालसूर्य:” के अनुसार सर्वज्ञ हैं।  आप सूर्य हैं , और इसीलिए घेरे हुए अंधकार से (श्रीविष्णु पुराण ) के “सुप्रभाततया रजनी” के जैसे मुझे  छुटकारा दिला सकते हैं।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

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