आर्ति प्रबंधं – ११

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नम:  श्रीमते रामानुजाय नम:  श्रीमद्वरवरमुनये नम:

आर्ति प्रबंधं

<< पासुर १०

उपक्षेप

इस पासुरम में, मणवाळ मामुनि के कल्पना में श्री रामानुज उनसे एक प्रश्न करते हैं। “हे ! मणवाळ मामुनि ! आप  “निळळुम अडित्तारुमानोम (पेरिय तिरुवन्दादि ३१ ), “मेविनेन अवन  पोन्नडि (कण्णिनुन चिरुत्ताम्बु २) और “रामानुज पदच्छाया” (एम्बार के तनियन ) वचनों में चित्रित पारतंत्रियम (पारतंत्रियम एक गुण है जिस्से सेवक स्वामी पर संपूर्ण निर्भर है और स्वामी के  सेवक को अपने इच्छानुसार उपयोग करने पर भी, अपने स्वरूप ज्ञान के कारण, सेवक स्थिति से संतुष्ट रहता है )   के साकार रूपक भक्तों के स्थिति केलिए तरस्ते हैं। केवल वडुग नम्बि के जैसों केलिए ही हमारे संग यह संबंध सम्भाव्य है।” मणवाळ मामुनि उत्तर देते हुए कहते हैं , “हे श्री रामानुजा! आपसे अन्यत्र कोई भगवान को न जान्ने वाले वडुग नम्बि के स्थिति, अडियेन को दें।  उसके पश्चात, कृपया अडियेन का उपयोग किसी भी प्रकार कितनी भी समय केलिए, आपके इच्छानुसार करें।”  

पासुरम

उन्नैयोळिय ओरु दैवं मट्ररीया
मन्नूपुगळसीर वडुग नम्बि तन निलयै
एन्रनक्कु नी तंदु एतिरासा एन्नालुम
उन्रनक्के आटकोळ उगन्दु

शब्दार्थ

एतिरासा – हे ! एम्पेरुमानारे
नी तंदु – आपको दीजिये
एन्रनक्कु – मुझे (जो वडुग नम्बि के स्थिति केलिए तरसता हूँ )
निलयै – चरम पर्व निष्ठा (वह उत्तम स्थिति जिसमें गुरु को सर्वत्र मानते हैं )
मन्नु – नित्य / हमेशा
सीर – प्राप्त हुआ
पुगळ – श्रेय (और जिनका परिचय हैं )
वडुग नम्बि तन – वडुग नम्बि , जो
उन्नै ओळिय – आपसे अन्य कोई
ओरु दैवं मट्ररीय – आपके अलावा किसी और को न जानते थे और भगवान को भी बाधा समझते थे, क्योंकि आपके प्रति कैंकर्य में भगवान भी विघ्न हो सकते हैं।
आटकोळ उगन्दु – (हे ! एम्पेरुमानार ) कृपया संतोषी से अपने सेवा में अडियेन की उपयोग करें
एन्नालुम – हर समय और
उन्रनक्के – केवल आपके प्रति

सरल अनुवाद 

इस पासुरम में मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से विनति करते हैं कि वे उनको वडुग नम्बि के स्थिति अनुदान करे। वडुग नम्बि श्री रामानुज के शिष्य थे जिन्हें अपने आचार्य से अन्य कोई भगवान की ज्ञान न थी।  मणवाळ मामुनि श्री रामानुज से विनति करते हैं की वे मामुनि को वडुग नम्बि की स्थिति अनुदान करे और अपने सेवा में उपयोग करें।  वे कहते हैं श्री रामानुज की नित्य  कैंकर्य करने से वे (मणवाळ मामुनि ) संतुष्ट रहेंगें।

स्पष्टीकरण

मणवाळ मामुनि कहते हैं , “हे ! यतियों (सन्यासियों ) के नेता ! कृपया वडुग नम्बि के स्थिति, अडियेन को अनुग्रह करें।”श्री रामानुज के शिष्य वडुग नम्बि, अपने आचार्य से अन्यत्र कोई भगवान को न जानते थे। श्रीरंगम के पेरिय पेरुमाळ को भी, श्री रामानुज के प्रति अपने कैंकर्य की बाधा समझते थे। पेरुमाळ और आचार्य दोनों से आश्रय चाहने वालों में से नहीं थे वडुग नम्बि।  वे श्री रामानुज को अपना सर्वत्र मानते थे और पेरुमाळ के दिशा में भी मुड़के नहीं देखते थे।  श्री रामानुज के प्रति अपनी अत्यंत भक्ति के कारण ही वे इस सर्वोत्तम पद में पूजनीय हैं। इसके आगे मणवाळ मामुनि कहते हैं , “तिरुवाय्मोळि २. ९. ४ में आळ्वार के वचन “एनक्के आटचेय एक्कालत्तुम”, के अनुसार कृपया अडियेन को अपने सेवा में ही नित्य उपयोग करें।  अडियेन आपके कैंकर्य मात्र ही हूँ, कृपया अपने संतुष्टि हेतु अडियेन की उपयोग करें।  जहाँ भी पधारें, अडियेन कि कैंकर्य अपनाये।”  

“मन्नु पुगळ सीर वडुग नम्बि निलै”  वचन को “ मन्नु निलै सीर वडुग नम्बि”, प्रकार भी ले सकते हैं। इससे “मन्नु निलै सीर” विशेषण “वडुग नम्बि” संज्ञा की होगी, अर्थात : चरम पर्व निष्ठा में स्थित वडुग नम्बि जो नित्य श्रेयसी हैं।

अडियेन प्रीती रामानुज दासी

आधार :  http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2016/07/arththi-prabandham-11/

संगृहीत- http://divyaprabandham.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

0 thoughts on “आर्ति प्रबंधं – ११”

Leave a Comment